नोटबंदी: ये 3 कारण साबित करते हैं कि फ्लॉप शो थी केजरीवाल की आजादपुर रैली
नई दिल्ली। आजादपुर मंडी में शुक्रवार को हुई रैली को देखकर कई लोग ऐसा भी सोच सकते हैं कि एक सफल रैली रही। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद बंगाल से दिल्ली तक अरविंद केजीरवाल का पीएम मोदी के खिलाफ विमुद्रीकरण नीति पर साथ देने आईं।
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उन्होंने इस रैली के लिए एशिया में फलों और सब्जियों की सबसे बड़ी मंडी को चुना क्योंकि कैश के अभाव में इसको बहुत नुकसान हुआ है। दोनों नेताओं ने एक मंच से एक स्वर में रैली को ऐतिहासिक बताया और इसे मोदी कैंप के लिए गंभीर चुनौती बताया।
लेकिन कई कारणों की वजह से अरविंद केजरीवाल की यह रैली फ्लॉप शो नजर आती है। ये हैं वे 3 प्रमुख कारण :
1. जनता गुस्सा नहीं परेशान है
500 और 1000 रुपए की पुरानी नोट बंद होने से जनता नरेंद्र मोदी से गुस्सा नहीं है। आजादपुर रैली में मोदी के खिलाफ हुई नारेबाजी में सिर्फ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता थे।
ऐसा भी नहीं है कि नोटबंदी से लोगों को दिक्कत नहीं हो रही है या एटीएम और बैंंको के बाहर लंबी लाइनें नहीं लग रही हैं।
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यह तथ्य है कि जनता इस फैसले के बाद खीझ तो रही है लेकिन फिर भी फैसले के खिलाफ नहीं है। कम से कम आजादपुर मंडी के बाहर जो नजारा है उससे तो यही स्पष्ट था।
आआप नेता दिलीप मिश्रा और कपिल मिश्रा ने जब जनता से इससे संबंधित सवाल पूछे तो भीड़ की प्रतिक्रिया उत्साहित करने वाली नहीं रही।
2. नॉन मोदी मुद्दे पर अटैक करना
केजरीवाल ने रैली के दौरान मोदी पर आरोप लगाते हुए ऐसे ही आरोप लगाए जैसे कि उन्होंने नरेंद्र मोदी पर गुजरात मुख्यमंत्री काल के दौरान लगाए थे।
मोदी की मां को लाइन में लगाने का मुद्दा हो या फिर उनको अपनी पत्नी को छोड़ने का, जनता केजरीवाल की इन बातोंं से बहुत प्रभावित नहीं दिखी। आआप नेताओं के भाषण घोर राजनीतिक और चुनाव रैली की तरह लगे।
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3. गलत राजनीतिक भावना
नोटबंदी के मामले पर आआप की भावना गलत नजर आई। वह लोगों की आवाज का सच में उठाने की बजाय अपनी राजनीति चमकाती नजर आई।
उदाहरण के तौर पर जब उन्होंने पूछा कि क्या लोग विजय माल्या को जानते हैं? उन्होंने विजय माल्या को ऐसे संबोधित किया : 'वह दारू बेचता है। बूढ़ा होने के बाद भी लड़कियों के साथ घूमता है।'
इसके बाद उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी माल्या को सपोर्ट करते हैं और उन्होंने उसका लोन माफ करते हुए उसे रातोंरात विदेश भिजवा दिया।
अब अगर विरोध की राजनीति इस स्तर की होगी तो जनता भी मिजाज भांप लेती है। यही वजह है कि जनता केजरीवाल को गंभीरता से नहीं ले रही थी। इससे साफ है कि केजरीवाल अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं बजाय कि जनहित के मुद्दों को उठाने के।