PM Indira Gandhi's Last Moments: इंदिरा गांधी को अंगरक्षकों ने कहा 'नमस्ते मैम' और फिर....
नई दिल्ली। अपनी हत्या से ठीक एक दिन पहले 30 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने भुवनेश्वर की चुनावी रैली में जो कुछ भी कहा था, उससे ये एहसास होता है कि शायद सच में उन्हें अपने साथ किसी हादसे की अनुभूति पहले ही हो चुकी थी, दरअसल साल 1984 के दौरान देश में सिख और हिन्दू के बीच तनाव और ज्यादा बढ़ चुका था। पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में खालिस्तानी आतंकियों के घुसने के कारण वहां सेना भेजी गई थी, इसे 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का नाम दिया गया था।
'ऑप्रेशन ब्लू स्टार'
इस 'ऑप्रेशन ब्लू स्टार' में सैकड़ो लोग मारे गए थे, स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के कारण सिखों में काफी गुस्सा था। इसके बाद से ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जान से मारने की धमकी दी जाने लगी थी। इतना ही नही स्वर्ण मंदिर की घटना के बाद फैसला लिया गया था कि उनकी सुरक्षा में लगे सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया जाए। यह सुनकर वो काफी नाराज हुई थीं और सिख अंगरक्षकों को वापस बुलाया गया था आइए आपको बताते हैं कि 31 अक्टूबर 1984 की उस सुबह क्या हुआ था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
क्या कहा था इंदिरा गांधी ने 30 अक्टूबर की चुनावी रैली में..
31 अक्टूबर से एक दिन पहले यानी 30 अक्टूबर को इंदिरा उड़ीसा (ओडिशा) स्थित भुवनेश्वर में एक चुनावी भाषण दिया था। इसी जगह इंदिरा ने कहा था कि 'मुझे चिंता नहीं है कि मैं जीवित रहूं या नहीं रहूं, जब तक मुझमें सांस है, तब तक सेवा में ही जाएगा, और अगर मेरी जान जाएगी तो मैं यह कह सकती हूं कि एक-एक खून का कतरा जितना मेरा है , वो एक -एक खून भारत को जीवित करेगा।'
और फिर 31 अक्टूबर की सुबह
रोजाना की तरह इंदिरा गांधी 31 अक्टूबर को सुबह उठीं और अपने सफदरजंग के लॉन में सैर के लिए आ गईं, उस वक्त उनसे मिलने ब्रिटेन से पीटर उस्तीनोव आए थे, क्योंकि वो इंदिरा गांधी पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे, उसी सिलसिले में उनका इंटरव्यू था, जो कि लॉन में ही रखा गया था, उस दिन इंदिरा के अंगरक्षक बेअंत सिंह और सतवंत सिंह की ड्यूटी मेन गेट पर थी। इंदिरा लॉन में जब आई तब उनके साथ उनके निजी सचिव आर के धवन, हेड कांस्टेबल नारायण सिंह चल रहे थे। इंदिरा को धूप से बचाने के लिए नारायण छाता लिए हुए थे तो वहीं धवन इंदिरा से 3-4 फीट की दूरी पर थे, तभी वहां से एक वेटर गुजरा, जिससे इंदिरा ने रूककर कप और प्लेट बदलने की बात कही थी और वो मेन गेट के पास पीटर से मिलने जा रही थीं।
इंदिरा के अंगरक्षकों बेअंत और सतवंत ने उन्हें नमस्ते कहा...
लेकिन जब वो मेन गेट से करीब 11 फीट की दूरी पर थीं, तब ही इंदिरा के अंगरक्षकों बेअंत और सतवंत ने उन्हें नमस्ते कहा, जिसका जवाब इंदिरा ने मुस्कुराकर दिया लेकिन इससे पहले वो कुछ समझ पातीं बेअंत सिंह ने उन पर हमला कर दिया। बेअंत की पहली गोली इंदिरा के पेट में लगी, तब इंदिरा ने कहा बेअंत ये क्या कर रहे हो! इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए दाहिना हाथ उठाया लेकिन बेअंत ने बेहद नजदीक यानी प्वाइंट ब्लैक से दो फायर और किए, ये गोलियां सीने,और कमर में लगीं।
'हमें जो कुछ भी करना था, वो कर दिया'
इंदिरा को गोली लगने वाली जगह से करीब 5 फुट की दूरी पर सतवंत सिंह टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ मौजूद था। बेअंत ने उससे चिल्लाकर कहा, गोली चालाओ, जिसके बाद सतवंत ने भी फायरिंग शुरू कर दी और उसने करीब 1 मिनट से भी कम समय में परी मैगजीन खाली कर दी। इंदिरा जमीन पर खून से लथपथ पड़ी थीं। उनका शरीर गोलियों से छलनी था। उसके बाद बेअंत और सतवंत ने हथियार नीचे डाल दिए और कहा - 'हमें जो कुछ भी करना था, वो कर दिया, अब तुम्हें जो कुछ करना हो करो।'
नारायण सिंह ने बेअंत सिंह को जमीन पर पटक दिया
इंदिरा को धूप से बचाने के लिए छाता लेकर चल रहे नारायण सिंह आगे आए और उन्होंने बेअंत को जमीन पर पटक दिया। सतवंत सिंह को आईटीबीपी के जवानों ने घेर लिया। इंदिरा के बंगले पर हर वक्त एंबुलेंस मौजूद रहती थी लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर वहां नहीं था। तुरंत उन्हें एक सफेद एबेंसडर कार की पिछली सीट पर रख कर सुरक्षा अधिकारी दिनेश भट्ट, कांग्रेस नेता माखन लाल फोतेदार, निजी सचिव आरके धवन और सोनिया गांधी एम्स लेकर गए, इंदिरा का सिर बहू सोनिया की गोद में था, सबकी आंखें नम थीं और इंदिरा खून से लथपथ मौन।
इंदिरा को चढ़ा था 80 बोतल खून
करीब 9 बजकर 32 मिनट पर सभी इंदिरा को लेकर एम्स पहुंचे। वहां ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर इंदिरा की हालत देख कर चौंक गए। कुछ ही देर में वहां डॉक्टर एमएम कपूर, डॉक्टर एस बालाराम और डॉक्टर गुलेरिया, पहुंच गए। इस दौरान इंदिरा को 80 बोतल खून चढ़ाया गया। डॉक्टर बताते हैं कि उनके फेफड़े में गोली लगी थी, साथ ही गोलियों के कारण रीढ़ की हड्डी भी टूट गई थी। सिर्फ उनका दिल सुरक्षित था। उनके लीवर का दायां हिस्सा गोली लगने से बुरी तरह छलनी हो गया था और बड़ी आंत में करीब 12 छेद हुए थे, तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा को बचाया नहीं जा पाया और 31 अक्टूबर को दिन में 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा को मृत घोषित कर दिया गया, इंदिरा का अंतिम संस्कार 3 नवंबर 1984 को किया गया।
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