सिर्फ एंग्री यंग मैन नहीं सदी के महानायक, देखिए बिग बी के कुछ जुदा अंदाज़
बैंगलोर। अमिताभ बच्चन का नाम सुनते ही आपके जेहन में कुछ किरदार ज़रूर आते होंगेः दीवार का विजय जिसके पास गाड़ी, बंगला और शोहरत थी, चुपके चुपके का परिमल जो पूरी फिल्म यह समझाने में लगा देता है कि मैं मैं हूं पर मैं वो नहीं जो मैं हूं, अभिमान का उभरता गायक हो या कभी कभी का शायर, हम का ज़िम्मेदार भाई या सत्ते पे सत्ता का अल्हड़,कॉमेडी, रोमांस और एंग्री यंग मैन की छवि को 70 - 80 के दशक में अमिताभ ने खूब जिया और देखते ही देखते वो बॉलीवुड के शहंशाह बन गए।
लेकिन
इन
तस्वीरों
में
हम
दिखाते
हैं
इस
सदी
के
अमिताभ
के
बिल्कुल
जुदा
11
रंग
जिनमें
वही
ताज़गी
है
जो
हर
किरदार
में
होती
है
लेकिन
फिर
भी
ये
किरदार
बिल्कुल
जुदा
हैं।
ऑरो का बचपन
एक बच्चे के किरदार को संजीदगी से जी लेना, शायद अमिताभ बच्चन ही ऐसा कर सकते हैं। पा का ऑरो सबके दिल को छू गया। फिल्म में अमिताभ का बचपना ही फिल्म की खासियत थी।
डराता - हंसाता कैलाशनाथ उर्फ भूतनाथ
बच्चों को डराने की नाकाम कोशिश करते करते उनका बेस्ट फ्रेंड बन जाना इस फिल्म की यूएसपी थी। शरारत और संजीदगी दोनों ही पहलुओं को खुद में समेटे भूतनाथ लोगों का चहेता बन गया था
रंगीन-बेबाक फकीर
एक गाना और अमिताभ अपनी हटके अदा कारण इस फिल्म में छाए रहे। हालांकि दर्शकों के बीच फिल्म नहीं चली लेकिन लंबे फकीरी कोट, मैंडेलिन और शहंशाह के लंबे जूतों में अमिताभ ने ध्यान ज़रूर खींचा।
पाक कला में माहिर अक्खड़ बुद्धदेव गुप्ता
इस फिल्म के बाद अमिताभ की छोटी पोनीटेल स्टाइल स्टेटमेंट बन गया। 62 साल के एक सनकी शेफ और 32 साल की तब्बू की लव स्टोरी ने खूब वाहवाही बटोरी। फिल्म में अमिताभ का अक्खड़ अंदाज़ भी आपको ज़रूर पसंद आया होगा।
विश्वासपात्र पर मजबूर एकलव्य
एक जांबा़ज़ और विश्वासपात्र शाही सेवक के रूप में अमिताभ का अभिनय लाजवाब था। फिल्म को भारत की तरफ से आधिकारिक ऑस्कर एंट्री के रूप में भेजा गया। अमिताभ का कसा अभिनय और संवाद ने फिल्म में जान डाली थी।
कजरारे पर थिरकता दिलेर डीसीपी दशरथ
एक पुलिसवाला और दो चोर। चोर पुलिस की इस कहानी में अगर कुछ खास था तो वो था अमिताभ का बेधड़क अंदाज़। कजरारे पर ऐश्वर्या राय के साथ ताल मिलाकर अमिताभ ने तहलका मचा दिया था।
धुन का पक्का सुभाष नागरे
रामगोपाल वर्मा की इस फिल्म में अमिताभ बिल्कुल जुदा अंदाज़ में दिखे। फिल्म ने काफी वाहवाही बटोरी और इसे महाराष्ट्र के राजनीतिक परिवेश से भी जोड़ कर देखा गया। अमिताभ के कॉस्ट्यूम, मेकअप, अभिनय की जमकर तारीफ हुई। फिल्म का एक सीक्वल भी बना।
उम्र से लड़ता ईश्वरचंद्र
इस फिल्म में एक परेशान और समझदार पिता का किरदार दर्शकों की आंखे नम कर गया। ईश्वर का उनका किरदार कई मायनों में अलग था। बेटे को समझने के लिए पहले उसका हमउम्र बनना फिर पिता बनकर उसकी गल्तियां सुधारना।
चालाक चतुर राजस्थानी
अमिताभ ने इस फिल्म में एक छोटे से गड़रिये का रोल अदा किया था। लेकिन ठेठ राजस्थानी बोलचाल और पहनावे में वे खूब जमे थे। मात्र 5 मिनट के रोल में भी अमिताभ खूब जमे थे।
जुनूनी और अड़ियल देबराज साहनी
इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को नए आयाम दिये थे। अड़ियल, ज़िद्दी और मेहनती टीचर के रोल में अमिताभ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खूब तालियां बटोरी। उनका जुनूनी अंदाज़ दर्शकों को खूब भाया।
बदले की आग में जलता विजय सिंह राजपूत
निगेटिव छवि और अमिताभ बच्चन भले ही अजीब लगे पर आंखे का ये विलेन डराता है। ग्र शेड लिए हुए अमिताभ के किरदार ने फिल्म को एक विशेष दर्शक वर्ग में स्थापित किया। बदला, गुस्सा और प्रतिशोध के लिए अमिताभ के निगेटिव रोल ने तालियां भी बटोरीं।