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Rajasthan Royals: आज भी राजघरानों का है राजस्थान की राजनीति में हस्तक्षेप, जानें इनके नाम

स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी राजस्थान में मुख्यमंत्री से लेकर एमपी और एमएलए के चुनावों में राजस्थान के राजपरिवारों का हस्तक्षेप कम नहीं हुआ है।

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Rajasthan Royals: आजादी के बाद, राज परिवारों की सत्ता लोकतांत्रिक सरकार के हाथ में आ गई लेकिन आज भी ऐसे अनेक राजपरिवार के सदस्य हैं, जो लोकसभा और विधानसभा में रहकर सत्ता पर पकड़ बनाए हुए हैं। वे कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष रूप से अपने हितों के अनुसार विभिन्न राजनीतिक दलों का समर्थन करते रहते हैं।

वहीं राजनीतिक दलों ने भी हमेशा इन राजघरानों को आगे लाने का काम किया है। प्रदेश की राजनीति का एक सच एक यह भी है कि राजपरिवारों की राजनीतिक आस्था माहौल के मुताबिक बदलती रही है। आजादी के बाद यह राजघराने कभी स्वतंत्र पार्टी के साथ रहे तो कभी जनसंघ या भाजपा के साथ। इन्होंने कांग्रेस को भी समर्थन दिया और राजपरिवारों से जुड़े कई सदस्य संसद और विधानसभा में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर पहुंचे ।

धौलपुर राजपरिवार - वसुंधरा राजे के हाथ में 20 सालों से बीजेपी की कमान

धौलपुर राज परिवार की बहू वसुंधरा राजे दो बार प्रदेश की सीएम बनी। वह झालावाड़ से पांच बार सांसद रही। पिछले दो लोकसभा चुनावों से उनके पुत्र दुष्यंतसिंह चुनाव मैदान में है। इस परिवार की आस्था हमेशा भाजपा के साथ रही है। वसुंधरा राजे धौलपुर से विधायक भी रही हैं। पिछले दो दशक से राजस्थान में भाजपा की कमान वसुंधरा राजे के हाथ में ही है। भाजपा चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में रहे वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही पार्टी के निर्णय होते आए हैं। इस साल के अंत में राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में प्रदेश में वसुंधरा की प्रभावी भूमिका मानी जा रही है। कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की प्रबल संभावना है।

जयपुर राजपरिवार - दादी और अब पोती सांसद

जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से सांसद रही। उनके पुत्र एवं जयपुर राजघराने के पूर्व महाराजा कर्नल भवानीसिंह ने 1989 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। उनकी बेटी दिया कुमारी वर्तमान में भाजपा से सांसद है। दीया कुमारी ने अपनी दादी राजमाता गायत्री देवी के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में कदम रखा। दिया कुमारी पहले सवाई माधोपुर से भाजपा की टिकट पर विधायक बनीं। मौजूदा वक्त में वह राजसमंद से लोकसभा सांसद हैं। 2019 के चुनाव में उनको 5,519,16 वोटों से बड़ी जीत मिली थी।

जोधपुर राजघराना - बहन को जिताने के लिए कांग्रेस का समर्थन

जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह ने कभी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन उनके संबंध भाजपा नेताओं से अच्छे रहे। भैरोंसिंह शेखावत की सरकार के दौरान वह राजस्थान पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन रहे। लोकसभा व विधानसभा में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार भी करते रहे। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी बहन चन्द्रेश कुमारी कांग्रेस से टिकट ले आई। राजपरिवार ने चन्द्रेश कुमारी के पक्ष में प्रचार किया। अपनी बहन के लिए गजसिंह ने लोगों के बीच जाकर वोट मांगे और चन्द्रेश कुमारी चुनाव जीतकर केन्द्र में मंत्री बनी। चन्द्रेश कुमारी का ससुराल हिमाचल प्रदेश में है। वे वहां भी विधायक रह चुकी हैं।

पूर्व नरेश ने जसोल के समर्थन में निकाली थी रैली

3 जनवरी 1938 को बाड़मेर के जसोल में जन्में जसवंत सिंह ने 1989 में जोधपुर संसदीय सीट से सीएम गहलोत को हराकर सनसनी फैला दी थी। इन चुनावों में पहली बार पूर्व नरेश गजसिंह ने अपने पूर्व सहायक जसोल के समर्थन में जनसंपर्क रैली निकाली थी, जो शहर के भीतरी भागों से होते हुए घंटाघर पर संपन्न हुई थी‌। इस दौरान पूर्व नरेश व जसोल को आम जनता का भरपूर समर्थन मिला था। जसोल ने गहलोत को 66 हजार से अधिक मतों से हराकर पहली बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र को भाजपा की झोली में डाला था। जोधपुर संभाग में जोधपुर के पूर्व राजपरिवार का काफी प्रभाव है। इससे पहले खींवसर के गजेन्द्र सिंह को तीन बार विधानसभा का चुनाव जितवाने में भी जोधपुर के पूर्व नरेश की प्रभावी भूमिका रही है।

अलवर राजघराना - दोनो हाथों में लड्डू

अलवर राजघराने के भंवर जितेन्द्र सिंह कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव होने के साथ ही पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के खास माने जाते हैं। पिछली मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे जितेन्द्र सिंह का अलवर जिले में खासा प्रभाव है। जिले के पांच से छह विधानसभा क्षेत्रों में जितेन्द्र सिंह के इशारे पर ही हार और जीत होती है। हालांकि पहली बार उनकी मां महेन्द्र कुमारी राजनीति में भाजपा के सहारे उतरी। वह 1991 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती। लेकिन 1998 में वे निर्दलीय और फिर 1999 में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरी। दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

समय के साथ बदलता रहा है भरतपुर राजपरिवार

भाजपा की टिकट पर दो बार सांसद रहने वाले भरतपुर राजघराने के विश्वेंद्रसिंह अब कांग्रेस में है। वह जनता दल के टिकट पर 1989 और वर्ष 1999 व 2004 में भाजपा के टिकट पर भरतपुर से सांसद रहे। वह डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से वर्तमान में कांग्रेस पार्टी से विधायक है। उनके चाचा स्व. मानसिंह भी विधायक रहे और उनकी बेटी कृष्णेन्द्र कौर वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रही थी।

कोटा, उदयपुर, बीकानेर और जैसलमेर राजघरानों का दखल

कोटा राजघराने के इज्यराज सिंह एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। बीकानेर राजघराने की सदस्य सिद्धी कुमारी वर्तमान में भाजपा विधायक है।

बीकानेर राजपरिवार पहले स्वतंत्र पार्टी और फिर भाजपा के साथ रहा है। जबकि उदयपुर राजपरिवार के सदस्य महेन्द्र सिंह मेवाड़ ने एक बार कांग्रेस के टिकट पर चित्तौड़गढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा था जिसमें लगभग 190000 वोटों से जीत मिली थी। वर्तमान में उदयपुर रियासत के राजकुमार लक्ष्यराज सिंह के राजनीति में उतरने को लेकर चर्चा जोरों पर हैं। वहीं जैसलमेर राजपरिवार के सदस्य विक्रम सिंह ने बीजेपी से 2023 के विधानसभा चुनाव में एमएलए की दावेदारी जता दी है।

छोटे ठिकानेदारों ने भी अजमाई किस्मत

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भिंडर के रणधीर सिंह वर्तमान में निर्दलीय विधायक हैं। शाहपुरा के राव राजेन्द्र सिंह भाजपा के टिकट पर तीन बार चुनाव जीत चुके हैं और वर्तमान में विधानसभा में उपाध्यक्ष है। चौमू की रूक्समणी कुमारी आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर तैयारी में है।

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English summary
rajasthan political vasundhara raje royal families interfere in the politics of Rajasthan
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