लॉकडाउन के बाद 11 राज्यों की 45 फीसदी आबादी के सामने पेट भरने का संकट, राशन के लिए लेना पड़ा कर्ज
नई दिल्ली। कोरोना महामारी और फिर रातोंरात लागू किए लॉकडाउन से देश में अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होने को लेकर कई सर्वे आ चुके हैं। देश की विकास दर भी लगातार निगेटिव है और कई विशेषज्ञ देश में आर्थिक मंदी होने की बात कह चुके हैं। एक सर्वे आया है, जो बताता है कि आमजन ने लॉकडाउन के बाद कितनी ज्यादा परेशानियों का सामना किया है। देश में लॉकडाउन के बाद भूख और राशन को लेकर किया गया ये अपनी तरह का पहला सर्वे है। सर्वे कहता है कि इस साल मार्च में लॉकडाउन का ऐलान किए जाने के बाद देश के 11 राज्यों की 45 फीसदी आबादी के सामने पेट भरने का संकट खड़ा हो गया। उसे राशन खरीदने के लिए भी कर्ज लेना पड़ा। इसमें भी सबसे खराब हालत दलितों और मुस्लिमों की है। दलितों और मुसलमानों में हर चौथे इंसान को खाने के संकट का सामना करना पड़ा है।
हंगर वॉच का ये सर्वे कहता है, लॉकडाउन के बाद चार में से एक दलित और चार में से एक मुसलमान को राशन हासिल करने में मुश्किल आई। वहीं जनरल कैटेगरी हर दस में से एक व्यक्ति ने भोजन के लिए मुश्किलों का सामना किया। दलितों और मुसलमानों में राशन के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत सामान्य श्रेणी की तुलना में 23 फीसदी ज्यादा थी। ये सर्वे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के कमजोर समुदायों से लगभग 4,000 लोगों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार किया गया है। ये रिपोर्ट लॉकडाउन लागू होने के बाद से लेकर सितंबर-अक्टूबर तक की स्थिति के आधार पर तैयार की गई है।
रिपोर्ट में नए कृषि कानूनों पर भी बात
ये रिपोर्ट हाल ही में केंद्र की ओर से लाए गए खेती से जुड़े तीन कानूनों को लेकर भी बात करती है। इन कानूनों को लेकर किसान बीते कई महीनों से लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि ये कानून पूरी खरीद तंत्र को खतरे में डाल रहे हैं और पीडीएस यानी भारत में राशन की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भी खतरा हैं। पीडीस सिस्टम मुश्किल वक्त में हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए भोजन हासिल करना का एक बड़ा जरिया है। इन कानूनों के पूरी तरह से देश में लागू होने के बाद पीडीएस सिस्टम पर भी इसका असर होगा, जिससे देश में बिगड़ती भूख की स्थिति और खतरनाक स्तर पर जा सकती है।
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