#Flashback2016:पांच वर्षों में घाटी के लिए सबसे खराब साल
जुलाई में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत से सुलगी घाटी और वर्ष 2016 बन गया जम्मू कश्मीर के लिए 10 वर्षों में सबसे खराब साल।
श्रीनगर। वर्ष 2016 को खत्म होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं। अगर आप में से कुछ लोग इस वर्ष को कुछ खास बातों की वजह से बार-बार याद करना चाहेंगे तो वहीं शायद जम्मू कश्मीर के लोग इस साल को याद ही नहीं करना चाहेंगे।
वानी की मौत से बिगड़ा माहौल
पहले वर्ष 2014 और फिर वर्ष 2015 में आई बाढ़ की वजह से घाटी की जनता को उम्मीद थी कि यह वर्ष कुछ अच्छा हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
आतंकी घटनाओं ने इस वर्ष आम नागरिकों की नाक में दम कर रखा था। जुलाई आते-आते माहौल पूरा बिगड़ा गया और जो कुछ हुआ उस पर किसी को भी एक पल को यकीन नहीं हो पाया।
आठ जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को एक एनकाउंटर में मार गिराया गया और देखते-देखते पूरी घाटी सुलगने लगी।
साउथ कश्मीर के त्राल में वानी ईद का जश्न मनाने पहुंचा था। उसके साथ हिजबुल के दो आतंकी और थे।
वानी के जनाजे में 200,000 लोग इकट्ठा हुए थे। 40 प्रार्थना सभाएं हुई और आतंकियों ने वानी को 21 बंदूकों की सलामी भी दी।
यहां से घाटी को सुलगाने की साजिश की शुरुआत हुई और 10 जुलाई से विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया।
10 जुलाई तक 20 लोगों की इन विरोध प्रदर्शनों में मौत हो चुकी थी वहीं सीआरपीएफ के 300 जवान भी घायल हो चुके थे।
कर्फ्यू, पत्थरबाजी और पैलेट गन
वर्ष 2016 की शुरुआत में इंटेलीजेंस एजेंसी की ओर से राज्य में अलर्ट जारी किया गया और कहा गया कि राज्य में आतंकवाद और चरमपंथ ने अपने पैर पसार लिए हैं।
जुलाई में वानी की मौत के बाद यह दोनों ही बातें सच साबित हो गई। 15 जुलाई को घाटी में कर्फ्यू लगाया गया। सभी मोबाइल फोन नेटवर्क को ठप कर दिया गया। इस कर्फ्यू ने पहले 50 दिन और फिर 100 दिन पूरे कर लिए।
कश्मीर घाटी में कर्फ्यू ने भी नया रिकॉर्ड बनाया। वानी की मौत से कश्मीर में पत्थर बाजी की घटनाओं के बाद विरोध प्रदर्शनों की झड़ी लग गई।
इन विरोध प्रदर्शनों को काबू में करने के लिए 13 जुलाई से सुरक्षाबलों ने पैलेट गन का सहारा लेना शुरू किया। वर्ष 2010 में कश्मीर में तनाव के दौरान पैलेट गन का प्रयोग शुरू हुआ था।
छह वर्ष बाद फिर से इस पैलेट गन का बहुतायत प्रयोग सुरक्षाबलों ने किया। जिसकी वजह से एक नए विवाद ने जन्म लिया।
घाटी में बीएएफ की वापसी
12 वर्ष बाद घाटी में बीएसएफ की वापसी हुई और इसकी वजह थी बेकाबू हालात। वर्ष 2004 में बीएसएफ को कश्मीर से हटा लिया गया था।जुलाई में घाटी में लगी आग ने 85 से ज्यादा नागरिकों को लील लिया।
13,000 नागरिक घायल हुए। वहीं सुरक्षाबलों के दो जवान शहीद हुए तो 4,000 से ज्यादा जवान यहां पर घायल हुए। साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक वर्ष 2016 में हिंसा की वजह से घाटी में 233 मौतें हुई हैं।
चार वर्षों में बढ़ा आतंकवाद
वहीं सरकार की ओर से पेश आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि इस वर्ष घाटी में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में खासा इजाफा हुआ है।
पिछले चार वर्षों में घाटी में आतंकवाद से जुड़ी हिंसा में वर्ष 2016 में 47 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 में आतंकियों की मौत में 300 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई।