Himachal Election Result 2022: उत्तराखंड की तरह हिमाचल में भाजपा क्यों नहीं तोड़ पाई मिथक, जानिए वह बड़े कारण
हिमाचल में हर बार सत्ता बदलने का मिथक बरकरार बरकरार रहा है। कांग्रेस की ठोस रणनीति और भाजपा की बागियों की फौज, इसके अलावा जयराम ठाकुर सरकार के लिए एंटी इनकंबेंसी भी सत्ता से दूर करने में अहम साबित हुआ है।
Himachal Election Result 2022: गुजरात में रिकॉर्ड जीत की तरह हिमाचल में भाजपा मिथक तोड़ने में कायमाब नहीं हो पाई है। उत्तराखंड में जिस तरह पुष्कर सिंह धामी सरकार ने दोबारा सत्ता हासिल कर इतिहास रचा, वैसा कमाल जयराम ठाकुर की हिमाचल सरकार नहीं कर पाई है।
जनता ने एक बार फिर कांग्रेस के हाथ सत्ता सौंप दी
उत्तराखंड में हर बार सत्ता बदलने का मिथक तोड़ने के बाद भाजपा को पड़ोसी पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी इस बार फिर से कमल खिलने की उम्मीद थी, लेकिन जनता ने भाजपा को नकार कर एक बार फिर कांग्रेस के हाथ सत्ता सौंप दी है। भाजपा इस हार के कारणों का मंथन करेगी। लेकिन अब तक जिस तरह चुनाव के दौरान जो फीडबैक जनता का वोट के रूप में मिला है, उससे साफ है कि कांग्रेस की ठोस रणनीति और भाजपा की बागियों की फौज ने हिमाचल में मिथक नहीं बनने दिया। इसके अलावा जयराम ठाकुर सरकार के लिए एंटी इनकंबेंसी भी सत्ता से दूर करने में अहम साबित हुआ है।
बागियों की फौज ने दूर की सत्ता की चाबी
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के लिए बागी फैक्टर बड़ा सिरदर्द साबित हुआ। जिस वजह से भाजपा हिमाचल में मिथक तोड़ने में कामयाब नहीं हो पाई। भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट हमेशा इस मामले में सबसे अच्छा माना जाता है। लेकिन हिमाचल में मैनेजमेंट फेल होता हुआ नजर आ रहा है। भाजपा के 16 से ज्यादा सीटों पर बागियों ने भाजपा को ही हराने में अहम भूमिका निभाई। 3 सीटों पर तो बागी ही मैदान मार सकते हैं। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान एक बागी कृपाल सिंह परमार का एक वीडियो खूब वायरल हुआ जिसमें दावा किया गया कि खुद पीएम मोदी ने उन्हें फोन कर मैदान से हटने को कहा है। हालांकि वे चुनाव में डटे रहे। इस तरह बागी ही भाजपा के हार का प्रमुख कारण बने।
सत्ता विरोधी लहर
हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर सत्ता विरोधी लहर से पार नहीं हो पाए। चुनावों में एंटी इनकंबेंसी सबसे अहम फैक्टर होता है। चुनाव के परिणाम काफी हद तक एंटी इनकंबेंसी पर निर्भर करते हैं। कोई भी सरकार या सीएम जनता के बीच कितना लोकप्रिय है। ये चुनाव परिणाम तय करते हैं। अगर सरकार या सीएम रिपीट करे तो एंटी इनकंबेंसी का असर नहीं माना जाता है। लेकिन जिस तरह जयराम ठाकुर सत्ता की चाबी दोबारा पाने में कामयाब नहीं हो पाए, ऐसे में साफ है कि जनता ने उन्हें नकार दिया।
कांग्रेस का जातीय संतुलन फैक्टर
हिमाचल में कांग्रेस की जातीय संतुलन साधने की कोशिश कामयाब हो गई। जिस वजह से मिथक बरकरार रहा है। जातीय व क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए पार्टी ने चुनावी साल में राजपूत वर्ग से प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाया।नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ब्राह्मण हैं। ओबीसी पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष, एससी वर्ग से विनय कुमार समेत 4 को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। हिमाचल में वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर सबसे ज्यादा आबादी सवर्ण वर्ग की है। कुल आबादी में 37.5 प्रतिशत राजपूत हैं। दूसरे नंबर पर अनुसूचित जाति की आबादी है। 25.22 प्रतिशत आबादी इसी वर्ग की है। ब्राह्मण 18 प्रतिशत, गद्दी 1.5 फीसद, अनुसूचित जनजाति पांच फीसद और अन्य वर्गों की आबादी 16 प्रतिशत है।