Riots after Morocco loss: मोरक्को हारा तो फ्रांस-बेल्जियम में क्यों लगी ‘आग’, इस्लाम से क्यों जुड़ा ये मुद्दा
कतर में खेले जा रहे FIFA वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल मैच में फ्रांस ने मोरक्को को 2-0 से हरा दिया। इसके बाद फ्रांस व अन्य कई यूरोपीय देशों में मोरक्को के समर्थकों ने जमकर उत्पात मचाया और आगजनी की।
Riots after Morocco loss: अगर भविष्य में कभी भी दुनिया के सबसे विवादित फीफा वर्ल्डकप की बात होगी तो उसमें सबसे पहला नाम कतर फीफा वर्ल्डकप 2022 का होगा। चाहे वो पहले वर्ल्डकप आयोजन के लिए घूस देना, ऐल्कोहल पर बैन लगाना, महिलाओं के कपड़ों पर प्रतिबंध और खेल की आड़ में एक विशेष धर्म को प्रमोट करना। इस बीच अब सवाल ये उठता है कि खेल में तो हार जीत होती है पर दंगे का यहां क्या स्थान है? आखिर मोरक्को से फ्रांस की जीत के बाद क्यों साम्प्रदायिकता की आग में जल गया फ्रांस? फुटबॉल के खेल में आखिर नस्ली और साम्प्रदायिक घृणा कहां से आ गयी?
जानिए क्या है पूरा मामला
कतर में फीफा वर्ल्डकप के सेमीफाइनल मैच में जब बुधवार को फ्रांस ने मोरक्को को 2 गोल से हराया तो बवाल हो गया लेकिन इस बार ये बवाल कतर में नहीं बल्कि फ्रांस और बेल्जियम में हुआ। जहां मोरक्को के समर्थकों ने जमकर आगजनी की और उत्पात मचाया।
इस्लामिक ब्रदरहुड
वर्ल्ड कप की शुरुआत में किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि मोरक्को जैसा देश सेमीफाइनल तक पहुंचेगा लेकिन बीते बुधवार को मोरक्को, फ्रांस के साथ सेमीफाइनल मैच खेला और हार गया। हालांकि, इस तरह का करिश्मा करने वाला मोरक्को पहला अफ्रीकी देश है, जिसने सेमीफाइनल में अपनी बनाई। मोरक्को, स्पेन और पुर्तगाल को भी हराकर यहां तक पहुंचा था लेकिन बड़ी बात ये है कि मोरक्को जब-जब मैच जीतता उसके खिलाड़ी मैदान पर ही नमाज पढ़ते थे और उन्होंने अपनी जीत को हमेशा इस्लाम की जीत से जोड़कर प्रमोट किया। वहीं कई मुस्लिम हस्तियां ट्विटर, सोशल मीडिया और वेबसाइटों पर मोरक्को की जीत को हर बार इस्लाम की जीत की तरह बताती रहीं। बता दें कि अफ्रीकी देश मोरक्को एक इस्लामिक राष्ट्र है।
निशाने पर थे 'इमैनुएल मैक्रों'
दरअसल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों लगातार फ्री स्पीच की बात कहते रहे हैं। साथ ही पैगंबर मोहम्मद और इस्लाम की आलोचना के भी उन पर आरोप लगते रहे हैं। तभी सोशल मीडिया पर मोरक्को द्वारा फ्रांस को हराना मैक्रों को एक कड़ा संदेश देना था। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और सेमीफाइनल मैच में मोरक्को की हार के बाद फ्रांस के कई शहरों में दोनों टीमों के समर्थकों के बीच बवाल देखने को मिला।
फ्रांस और बेल्जियम में कहां से आए मोरक्को समर्थक?
आपको बता दें कि 19वीं शाताब्दी की शुरुआत में फ्रांस एक शक्तिशाली देश था। साल 1912 में फ्रांस मोरक्को का संरक्षक बन गया था। वहीं दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मोरक्को में आजादी की मांग उठने लगी और फिर 1956 में मोरक्को को आजादी मिली। मोरक्को में फ्रांस का प्रभाव रहा इसलिए यहां के लोग अरबी भाषा के अलावा फ्रेंच भाषा भी आसानी से बोलते थे। बाद में भाषा के इसी ज्ञान की वजह से मोरक्को के निवासी फ्रांस और बेल्जियम में शरण लेने लगे।
वहीं उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को, यूरोपीय देशों फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और बोल्जियम का पड़ोसी है। मोरक्को में पहले रोमन सामाज्य का शासन था फिर यूनानियों ने इस पर प्रभाव जमाया। 7वीं शताब्दी में अरब के लोग यहां आये और उन्होंने इस्लाम का प्रचार किया और पूरे देश में इस्लामीकरण हो गया। आज मोरक्को की तकरीबन 98% आबादी इस्लाम को मानती है।
फ्रांस का मोरक्को पर रहा है असर
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय देश फ्रांस और बेल्जियम में भी नवनिर्माण की शुरुआत हुई थी। जिसके लिए मजदूरों की जरूरत थी और अफ्रीकी देश मोरक्को तब फ्रांस के दबदबे में था और सस्ते मजदूर होने के साथ-साथ नजदीक भी था। साथ ही फ्रांस का प्रभाव होने की वजह से स्थानीय लोग फ्रेंच भाषा समझते और बोलते थे। इसलिए वहां के श्रमिकों को अहमियत दी गयी। जबकि मोरक्को से आने वाले श्रमिक मुस्लिम समुदाय के थे। धीरे-धीरे फ्रांस समेत बेल्जियम में भी मुस्लिम समुदाय की एक बड़ी आबादी बस गयी। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अलग होने के कारण मोरक्को मूल के लोग, फ्रांस और बेल्जियम जैसे देश के ईसाई लोगों से घुलमिल नहीं पाये। धीरे-धीरे दोनों में पूर्वाग्रह और अविश्वास बढ़ने लगा। मोरक्को मूल के लोग कई पीढ़ियों से फ्रांस के नागरिक हैं लेकिन अब भी उनका प्रेम मोरक्को के प्रति बना हुआ है। यही वजह है कि वो फ्रांस और बेल्जियम में रहते हुए भी मोरक्को (इस्लाम धर्म की वजह से) को अपना मानते हैं और जब फ्रांस ने सेमीफाइनल मैच में मोरक्को को हराया तो वहां के मोरक्को समर्थित मुस्लिम इस जीत को पचा नहीं सके और उसका असर फ्रांस के कई शहरों समेत बेल्जियम के शहरों में भी दिखा।
फ्रांस में मुसलमानों की संख्या
द इकोनॉमिस्ट के अनुसार 2008 में फ़्रांस की राजधानी पेरिस और उसके महानगरीय क्षेत्र में यूरोपीय संघ के किसी भी शहर की अपेक्षा मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या (1.7 मिलियन) है। वहीं 2019 के अनुमानों के अनुसार, पेरिस और उसके महानगरीय क्षेत्र में यूरोप के किसी भी शहर से मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या (2.8 मिलियन) है। वहीं 2017 के प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम आबादी फ्रांस की कुल आबादी का 5,720,000 यानि 8.8% हिस्सा है। फ्रांस में अधिकांश मुसलमान सुन्नी संप्रदाय के हैं।
इन बड़े नेताओं ने दी 'इस्लाम की हवा'
यह पूरा विवाद देखें तो स्टार फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के देश पुर्तगाल पर मोरक्को की जीत से शुरू हुआ। जीत के बाद कुछ खिलाड़ी मैदान पर सजदा करते दिखे तो अरब देशों में जश्न का माहौल छा गया।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोरक्को की जीत पर लिखा- पुर्तगाल पर मोरक्को की जीत और फीफा वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पहुंचने पर बधाई। पहली बार अरब, अफ्रीकी और एक मुस्लिम टीम फीफा वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पहुंची है।
जर्मनी के पूर्व स्टार फुटबॉलर मेसुत ओजिल ने भी ट्वीट करके लिखा- क्या बेहतरीन टीम है मोरक्को! मुझे गर्व है। अफ्रीकी महाद्वीप और मुस्लिम दुनिया के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।
दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने भी ट्वीट किया कि एटलस के शेरों को बधाई। आप अपने प्रशंसकों और दुनिया भर के अरब परिवारों के लिए खुशियां लेकर आए हैं। हमारा सपना अब और बड़ा होता जा रहा है ताकी हम और कामयाबी हासिल कर सकें।
यह भी पढ़ें: FIFA World Cup Final: अर्जेंटीना-फ़्रांस का फाइनल कब और कहां देखें, भारत में टाइम क्या रहेगा, जानें पूरी डिटेल