Babri demolition anniversary: आज भी बाबरी विध्वंस का दंश झेल रहा है 'अयोध्या'
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अयोध्या। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनने के बाद से ही 'अयोध्या' लगातार सुर्खियों में है, विवादित राम जन्म भूमि को लेकर एक तरफ जहां सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई है, वहीं दूसरी ओर बाबरी विध्वंस की 25वीं बरसी के मद्देनजर प्रशासन हाई अलर्ट पर है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को करसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था। जिसके बाद भारत सरकार द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए बनी परिस्थितियों की जांच करने के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया। विभिन्न सरकारों द्वारा 48 बार अतिरिक्त समय की मंजूरी पाने वाला, भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक काम करनेवाला यह आयोग है। इस घटना के l6 सालों से भी अधिक समय के बाद 30 जून 2009 को आयोग ने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट की सामग्री नवंबर 2009 को मीडिया में लीक हो गयी। मस्जिद के विध्वंस के लिए रिपोर्ट ने भारत सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों और हिंदू राष्ट्रवादियों को दोषी ठहराया, इसकी सामग्री भारतीय संसद में हंगामे का कारण बनी।
लिब्रहान रिपोर्ट
6 दिसम्बर 1992 को कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के दिन जो कुछ भी हुआ था, लिब्रहान रिपोर्ट ने उन सिलसिलेवार घटनाओं के टुकड़ों कों एक साथ गूंथा था। न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्राहन द्वारा लिखी गयी रिपोर्ट में मस्जिद के विध्वंस के लिए 68 लोगों को दोषी ठहराया गया है, इनमें ज्यादातर भाजपा के नेता और कुछ नौकरशाह हैं। रिपोर्ट में भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी का भी नाम लिया गया है।
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी
कल्याण सिंह, जो मस्जिद विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, की भी रिपोर्ट में कड़ी आलोचना की गयी। उन पर अयोध्या में ऐसे नौकरशाहों और पुलिस को तैनात करने का आरोप है, जो विध्वंस के दौरान मूक बन कर खड़े रहे। लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में राजग सरकार में भूतपूर्व शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी को भी विध्वंस में दोषी ठहराया गया है। एक भारतीय पुलिस अधिकारी अंजू गुप्ता अभियोजन गवाह के रूप में पेश की गयीं। विध्वंस के दिन वे आडवाणी की सुरक्षा प्रभारी थीं और उन्होंने खुलासा किया कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने भड़ाकाऊ भाषण दिए। फिलहाल मामले की सुनवाई चल रही है, जो दोषी होगा उसे सजा मिलेगी।
लाचार 'अयोध्या'
अब बात अगर उस जिले की करे, जहां ये खतरनाक होली खेली गई थी, तो वो आज भी केवल जिल्लत की जिंदगी जी रहा है, जी हां बात यहां अयोध्या की हो रही है। जिसके आगे हिंदु भाई अपना सिर झुका लेते हैं। राम लला के जन्मस्थान को लोग देश में ही विदेश में भी जानते हैं। लेकिन एक इंटरनेशनल फेम शहर होने के बाद भी अयोध्या आज भी गरीब है और लाचार है। भगवान की जन्मभूमि होने के बावजूद ये शहर आज भी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए रो रहा है। ना तो यहां ठीक तरह से सड़के हैं, ना ही पढ़ने के लिए स्कूल, जो अस्पताल है वहां के इलाज पर खुद अस्पतालवालों को ही भरोसा नहीं है।
चुनाव के वक्त याद आता है 'अयोध्या'
कितनी हैरत की बात है ना कि अयोध्या के नाम पर हमेशा हमारे देश के नेतागण चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीत भी जाते है लेकिन किसी ने भी इस शहर के बारे में कभी नहीं सोचा। ना ही किसी ने यहां की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश की। मंदिर-मसजिद को बांटने वाले राजनेताओं ने यहां चुनाव जीतने के लिए मत्था जरूर टेका लेकिन किसी ने भी वहां रहने वालों की सुध नहीं ली। हमारे नेता यहां मंदिर जरूर बनवाना चाहते हैं लेकिन कभी भी शहर के विकास की बात नहीं करते हैं। चूंकि अयोध्या फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता है। इसलिए यहां के बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए फैजाबाद जाना पड़ता है। यही कारण है कि अयोध्या की लड़कियां अपनी पढ़ाई आगे नहीं कर पाती हैं। या तो उन्हें प्राईवेट फार्म भरना पड़ता है या अपनी पढ़ाई से हाथ धोना पड़ता है। क्योंकि उनके घरवाले उन्हें फैजाबाद नहीं भेज सकते हैं, क्योंकि अयोध्या से फैजाबाद जो बसें चलती है वो लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है।
बेबसी और लाचारी पर आंसू बहा रहे हैं?
हम देश की तरक्की की बात करते है, कहते हैं युवाओं को आगे आना चाहिए लेकिन युवा कैसे आगे आयेंगे? क्या अयोध्या में रहने वाले युवा 'युवा वर्ग' की श्रेणी में नहीं आते हैं। देश भर में युवाब्रिगेड तैयार करने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अयोध्या के युवा क्यों नहीं नजर आते क्या उन्हें ये लगता है कि अयोध्या के युवा देश की तरक्की में साथ नहीं दे सकते हैं? हमेशा रामलला को अपना बताने वाली भाजपा पार्टी ने भी आखिर आज तक अयोध्यावासियों के क्यों कुछ नहीं किया? हमेशा वो कहती है अयोध्या और राम पर उसका एकाधिकार है तो फिर क्यों आज तक वहां के लोग अपनी बेबसी और लाचारी पर आंसू बहा रहे हैं?
बाबरीविध्वंस का काला अध्याय
सच तो ये है कि हमें अयोध्या के नाम पर या तो भगवान राम का जन्म स्थान याद आता है या बाबरी विध्वंस का काला अध्याय इसके अलावा कुछ नहीं। 6 दिसंबर जब आता है तो अयोध्या सुर्खियों आ जाता है, सरकार वहां सुरक्षा-चौकसी बढ़ा देती है। उसके बाद अयोध्या का नाम भी नहीं लिया जाता आखिर कब तक हम केवल धर्म और विवाद के नाम पर इस शहर को याद करते रहेंगे? सच्चाई ये ही है कि भगवान की धरती 'अयोध्या' बेहद गरीब और लाचार है।
अब आप ही बताइये कि क्या हम गलत है? अपनी प्रतिक्रिया नीचें कमेंट बॉक्स में जरूर दें।
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