Tablighi Jamaat: क्या है तब्लीगी जमात, आतंकवाद से इसका क्या संबंध है?
अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी एफबीआई के अनुसार तब्लीगी जमात इस्लामिक जिहादी तैयार करने वाला विश्व का सबसे बड़ा संगठन है। दुनिया भर के 150 से अधिक देशों में इसके 20 से 30 करोड़ सदस्य हैं।
मई 2022 में एक टीवी चैनल पर ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर बहस चल रही थी। बहस में मौलाना तस्लीम रहमानी ने हिंदू धर्म के बारे में कुछ अशोभनीय टिप्पणी की। इसके जवाब में भाजपा की तत्कालीन प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर मोहम्मद की चौथी पत्नी आयशा की आयु के बारे में एक टिप्पणी कर दी, जिस पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने भारी विवाद खड़ा कर दिया। जब यह विवाद सोशल मीडिया के जरिए देश-विदेश में बढ़ा तो भाजपा ने नूपुर को पार्टी से निलंबित कर दिया।
लेकिन, यह विवाद शांत नहीं हुआ। कुछ दिनों बाद उदयपुर में एक दर्जी का काम करने वाले कन्हैयालाल ने नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया। इसके कुछ दिन बाद इस्लामिक जिहादी रियाज अत्तारी तथा गौस मोहम्मद ने 28 जून को उनकी दुकान में घुसकर निर्मम हत्या कर दी।
लेकिन इससे पहले 21 जून को अमरावती में उमेश कोल्हे की भी हत्या जिहादियों द्वारा कर दी गयी थी। उमेश ने भी नूपुर शर्मा के पक्ष में वाट्सऐप पर एक पोस्ट शेयर किया था। अमरावती में दवा की दुकान चलाने वाले उमेश कोल्हे की रात घर लौटते समय हत्या की गयी थी। तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा शुरू में तो इसे आपसी विवाद बताकर इस हत्या के जिहादी पक्ष को दबाने की कोशिश की गई। मगर जब इस हत्या की जांच का जिम्मा एनआईए (NIA) को सौंप दिया गया, तो तुरंत आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
शुरुआत में ही NIA ने अदालत को बताया कि उमेश कोल्हे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार आरोपी जिहादी गतिविधियों में शामिल थे। आरोपी यूसुफ खान ने उमेश कोल्हे की हत्या की साजिश रची थी। अब एनआईए ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि उमेश कोल्हे की हत्या में जो लोग पकड़े गए हैं उनके संबंध तब्लीगी जमात से भी हैं। उन्होंने एक सोची-समझी साजिश के तहत इस हत्या को अंजाम दिया था, ताकि लोगों में डर का माहौल बनाया जा सके।"
कब
हुई
तब्लीगी
जमात
की
शुरुआत
तब्लीगी
जमात
की
स्थापना
साल
1926
में
देवबंदी
मौलाना
मोहम्मद
इलियास
कांधलवी
ने
वर्तमान
हरियाणा
के
मेवात
में
की
थी।
उन्होंने
देवबंद
स्थित
दारुल
उलूम
देवबंद
में
शिक्षा
प्राप्त
की
थी।
कट्टरपंथी
इलियास
को
यह
देखकर
क्रोध
आता
था
कि
मेवात
के
मुस्लिम
हिंदू
तौर
तरीकों
और
भारतीय
संस्कृति
का
पालन
करते
थे
और
अरबी
इस्लाम
की
जीवन
पद्धति
से
अनभिज्ञ
थे।
इसलिए
मुसलमानों
को
अरब
के
इस्लाम
के
अनुसार
जीवन
जीने
के
लिए
प्रेरित
करने
के
उद्देश्य
से
तबलीगी
जमात
की
स्थापना
की
गई।
इलियास के निधन के बाद उनका बेटा मौलाना मोहम्मद यूसुफ तब्लीगी जमात का दूसरा प्रमुख बना। जिसके बाद, अगले दो दशकों में तब्लीगी जमात दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका तक पहुंच गया। अरब में इसे जमात-अल-तब्लीग और पाकिस्तान में तहरीक-ए-ईमान कहा जाता है। इसके अलावा यह 1946 में ब्रिटेन में और 1952 में अमेरिका में पहुंच गया था। वर्तमान में तब्लीगी जमात के कई देशों में मुख्यालय स्थापित हैं, जिनमें रायविंड (पाकिस्तान), टोंगी (बांग्लादेश), निजामुद्दीन (दिल्ली) और ड्यूस्बरी (ब्रिटेन) प्रमुख हैं।
फिलहाल तब्लीगी जमात को अपनी गतिविधियों चलाने के लिए इसे कई विवादित संगठनों जैसे वर्ल्ड मुस्लिम लीग, वर्ल्ड असेंबली ऑफ मुस्लिम यूथ, हरमन फाउंडेशन, इस्लामिक रिलीफ ऑर्गेनाइजेशन इत्यादि से वित्तीय सहायता मिलती है।
क्या
काम
है
तब्लीगी
जमात
का
तब्लीगी
जमात
का
काम
अरबी
इस्लाम
का
प्रचार-प्रसार
करना
है।
यह
गैर-मुसलमानों
को
भी
इस्लाम
में
धर्मान्तरित
करने
के
बड़े
अभियानों
को
सुनियोजित
ढंग
से
चलाता
है।
दुनिया
भर
में
फैली
हुई
इसकी
मस्जिदें
इसका
केन्द्र
हैं।
इन
मस्जिदों
के
इमाम
हर
जुमा
(Friday)
को
अपने
खुत्बा
(प्रवचन)
में
इस
बात
पर
जोर
देते
हैं
कि
प्रत्येक
मुसलमान
का
यह
धार्मिक
कर्तव्य
है
कि
वह
हर
वर्ष
कम-से-कम
एक
महीना
इस्लाम
के
प्रचार
व
प्रसार
में
लगाए।
दावा
किया
जाता
है
कि
तब्लीगी
जमात
की
शाखाएं
विश्व
के
159
देशों
में
मौजूद
हैं।
इसके
अनुयायियों
की
संख्या
20
से
30
करोड़
तक
बताई
जाती
है।
पत्रकार
डेनियल
पर्ल
हत्याकांड
में
जमात
का
नाम
अमेरिकी
अखबार
वॉलस्ट्रीट
जर्नल
के
पत्रकार
डेनियल
पर्ल
की
हत्या
1
फरवरी
2002
को
कराची
में
हुई
थी।
पर्ल
की
हत्या
से
जुड़े
सभी
बड़े
नामों
का
तबलीगी
जमात
से
प्रत्यक्ष
सम्बन्ध
रहा
है।
दरअसल,
पर्ल
की
हत्या
में
पाकिस्तान
के
सिंध
हाईकोर्ट
ने
कुछ
दिनों
पहले
उमर
सईद
नाम
के
एक
आतंकी
को
रिहा
किया
था।
गौरतलब
है
कि
उमर
को
1999
में
कंधार
में
भारतीय
विमान
IC-814
के
बंधकों
को
छोड़ने
के
बदले
भारत
सरकार
द्वारा
रिहा
किया
गया
था।
उमर के ISI से बेहद करीबी सम्बन्ध है। अमेरिका में 9/11 हमलों में भी उसका नाम सामने आया था। पर्ल की हत्या से पहले उसकी मुलाकात मुबारक शाह गिलानी नाम के पाकिस्तानी आतंकी से होनी थी। यह अमेरिका में तबलीगी जमात के माध्यम से मुस्लिम ऑफ़ अमेरिका नाम की संस्था चलाता था। इसके माध्यम से वह मुजाहिद्दीन की ट्रेनिंग के लिए अमेरिकी-यूरोपियन मुसलमानों को पाकिस्तान भेजता था। तबलीगी जमात के माध्यम से मुस्लिम ऑफ़ अमेरिका के कई आतंकी पाकिस्तान ट्रेनिंग के लिए गए थे।
2001 में रिचर्ड रीड नामक एक आतंकी का नाम सामने आया, जिसने एक अमेरिकी विमान को अपने जूते में रखे बम से उड़ाने की नाकाम कोशिश की थी। पर्ल इसी आतंकी के गिलानी के साथ संबंध का पता लगाने पाकिस्तान गए थे। रिचर्ड अलकायदा का आतंकी था, जोकि तब्लीगी जमात के कई सम्मेलनों में भाग ले चुका था। ऐसी संभावना है कि तब्लीगी जमात के माध्यम से ही उसका ब्रेनवाश किया गया था।
रिचर्ड रीड को अलकायदा का आतंकी खालिद शेख ऑपरेट करता था। खालिद शेख भी तबलीगी जमात के कई आतंकियों के संपर्क में रहता था। खालिद शेख ने तबलीगी जमात के एक आतंकी को अमेरिका में ब्रिज उड़ाने के लिए कहा था। हालांकि, ऐसा संभव नहीं हो सका। खालिद शेख फिलहाल अमेरिकी एजेंसियों के कब्जे में है।
कोरोना
और
तब्लीगी
जमात
केंद्रीय
स्वास्थ्य
मंत्रालय
ने
भारत
में
कोरोना
के
प्रसार
में
तब्लीगी
जमात
को
जिम्मेदार
बताया
था।
दरअसल,
भारत
में
कोरोना
के
चलते
लॉकडाउन
के
दौरान
देश-विदेश
से
आए
तब्लीगी
जमात
के
लोगों
ने
निजामुद्दीन
स्थित
तब्लीगी
मरकज
की
बैठक
में
हिस्सा
लिया।
इस
दौरान
उन्होंने
सोशल
डिस्टेंसिंग
का
जरा
भी
ध्यान
नहीं
रखा।
इसके
चलते
कई
जमाती
कोरोना
संक्रमित
हो
गए
और
उन्होंने
बेपरवाह
होकर
देश
के
विभिन्न
हिस्सों
में
यात्रा
की।
इससे देश में कोरोना संक्रमण में बढ़ोतरी हुई। जब जमातियों को जांच और इलाज के लिए अस्पतालों में दाखिल कराया गया तो उन्होंने डॉक्टर्स और नर्सों के साथ दुर्व्यवहार भी किया। इस दौरान तब्लीगी जमात के अमीर मौलाना साद भूमिगत हो गए और वे पुलिस के खोजने पर भी नहीं मिले।