क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

हर्बल दवाएं, जो असल में हैं कारगर

Google Oneindia News
ताजा शोध में पता चला है कि नागफनी (हॉउथोर्न- क्रेटीगस) ब्लड प्रेशर कम करता है और दिल संबंधी बीमारियों के इलाज में काम आ सकता है.

नई दिल्ली, 28 मई। इंसान हजारों साल से पौधों को उनके औषधीय गुणों के लिए इस्तेमाल करते आए हैं. यूं तो हर्बल उपचार को अक्सर अवैज्ञानिक ठहरा दिया जाता है लेकिन एक तिहाई से ज्यादा आधुनिक दवाएं, कुदरती उत्पादों से सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर बनाई जाती हैं. पौधे, सूक्ष्मजीवी, पशु- सब दवाओं में काम आते हैं.अमेरिका के कैलिफॉर्निया प्रांत के स्क्रिप्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने पाया है कि गलबुलिमीमा बेलग्राविएना पेड़ की छाल में साइकोट्रोपिक प्रभाव होता है, इसीलिए वो अवसाद और घबराहट के इलाज में काम आ सकती है. ये पेड़ सिर्फ पापुआ न्यू गिनी और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के दूरस्थ वर्षा वनों में ही पाया जाता है. वहां के मूल निवासी लंबे समय से इसका इस्तेमाल दर्द और बुखार में करते आए हैं.

इस ताजा शोध के वरिष्ठ लेखक और स्क्रिप्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर रयान शेनवी ने पिछले दिनों पत्रकारों को बताया, "इससे ये पता चलता है कि पश्चिमी दवाओं ने नये चिकित्साविधान के बाजार को किनारे नहीं किया है, पारपंरिक दवाओं का संसार भी है जिसका अध्ययन किया जाना बाकी है."

पौधों में और कौन सी दवाएं मिलती हैं?

किसी पौधे से निकली दवा का सबसे मशहूर उदाहरण ओपियम यानी अफीम का है. जिसका इस्तेमाल 4,000 साल से भी ज्यादा समय से दर्द के उपचार में हो रहा है. मॉरफीन और कोडाइन जैसी बेहोशी की दवाएं अफीम से निकाली जाती है, सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर उनका जोरदार प्रभाव पड़ता है.

अफगानिस्तान के जलालाबाद प्रांत में कच्ची अफीम इकट्ठा करते स्थानीय लोग.

लेकिन और कौन सी पौधे-निर्मित प्राचीन दवाएं हैं जिनमें देखने लायक चिकित्सा लाभ होते हैं और उनके पीछे का विज्ञान क्या?

पार्किन्सन्स रोग का उपचार है वेलवेट बीन्स

वेलवेट बीन्स यानी कौंच के बीज (म्युकुना प्रुरिएन्स) का इस्तेमाल तीन हजार साल से भी ज्यादा समय से प्राचीन भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा और चीनी दवाओं में किया जाता रहा है. प्राचीन पाठों से पता चलता है कि वैध कैसे कौंच के बीजों से मरीज की देह में कंपकंपी की समस्या को कम करते थे. इसी लक्षण को आज पार्किन्सन्स रोग के रूप में जाना जाता है. अध्ययन बताते हैं कि कौंच के बीजों में लेवोडोपा नाम का एक यौगिक(कंपाउंड) होता है. इसी नाम की दवा आज पार्किन्सन्स रोग के इलाज में काम आती है. मस्तिष्क का जो हिस्सा गति और हरकत को नियंत्रित करता है, लेवोडोपा उसमें डोपामीन के संकेतों को बढ़ा देता है और इस तरह कंपकंपी रोकने में मदद करता है.

कौंच के बीज.

लेवोडोपा का आधुनिक इतिहास शुरुआती 20वीं सदी से शुरु होता है जब इस यौगिक को पोलैंड के बायोकैमिस्ट कासिमिर फंक ने कृत्रिम रूप से पैदा किया था. दशकों बाद 1960 के दौर में वैज्ञानिकों ने पाया कि लेवोडोपा का इस्तेमाल पार्किन्सन्स रोग के मरीजों में कंपकंपी के असरदार उपचार के तौर पर किया जा सकता है. दवा ने इस बीमारी के इलाज में क्रांति ला दी और आज भी उसे आला दर्जे का उपचार माना जाता है.

दिल की बीमारियों का संभावित इलाज- नागफनी

मौजूदा शोध पैमानों के तहत हो रहे चिकित्सकीय प्रयोगों में पाया गया है कि नागफनी (हॉउथोर्न- क्रेटीगस) ब्लड प्रेशर को कम करता है और दिल की बीमारियों के इलाज में काम आ सकता है. नागफनी की फलियों में बायोफ्लेवोनॉयड और प्रोएंथोसायनीडिन जैसे यौगिक पाए जाते हैं जिनमें महत्त्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए गए हैं.

नागफनी की चिकित्सा खूबियों को पहली सदी में एक यूनानी फिजीशियन डियोसोकोरिडस ने पहली बार नोट किया था. सातवीं सदी में तांग-बेन-चाओ ने प्राचीन चीनी दवाओं में उसका इस्तेमाल किया था.

व्यापक स्तर पर चिकित्सा उपयोग के लिए नागफनी का अर्क अभी उपयुक्त नहीं है, इस बारे में अध्ययन जारी हैं और रोगों के इलाज में अर्क का इस्तेमाल सुरक्षित है या नहीं, इसके लिए और ज्यादा शोध की जरूरत है.

नागफनी की बेरियां

कैंसर से लड़ती है थुनेर की छाल

यूरोपीय मिथकों में यू ट्री यानी थुनेर या तालिश पात्र वृक्ष का एक विशेष महत्व है. पेड़ क ज्यादातर हिस्से बहुत जहरीले होते हैं और इनका जीवन और मृत्यु दोनों से उनका जुड़ाव है. मैकबेथ में तीसरी चुड़ैल की जुबानी इस पेड़ का ज़िक्र आता है- "चंद्रमा के अंधेरे को यू की किरचियों ने चीर डाला." (मैकबेथ अंक 4, दृश्य 1)

लेकिन इस पेड़ की उत्तरी अमेरिका प्रजाति, पैसिफिक यू ट्री (टैक्सस ब्रेविफोलिया) में सबसे ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं. 1960 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि पेड़ की छाल में टैक्कल नाम के यौगिक पाए जाते हैं. इनमें से एक टैक्सल को पैक्लीटैक्सल कहा जाता है. और उसे कैंसर के इलाज की असरदार दवा के रूप में विकसित किया जाता रहा है. पैक्लीटैक्सल कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है और इस तरह बीमारी को बढ़ने नहीं देता.

अमेरिका के ऑरेगेन प्रांत में पैसेफिक यू का पौधा.

विलो की छाल से मिलती है चमत्कारी दवा

विलो पेड़ की छाल का भी पारंपरिक दवा के रूप में लंबा इतिहास है. प्राचीन सुमेर और मिस्र में चार हजार साल पहले छाल का इस्तेमाल दर्द से बचाव के लिए किया जाता था और तबसे वो एक प्रमुख दवा बन गई है. विलो की छाल में सेलिसिन नाम का यौगिक होता है, आगे चलकर यही यौगिक दुनिया में सबसे ज्यादा ली जाने वाली दवा, एस्पिरिन की खोज का आधार भी बना था.

एस्पिरिन में बहुत सारे अलग अलग फायदे हैं. यह दर्दनिवारक के अलावा, बुखार उतारने और स्ट्रोक को रोकने में काम आती है. 1918 की फ्लू महामारी के दौरान, अत्यधिक बुखार पर काबू पाने के लिए पहली बार इसका व्यापक इस्तेमाल हुआ था.

Source: DW

Comments
English summary
herbal medicine that are really helpful and useful
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X