हिमाचल चुनाव से पहले कांग्रेस को मजबूत करने में लगे प्रभारी राजीव शुक्ला, गुटबाजी अभी भी बरकरार
शिमला, 28 जुलाई। हिमाचल प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए विपक्षी दल कांग्रेस इन दिनों प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गई। बेजान संगठन में जान फूंकने के मकसद से पार्टी प्रभारी राजीव शुक्ला अब खुद मैदान में उतर गये है। प्रदेश के सबसे बडे जिला कांगड़ा में पार्टी को मजबूत करने के लिये दो दिनों में उना से लेकर कांगड़ा तक दो बड़ी रैलियां और रोड शो कर उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी के लिये कांगड़ा जिला ही प्राथमिकता हैं।
दरअसल, प्रदेश की राजनीति में कहा जाता है कि शिमला की सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर ही जाता है। प्रदेश की राजनीति में पहाड़ और मैदानी इलाके यानी कांगड़ा में बंटती रही है। कांगड़ा में 15 चुनाव क्षेत्र हैं। और साथ लगते चंबा और हमीरपुर व उना में 15 चुनाव क्षेत्र हैं। 68 सदस्य वाली विधानसभा में जिस पार्टी को कांगड़ा में बढ़त मिलती र्है। वह पार्टी ही सत्ता में काबिज होती रही है। 2017 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को इसी इलाके में खासा नुकसान हुआ था। इसी वजह से पार्टी को सत्ता से दूर रहना पडा था। लेकिन पार्टी प्रभारी राजीव शुक्ला ने कांगड़ा में पार्टी की मजबूती के लिये अभी से तैयारी कर ली है। उन्होंने बुधवार को नगरोटा बगवां और डाडासीबा में रैलियां कर संगठन की मजबूती पर जोर दिया। इससे पहले चंडीगढ़ से कांगड़ा के रास्ते में भी उनके कार्यक्रम हुये।
लेकिन पार्टी में एकता और संगठन की मजबूती के उनके दावों के विपरीत उनके कार्यक्रमों में पार्टी अध्यक्षा सांसद प्रतिभा सिंह और वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने रहस्यमयी तरीके से दूरी बनाए रखी। पार्टी अध्यक्ष की गैरमौजूदगी अपने आप में कई सवाल खड़े कर रही है। जाहिर है तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी खत्म नहीं हो पा रही है। चूंकि इसी गुटबाजी का खामियाजा पार्टी को पिछले चुनावों में भुगतना पड़ा था और कांगड़ा से भाजपा को बढ़त मिली थी।
दरअसल , कांगड़ा की राजनीति पर नजर दौड़ाएं तो आज की तारीख में कांग्रेस की भी वही हालत है जो भाजपा की है। अभी तक तो ज्वाली से चंद्र कुमार और पालमपुर से आशीष बुटेल के सिवा कोई कांग्रेसी चेहरा नहीं हैं जो अपने दम पर चुनाव जीत रहा हो। धर्मशाला में सुधीर शर्मा , सुलह में जगजीवन पाल, जसवां परागपुर में सुरेंद्र मनकोटिया, शाहपुर में केवल पठानिया, नुरपूर में अजय महाजन और जयसिंहपुर में यादविंदर गोमा पिछली बार बुरी तरह चुनाव हारे थे और इस बार फिर टिकट की दौड़ में हैं। पार्टी का एक धड़ा नये लोगों को मौका देने की वकालत कर रहा है। इन लोगों का तर्क है कि कांग्रेस अगर चाहे तो जोखिम ले और कड़े निर्णय ले। आज मौजूदा सरकार से लोग भले ही नाराज हों। लेकिन बदलाव के बिना चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। लिहाजा हिमाचल की सत्ता पाने के लिये आज की तारीख में उदयपुर संकल्प को अपनाना ही होगा। कांग्रेस को अपने प्रत्याशी तय करने के लिए कोई फार्मूला निकालना ही होगा।
पार्टी में टिकट को लेकर चल रही कशमकश से निपटने के लिये पार्टी आलाकमान ने पार्टी सचिव संजय दत्त, गुरकीरत कोटली और तेजिंदर सिंह बिट्टू को संसदीय क्षेत्रवार जिम्मेवारी दी है। यह लोग अपनी रिपोर्ट राज्य प्रभारी राजीव शुक्ला को देंगे। बिट्टू को शिमला में काम करने के लिए कहा गया है। वह पार्टी के राष्ट्रीय और राज्य के पदाधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करेंगे। वह शिमला, सिरमौर और सोलन के प्रत्येक क्षेत्र में जुड़े सचिवों के साथ भी काम करेंगे। वहीं, संजय दत्त को कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की जिम्मेवारी दी गई है और हमीरपुर का कार्यभार सौंपा गया है।
प्रदेश
में
68
सीटें
हैं
और
2017
के
विधानसभा
चुनाव
में
यहां
भाजपा
को
बड़ी
जीत
मिली
थी।
तब
भाजपा
को
44
सीटों
पर
जीत
हासिल
हुई
थी
।
और
उसके
बाद
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
भी
वह
चारों
सीटें
जीतने
में
कामयाब
रही
थी।
लेकिन,
बीते
साल
नवंबर
में
हुए
उपचुनाव
में
भाजपा
तीन
विधानसभा
सीटों
और
मंडी
लोकसभा
सीट
पर
उपचुनाव
में
बुरी
तरह
हारी।
राज्य
ने
अब
तक
कोई
सरकार
नहीं
दोहराई
है।
इसे
कांग्रेस
एक
मौके
के
तौर
पर
देख
रही
है।
उत्तराखंड
और
केरल
को
लेकर
भी
यह
मिथक
था,
जिसे
मौजूदा
सरकार
को
दोबारा
जीताकर
तोड़ा
गया।
प्रदेश
में
इस
साल
के
अंत
में
चुनाव
होने
हैं।
कांग्रेस
के
लिए
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
पहले
ही
खतरे
की
घंटी
बजा
चुके
हैं।
मोदी
ने
हाल
ही
में
एक
सफल
रोड
शो
किया
था।
अब
बिलासपुर
में
उनके
दौरे
की
तैयारी
है।
राजनीतिक
जानकारों
ने
बताया
कि
मोदी
का
दौरा
विधानसभा
चुनाव
से
जुड़ा
हुआ
हैं।
मोदी
अक्सर
राज्य
के
साथ
अपने
खास
संबंधों
के
बारे
में
बताते
रहते
हैं।
वह
केंद्र
की
कल्याणकारी
योजनाओं
के
जरिए
पार्टी
की
'डबल
इंजन
सरकार'
को
ट्रैक
पर
बनाए
रखने
की
कोशिश
कर
रहे
हैं।