Tripura Election: चुनावों से पहले क्यों गरमाया त्रिपुरा में ‘ग्रेटर टिपरालैंड का मुद्दा
आदिवासी समुदाय के लोगों का आरोप है कि उनकी संस्कृति बाहर से आए लोगों के कारण खत्म हो रही है। इसलिए त्रिपुरा के स्थानीय संगठन मिलकर अलग राज्य की मांग कर रहे हैं।
60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा में 16 फरवरी को मतदान होना है। नामांकन भरने की आखिरी तिथि 30 जनवरी है और मतगणना दो मार्च को होगी। गौर करने वाली बात यह है कि साल 2018 में भाजपा ने सीपीआई (एम) के 20 साल के शासन को समाप्त कर त्रिपुरा में पहली बार सरकार बनाई थी। लेकिन, इस बार मामला 'ग्रेटर टिपरालैंड' को लेकर फंस गया है।
दरअसल त्रिपुरा में कई आदिवासी संगठनों ने क्षेत्र में स्वदेशी समुदायों के लिये एक अलग राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की मांग के लिये हाथ मिलाया है। टिपरा मोथा (TIPRA टिपरा इंडिजिनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायंस) और IPFT (इंडिजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) ये दोनों वहां की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां हैं। IPTF ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार IPTF अब दूसरी क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा के साथ बातचीत कर रही है। वहीं दूसरी तरफ चुनाव में गठबंधन को लेकर टिपरा और बीजेपी के बीच भी बातचीत चल रही है लेकिन अबतक कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका है।
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक 24 जनवरी को टिपरा मोथा ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इसके एक दिन बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने TIPRA के प्रमुख महाराज प्रद्योत देबबर्मन को ग्रेटर टिपरालैंड की मांग पर चर्चा के लिए दिल्ली बुलाया। रिपोर्ट के मुताबिक टिपरा मोथा को 'टिपरालैंड' मामले पर ना तो भाजपा से और ना ही कांग्रेस से कोई लिखित आश्वासन मिला है। हालांकि, बातचीत जरूर चल रही है। उनका कहना है कि अगर हमारी मांग को गृह मंत्रालय स्वीकार करता है तो हमें भाजपा के साथ आगामी चुनाव में उतरने में कोई दिक्कत नहीं है।
आखिर
क्या
है
'ग्रेटर
टिपरालैंड'
का
मुद्दा
यह
मुद्दा
लोगों
के
ध्यान
में
आया
जब
त्रिपुरा
के
जनजातीय
गुटों
ने
अलग
राज्य
की
मांग
को
लेकर
दिसंबर
2021
में
दिल्ली
में
जंतर-मंतर
पर
धरना
दिया
था।
तब
मौखिक
तौर
पर
कांग्रेस,
शिवसेना
और
आम
आदमी
पार्टी
ने
उनका
सपोर्ट
किया
पर
सीधे
पर
वो
भी
बचते
दिखे।
अलग
राज्य
की
मांग
के
समर्थन
में
टिपरा
मोथा
और
आईपीएफटी
जैसे
प्रतिद्वंद्वी
क्षेत्रीय
राजनीतिक
दल
भी
एक
साथ
आ
गये।
दरअसल
यह
दल
त्रिपुरा
के
जनजातीय
समुदायों
के
लिए
एक
अलग
'ग्रेटर
टिपरालैंड'
राज्य
की
मांग
कर
रहे
है।
इनकी
मांग
है
कि
केंद्र
सरकार
संविधान
के
अनुच्छेद-2
और
3
के
तहत
एक
अलग
राज्य
बनाये।
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव से पहले TMC-CPM को बड़ा झटका, दो बड़े नेता भाजपा में शामिल
आखिर
क्यों
उठी
ये
मांग?
त्रिपुरा
में
कुल
19
अनुसूचित
जनजातियां
हैं
जिनमें
त्रिपुरी
(तिपरा
और
तिपरासा)
बहुसंख्यक
हैं।
2011
की
जनगणना
के
अनुसार
राज्य
में
5.92
लाख
त्रिपुरी,
1.88
लाख
रियांग
और
83
हजार
जमातिया
हैं।
त्रिपुरा
में
70
प्रतिशत
बंगाली
और
30
प्रतिशत
आदिवासी
आबादी
रहती
है।
साल
2011
की
जनगणना
के
अनुसार,
त्रिपुरा
एक
हिंदू
बहुल
राज्य
हैं।
प्रदेश
की
लगभग
37
लाख
कुल
आबादी
में
हिंदू
83.40
प्रतिशत
है।
मुसलमानों
की
आबादी
8.60
प्रतिशत
और
तीसरे
नंबर
पर
3.2
प्रतिशत
आबादी
ईसाइयों
की
है।
जिसमें
से
13
लाख
के
करीब
जनसंख्या
ओबीसी
की
है।
त्रिपुरा पर 13वीं शताब्दी से लेकर 15 अक्तूबर 1949 में भारत सरकार के साथ विलय संधि पर हस्ताक्षर किये जाने तक माणिक्य राजवंश का शासन था। इसी के बाद त्रिपुरा की जनभौगोलिक स्थिति में काफी बदलाव आने लगा, जिसके बाद से वहां के जनजातीय समुदाय चिंतित रहने लगे। क्योंकि वो धीरे-धीरे करके अल्पसंख्यक बनते जा रहे थे।
जब देश आजाद हुआ तो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से 1947 से 1971 के बीच लाखों लोग पलायन करके धीरे-धीरे त्रिपुरा में आकर बसने लगे। यही कारण है कि जो जनजातीय समुदाय वहां बहुमत में था, वो धीरे-धीरे कम होता चला गया और पलायन कर आये बंगाली समुदाय बड़ी संख्या में हो गये। गौर करने वाली बात यह है कि बांग्लादेश के साथ त्रिपुरा की 860 किलोमीटर सीमा लगती है। इसी को लेकर इन जनजातीय समुदाय के लोगों का कहना है कि हमारी संस्कृति पर बंगाली संस्कृति हावी हो गयी है। हमारे घर से हमें निकाला जा रहा है। इसलिए हम जनजातीयों के लिए अलग से राज्य की घोषणा करें।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ये जनजातीय संगठन त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद यानि TTAADC के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों को लेकर अलग राज्य ग्रेटर टिपरालैंड बनाने की मांग कर रहे हैं। इसी को लेकर राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 20 अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं।
क्या
है
TTAADC?
दरअसल
त्रिपुरा
के
आदिवासी
लोग
अपने
जीवन
जीने,
उनके
विशिष्ट
तरीकों
को
संरक्षित
करने
और
बढ़ावा
देने
के
लिए
लंबे
समय
से
स्वायत्तता
(autonomy)
की
मांग
कर
रहे
थे।
इसे
देखते
हुए
राज्य
सरकार
के
साथ-साथ
केंद्र
सरकार
ने
आदिवासी
प्रभावी
इलाकों
में
आंतरिक
स्वायत्तता
शुरू
करने
के
लिए
मुख्य
रूप
से
राज्य
की
जनजातीय
आबादी
वाले
क्षेत्रों
के
लिए
एक
स्वायत्त
जिला
परिषद
स्थापित
करने
का
निर्णय
लिया।
ताकि
आदिवासियों
की
आबादी
के
हिसाब
से
इनके
सामाजिक,
आर्थिक
और
सांस्कृतिक
तरीकों
की
रक्षा
हो
सके।
इसलिए साल 1985 में स्थापित त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) को संविधान की 6वीं अनुसूची के तहत कार्यकारी और विधायी शक्तियां दी गईं, जिसका उद्देश्य जनजातीय क्षेत्रों को आंतरिक स्वायत्तता देना और लोगों को सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सुरक्षा प्रदान करना था। टीटीएएडीसी, जिसे 'मिनी स्टेट असेंबली' भी कहा जाता है। TTAADC की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक मौजूदा समय में त्रिपुरा के करीब 70 प्रतिशत (7,132.56 वर्ग किमी) भूमि क्षेत्र का प्रशासन संभालने की जिम्मेदारी है।