Gujarat Election 2022: गोधरा के वोटर 20 साल बाद क्या सोचते हैं, AIMIM ने कितना बदला समीकरण ?
गुजरात में पिछले पांच चुनावों से गोधरा किसी ना किसी रूप में मुख्य मुद्दा बन जाता है। इसपर राजनीति करना सत्ताधारी दल और विरोधी सबके लिए आसान रहा है। समय के साथ जैसे बाकी गुजरात ने बदलाव देखा है, गोधरा कमोबेश उतना नहीं बदल पाया है। 20 साल पहले वहां जो कुछ हुआ और उसने जिस तरह से राज्य और देश की राजनीति बदली, उसका एहसास इस विधानसभा क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर आज भी महसूस किया जा सकता है। संयोग से बिलकिस बानो का मुद्दा एक बार फिर से चुनाव से पहले ही गर्म हुआ है।
गोधरा में 20 साल बाद क्या बदला ?
गोधरा का इतिहास जितना भी समृद्ध रहा हो, लेकिन बीते दो दशकों में इसका नाम गलत वजह से ही लिया जाता है। नाम ही नहीं, गुजरात का यह लगातार पांचवां चुनाव है, जिसको गोधरा को दूर रखकर नहीं देखा जा रहा है और खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक किसी ना किसी रूप में वहां से जुड़ी हिंसा की याद दिला चुके हैं। गोधरा के एक वरिष्ठ पत्रकार मयूरभाई जानी ने टाइम्स ऑफ इंडिया डॉट कॉम से कहा, 'हर चुनाव में सभी पार्टियां गोधरा हिंसा के बारे में बात करने लगती हैं। इस बार भी स्थिति नहीं बदली है। सच तो यह है कि गोधरा हिंसा हमारे शहर के लिए एक अभिशाप की तरह है, जो 20 साल बाद भी इसका पीछा नहीं छोड़ रहा है।'
गोधरा से जुड़े अभिशाप को नहीं भूलने देतीं पार्टियां ?
पंचमहाल जिले के मुख्य शहर होने के बावजूद शहर के विकास को लेकर सवाल उठते रहे हैं। राजूभाई भट नाम के एक निवासी कहते हैं, 'पिछले कई वर्षों से गोधरा में किसी भी तरह का विकास नहीं हुआ है। और विकास के नाम पर जो कुछ रोड बनाए गए थे, वह बनने के पांच-छह महीने में ही टूट गए।' एक और निवासी ने कहा, 'यहां की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक है और उसे सुलझाना है, एक रेलवे अंडरपास की भी आवश्यकता है। लेकिन, इस दिशा में अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है।' शायद राजनीतिक दलों का धंधा गोधरा हिंसा को भुनाकर ही चलता रहा?
गोधरा में बीजेपी की राह आसान क्यों नहीं ?
2017 तक गोधरा कांग्रेस का गढ़ था। लेकिन, जब 2007 से ही कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले सीके राउलजी जब भाजपा में आ गए तो 10 साल बाद पांच सौ से कुछ ज्यादा वोट से ही सही पार्टी को यहां बाजी पलटने का मौका तो मिल गया, लेकिन गोधरा सीट को लेकर भाजपा अभी भी पूरी तरह से भरोसे में नहीं रह सकती। बीजेपी इस बार भी राउलजी पर दांव लगा चुकी है और कांग्रेस ने स्मिताबेन चौहान को टिकट दिया है। हालांकि, इस बार आम आदमी पार्टी के राजेश पटेल राजू और एआईएमआईएम के मुफ्ती हसन कछाबा भी किस्मत आजमा रहे हैं।
गोधरा में इस बार क्या है चुनावी समीकरण ?
गोधरा सीट पर कुल 2 लाख 50 हजार से ज्यादा वोटर हैं, जिनमें करीब 70 हजार मुसलमान हैं। ऐसे में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने अपना उम्मीदवार देकर विपक्षी दलों की टेंशन बढ़ा रखी है। क्योंकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में से किसी ने मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है। इस बात की चर्चा यहां के अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच भी हो रही है। क्योंकि, गोधरा सीट पर बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई का मुद्दा भी अहम साबित हो सकता है। अब ये सारे समीकरण बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में जाते हैं या लगातार चौथी जीत का उनका सपना चकनाचूर होता है, यह देखने वाली बात होगी।
ओवैसी कांग्रेस की मदद करेंगे या बिगाड़ेंगे खेल ?
वैसे कांग्रेस को पूरा यकीन है कि बीजेपी के 'संस्कारी' विधायक के लिए गोधरा की राह इस बार आसान नहीं होगी। लेकिन, ओवैसी के उम्मीदवार को पूरी तरह से खारिज कर देना भी बड़ी भूल साबित हो सकती है। गोधरा सीट पर दूसरे चरण में 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। वोटों की गिनती सभी 182 सीटों पर 8 दिसंबर को होगी।