33 साल बाद दिखा 'सुपर ब्लड मून', जानिए रोचक तथ्य
नई दिल्ली। रविवार रात को अमेरिका को आकाश में उस समय दुर्लभ खगोलीय नजारा देखने को मिला जब 'सुपर ब्लड मून' के साथ पूर्ण चंद्रग्रहण भी पड़ा। सुर्ख लाल चंद्रमा को लेकर लोगों के अंदर सारी जिज्ञासाएं तब शांत हुईं, जब आसमान में लाल चंद्रमा दिखाई दिया। आपके मन में भी होगी इसीलिये आपने इस खबर पर क्लिक किया है। क्लिक कर ही दिया है, तो हम आपको निराश नहीं करेंगे। चलिये जानते हैं ये है क्या।
क्या होता है 'सुपरमून'
जब मून यानी चंद्रमा अपने आकार से बड़ा दिखायी देता है तो उसे 'सुपरमून' कहते हैं। ऐसा तब होता है जब चंद्रमा अपेक्षाकृत पृथ्वी के पास चला आता है। चंद्रमा जैसे ही पथ्वी के ठीक पीछे आता है तो उसका रंग गहरा लाल हो जाता है। क्योंकि उस तक केवल पथ्वी के वायुमंडल से ही सूर्य की रोशनी पहुंचती है।
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नासा ने दी जानकारी..
इस बात की जानकारी नासा ने दी हैं। लेकिन नासा के मुताबिक पूर्ण चंद्रग्रहण को उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और पश्चिम एशिया एवं पूर्वी प्रशांत के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा। भारत में इस ग्रहण को देखा नहीं जा सकेगा। पूर्ण चंद्रग्रहण रविवार रात को 10 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगा और एक घंटा 12 मिनट तक रहेगा। [इस ग्रहण का राशियों पर प्रभाव]
नासा के मुताबिक चंद्रमा के साइज में परिवर्तन नहीं होता है लेकिन वो अर्थ के बहुत पास होता है इसलिए बड़ा दिखायी पड़ता है। लेकिन इस 'सुपरमून' को लेकर वैज्ञानिक जहां बहुत ज्यादा उत्साहित हैं वहीं कुछ लोग भ्रांतियों के भी शिकार हैं।
आईये स्लाइडर में तस्वीरों के साथ पढ़ते हैं कि लोग इस ग्रहण को लेकर क्या सोच रहे हैं-
कुछ भ्रांतियां
कुछ लोगों का कहना है कि सुपर ब्लड मून प्रलय की निशानी है और इसका होना अशुभ होता है।
भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, सूखा
कुछ का कहना है कि ये भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, सूखा इस तबाही के संकेत हैं। अब लोग नहीं सुधरे तो दुनिया इन सारी चीजों से तबाह हो जायेगी।
प्रकृति का गुस्सा
लोगों का मानना है कि हमने प्रकृति को नष्ट किया है, इसलिए अब प्रकृति उन्हें खत्म करेगी, चंद्रमा का लाल होना उसके गुस्से होने का संकेत है।
33 साल पहले
इससे पहले पूर्ण चंद्रग्रहण 33 साल पहले पड़ा था और पिछले 115 सालों में ऐसा मात्र पांच बार हुआ है।
असामान्य बात
इस बार असामान्य बात यह है कि सुपरमून के साथ-साथ पूर्ण चंद्रग्रहण भी पड़ रहा है।
कब-कब हुईं ऐसी घटनाएं
इस प्रकार की घटनाएं 1900 के बाद से केवल पांच बार (1910, 1928, 1946, 1964 और 1982 में) हुई हैं।