हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल और जेपी नड्डा की लड़ाई से संकट में भाजपा
हिमाचल प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे प्रदेश भाजपा के भीतर भी नेतृत्व को लेकर लड़ाई तेज हो गई है।
शिमला। हिमाचल प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे प्रदेश भाजपा के भीतर भी नेतृत्व को लेकर लड़ाई तेज हो गई है। पिछले दिनों की कुछ घटनाओं ने इस बात को और भी जोर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की हिमाचल में लगातार बढ़ रही गतिविधियां भी कुछ ऐसा ही संकेत दे रही हैं। भाजपा का एक बड़ा वर्ग अब मानकर चलने लगा है कि चुनावों की कमान नड्डा को ही मिलगी।
प्रेम कुमार धूमल की उड़ी नींद
नड्डा को चुनावी कमान मिलने की खबरों ने नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल की रातों की नींड उड़ा दी है। इन बदले हालातों में अगर कोई खुश है तो वह शांता कुमार ही होंगे। शांता कुमार को चूंकि धूमल से अपना पुराना हिसाब किताब निपटाना है ऐसे में उनके लिए नड्डा से बेहतर कोई ओर नहीं मिल सकता। नड्डा-शांता की जुगलबंदी ने प्रदेश में नये राजनैतिक समीकरण उभारे हैं। नड्डा के प्रदेश में लगातार दौरे हो रहे हैं। नड्डा ने खुद कहा है कि अगर पार्टी आलाकमान कहेगी तो वह सीएम पद के दावेदार बनने को भी तैयार हैं। हालांकि अभी तक हिमाचल भाजपा में नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल ही सर्वमान्य नेता हैं और अब दूसरी पंक्ति के कुछ नेताओं ने भीतर ही भीतर उनके खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। उनके लिये उनकी बढ़ती उम्र भी बाधा बनने लगी है। विरोधी दलील दे रहे हैं कि धूमल अब 74 के हो गये हैं तो अब पार्टी उन्हें सीएम के तौर पर सामने नहीं रखेगी।
अमित शाह के सामने लगे नड्डा के समर्थन में नारे
पिछले दिनों कांगड़ा से लेकर अर्की तक जो गतिविधियां रही, उससे हिमाचल भाजपा के भीतर खेमे बाजी सार्वजनिक रूप से उजागर हुई है और यह लगातार बढ़ती नजर आ रही है। सोशल मिडिया में तो धूमल समर्थकों ने बाकायदा एक अभियान छेड़ रखा है जिसमें धूमल को लोकप्रिय नेता के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। हाल ही में अमित शाह के दौरे के दौरान कांगड़ा एयरपोर्ट पर सीएम पद के लिए नड्डा के समर्थन में लगे नारे और अर्की में धूमल के खास रहे गोबिंद राम शर्मा की रैली में नड्डा की मौजूदगी ने कई तरह के सवाल खड़े किए हैं। इसके साथ-साथ दूसरी लाइन के कुछ भाजपा नेताओं की नड्डा के पीछे सक्रियता ने भी राज्य में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ाई हैं। उधर, नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल भी सभी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और वे भी अपने विश्वस्तों के माध्यम से अपनी गोटियां फिट कर रहे हैं। धूमल के साथ-साथ उनके सांसद पुत्र अनुराग ठाकुर और अनुराग के छोटे भाई अरूण धूमल भी मैदान में डटे हैं। लेकिन अभी भी स्पष्ट तौर पर पार्टी आलाकमान ने चुनावों की कमान धूमल को थमाने की कोई पहल नहीं की है।
टिकट को लेकर भी मारामारी
हिमाचल भाजपा को लगा गुटबाजी का रोग बताते हैं कि भाजपा के भीतर अंदरखाते बढ़ रही गुटबाजी टिकट के मामले के चलते भी बढ़ रही है। जिस नेता को लगता है कि धूमल खेमे में दाल गलने वाली नहीं है, वे नड्डा के साथ हो रहे हैं और वहां अपनी रोटियां सेंकने का प्रयास किया जा रहा है। यहीं से राज्य में भाजपा की खेमेबाजी बढ़ रही है। इस रणनीति में नड्डा के कुछ करीबी जुटे हुए हैं और वे दिल्ली तक सक्रिय हैं। इऩ हालात के बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं और वह इसे कितना बनाकर रख पाते हैं, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा।
पहले कांग्रेस को थी ये बीमारी
बहरहाल, राज्य में भाजपा में भी अब खेमेबाजी का रोग लग चुका है। अभी तक इससे कांग्रेस ही ग्रसित थी, लेकिन सत्ता में आने की संभावनाओं के बीच भाजपा में यह रोग बढऩे लगा है। पांच राज्यों के चुनावों के बाद से भाजपा को लगने लगा है कि वह यहां भी अपना परचम लहराएगी। इसी के चलते भाजपा में गुटबाजी बढ़ रही है और दोनों खेमे अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में लगे हैं। इन गुटों के बीच चर्चा इस बात को लेकर भी है कहीं ऐसा न हो कि इन दो की लड़ाई में मलाई कोई तीसरा ले जाए। ऐसे में आने वाले दिनों में भाजपा के भीतर की गुटबाजी क्या गुल खिलाती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा।