आफत की बारिश-गुना में रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त, मुरैना के 50 गांव खाली करने की मुनादी
ग्वालियर चंबल अंचल में बारिश की वजह से हाहाकार मचा हुआ है, चंबल के किनारे बसे कई गांव में बाढ़ का संकट होने की वजह से गांव खाली करवाए जा रहे हैं, गुना में रेलवे ट्रेक क्षतिग्रस्त होने से ट्रेनों के रुट डायवर्ट गिए गए है
ग्वालियर, 23 अगस्त। ग्वालियर-चंबलअंचल में इन दिनों बारिश की वजह से हाहाकार मचा हुआ है। ग्वालियर-चंबल की नदियां और नाले उफान पर हैं। ग्वालियर-चंबल के जिलों के कई इलाकों का संपर्क भी टूट गया है। लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए या तो इंतजार करना पड़ रहा है यह अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है। गुना में तो पार्वती नदी के बहाव की वजह से रेलवे ट्रैक ही क्षतिग्रस्त हो गया जबकि मुरैना में 50 गांव में बाढ़ का संकट देखते हुए उन्हें खाली करने के मुनादी भी करवा दी गई है।
गुना में क्षतिग्रस्त हो गया रेलवे ट्रैक
गुना में बारिश की वजह से जनजीवन पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गया है। बारिश की वजह से लोग हलकान हो गए हैं। मंगलवार को मुरैना में पार्वती नदी के तेज बहाव की वजह से रेलवे ट्रैक को नुकसान पहुंचा है। जंजाली के पास रेलवे ट्रैक क्षतिग्रस्त हो गया है। इस वजह से इंदौर कोटा की ट्रेनों के रूट डायवर्ट कर दिए गए हैं। रेलवे ने इससे संबंधित जरूरी दिशा निर्देश भी जारी कर दिए हैं। रेलवे ट्रैक के नुकसान को देखते हुए कुछ ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए लंबा इंतजार कर रहे हैं। कई यात्री समय पर अपने घर नहीं पहुंच पा रहे हैं।
मुरैना के 50 गांव में बाढ़ की आशंका के चलते खाली करवाने की मुनादी
मुरैना से गुजरने वाली चंबल नदी इस वक्त उफान पर है। इस वजह से चंबल नदी के किनारे बसे गांव में बाढ़ का संकट गहराने लगा है। चंबल नदी के किनारे बसे तकरीबन 50 गांव को खाली करने की मुनादी प्रशासन की तरफ से करवा दी गई है। इन सभी लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए और गांव को छोड़ने के लिए कह दिया गया है। चंबल नदी का पानी गांव में प्रवेश करने के बाद ग्रामीणों का गांव से निकलना मुश्किल हो जाएगा इसलिए प्रशासन ने पहले ही सभी को आगाह कर दिया है। प्रशासन के मुनादी के बाद ग्रामीणों ने भी गांव छोड़ने की तैयारी कर ली है।
भिंड में सिंध और चंबल नदी के तटीय इलाकों में बाढ़ का संकट
कोटा बैराज समेत अन्य बांधों से चंबल और सिंध नदी में पानी छोड़े जाने के बाद इन नदियों के किनारे बसे गांवों में बाढ़ का संकट मंडराने लगा है। ग्रामीण लोगों ने अपने-अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचने का सिलसिला शुरू कर दिया है। पुलिस कर्मी भी लगातार ग्रामीण अंचल में घूम-घूम कर लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कह रहे हैं। सिंध नदी में मड़ीखेड़ा बांध से पानी छोड़ा गया है जबकि चंबल नदी मे कोटा बैराज बांध से पानी छोड़ा गया है। इस वजह से चंबल और सिंध में लगातार जलस्तर बढ़ रहा है। इसी तरह अगर नदियों का जलस्तर बढ़ता रहा तो नदियों के किनारे बसे कई गांव डूब में आ जाएंगे।
अशोकनगर और शिवपुरी में भी जनजीवन प्रभावित
बारिश की वजह से अशोकनगर और शिवपुरी जिले में भी जनजीवन प्रभावित हो गया है। यहां के नदियां-नाले उफान पर हैं। अशोकनगर में एक कार बह जाने की वजह से महिदपुर के सरपंच की मौत हो गई। जबकि शिवपुरी में जलीय जीव जंतु समेत मगरमच्छ शहरों में बारिश के पानी में बहकर पहुंच रहे हैं। कई निचली बस्तियों में पानी भर गया है। जिससे लोगों को अपने घरों की छत पर चढ़कर अपनी जान बचानी पड़ रही है। कई इलाकों का संपर्क भी मुख्य मार्गों से टूट गया है।
श्योपुर में पार्वती नदी उफान पर
श्योपुर में पार्वती नदी उफान पर है। इस वजह से श्योपुर के कुछ मार्ग बाधित हो गए हैं। श्योपुर के सुंडी गांव को खाली करा लिया गया है। बाढ़ की आशंका के चलते यह निर्णय लिया गया है। बाढ़ के पानी में कुछ ग्रामीण भी बह गए जिन्हें काफी मशक्कत के बाद सुरक्षित रेस्क्यू करके बचा लिया गया। जिले के चार मुख्य मार्ग बंद हो गए हैं। यह मार्ग श्योपुर को राजस्थान से जोड़ने वाले हैं।
पिछले साल भी श्योपुर और भिंड में बाढ़ ने बरपाया था कहर
बीते वर्ष श्योपुर और भिंड जिले में बाढ़ ने कहर बरपाया था। बाढ़ के पानी में कई घर डूब गए थे। कई घर जमींदोज हो गए थे। श्योपुर में हालात इतने बदतर हो गए थे कि विद्युत व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी, लोगों के खाने-पीने का सामान भी बर्बाद हो गया था। लोग भूख प्यास से तड़प रहे थे। इस दौरान जब केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर श्योपुर में पहुंचे थे तो उनका जमकर विरोध भी हुआ था। लोग उनकी गाड़ियों के सामने लेट गए थे। सुरक्षाकर्मियों ने जैसे-तैसे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सुरक्षित वहां से बाहर निकाला था। भिंड में भी बाढ़ की वजह से कई लोग बेघर हो गए थे और कई महीने तक उन्हें खुले आसमान के नीचे दिन गुजारने पड़े थे।