सोनपुर मेला : जहां अंग्रेज पहुंचते थे छुट्टियां मनाने
पटना।
आज
भले
ही
सोनपुर
मेले
में
सैलानियों
और
व्यापारियों
को
आकर्षित
करने
के
लिए
मार्केटिंग
की
जा
रही
हो
तथा
विदेशी
सैलानियों
को
ठहरने
के
लिए
'स्विस
कॉटेज'
तक
का
निर्माण
कराया
जा
रहा
हो,
मगर
आज
की
युवा
पीढ़ी
को
शायद
ही
इस
बात
का
ध्यान
होगा
कि
यहां
प्राचीन
समय
में
'अंग्रेजी
बाजार'
लगा
करता
था
और
घुड़दौड़
(हॉर्स
रेस)
का
आयोजन
किया
जाता
था।
कभी लगती थी यूरोपियन कारोबारियों की भीड़
पुराने समय में लगने वाले बाजार में न सिर्फ ब्रिटिश अधिकारियों, बल्कि एंग्लो-इंडिय और यूरोपीय कारोबारियों का एक महीने तक जमघट लगा रहता था जो किसी सालाना जलसे से कम नहीं होता था।
प्राचीन लोगों की मानें तो उस दौरान इस एकांत स्थान पर लगे शिविरों में देश के अलग-अलग शहरों में रहने वाले ब्रिटिश अधिकारी और कारोबारी जुटते थे और यहीं पर आम-आवाम अपनी फरियाद करने भी आते थे।
सोनपुर मेले के इतिहास पर गौर करें तो इस बाजार का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि उस समय इस बाजार में ब्रिटिशकालीन बंगाल प्रांत के कई लेफ्टिनेंट गवर्नर भी पहुंचते थे।
इंग्लैंड की जगह सोनपुर
सोनपुर क्षेत्र के एक सेवानिवृत्त शिक्षक रामेश्वर पांडेय कहते हैं कि फिरंगियों के साथ-साथ यहां निलहे कारोबारी भी जुटते थे। फिरंगी अफसरों को छुट्टियां मनाने के लिए वापस इंग्लैंड लौटने की छूट नहीं होती थी, यही कारण है कि उन्होंने छुट्टियां मनाने के लिए इस एकांत स्थान को चुना था। उस समय यहां कई खेलों का भी आयोजन भी होता था, जिसका अधिकारी और कारोबारी लुत्फ उठाते थे।
कहा जाता है कि अंग्रेजों के जमाने में यहां क्रिकेट, पोलो और गोल्फ जैसे खेलों का आयोजन होता था। हाजीपुर के पुराने लोगों का मानना है कि ब्रिटिशकालीन दस्तावेजों में इस बात का जिक्र है कि सोनपुर में शामिल होने के लिए अधिकारियों द्वारा बाकायदा निर्देश दिया जाता था और इसकी तैयारी की जाती थी।
घोड़ों का बाजार
हाजीपुर के एक कालेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्याम नारायण चौधरी कहते हैं, "इस बाजार को वर्ष 1801 में औपचरिक रूप से घोड़ों के बाजार के तौर पर मान्यता दे दी गई थी। उस समय यहीं से जरूरत के मुताबिक अंग्रेज अधिकारी प्रशासनिक जरूरतों और सेना की जरूरतों के मुताबिक घोड़ा खरीदते थे।"
उन्होंने ब्रिटिश दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा कि यहां हॉर्स रेस का आयोजन होता था और इसके लिए बाजाप्ता रेस कोर्स ग्राउंड बनाया गया। यहां रात्रिभोज का आयोजन भी किया जाता था। अंग्रेजों के दौर से शुरू यह परंपरा आज भी जारी है। कालांतर में यह स्थान हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व का केंद्र बन गया। आज भी सोनपुर मेला आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक महत्व का क्षेत्र बना हुआ है।
सोनपुर
में
ही
बनी
थी
1857
की
एक
अहम
योजना
प्रो.
चौधरी
बताते
हैं
कि
प्रथम
स्वतंत्रता
संग्राम
(1857)
की
एक
बड़ी
योजना
सोनपुर
में
ही
तय
हुई
थी।
वीर
कुंवर
सिंह
यहां
पर
न
केवल
गुप्त
बैठक
किया
करते
थे,
बल्कि
सोनपुर
मेले
से
घोड़ों
की
खरीदारी
भी
किया
करते
थे।
ब्रिटिश शासन में कलकत्ता (अब कोलकाता) की जगह दिल्ली को देश की राजधानी बनाए जाने के बाद सोनपुर उनकी पहुंच से दूर होता चला गया और अंग्रेजों का यहां आना धीरे-धीरे कम होता गया। फिर भी सोनपुर मेला का महत्व जस का तस रह गया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।