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छ.ग.: महिला समूहें बना रही इकोफ्रेंडली राखियां, प्राकृतिक रंगो का इस्तेमाल, अन्य राज्यों में बढ़ी डिमांड

हम आज छत्तीसगढ़ में बन रही एक ऐसी राखी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मांग दिल्ली, असम, साउथ जैसे अन्य राज्यों में हो रही है, ऑनलाइन के जरिये इन राखियों की डिलीवरी की जा रही है.

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दुर्ग/बालोद,10 अगस्त। भाई बहन के पवित्र प्रेम का पर्व रक्षाबंधन नजदीक है और ऐसे में छत्तीसगढ़ के महिला स्वसहायता समूहें राखियां तैयार कर रही है। इन राखियों में खास बात यह है कि महिलाओं ने इस बार प्लास्टिक को छोड़ धान, गेहूं, चावल और सब्जियों के बीजों के साथ-साथ वनस्पति पौधे अश्वगंधा तुलसी शतावर जैसे बीजों, कपड़ों, हर्बल रंगो का इस्तेमाल इन राखियों को बनाने के लिए किया है। ऐसे तो बाजारों में कई तरह की राखियां बिक रहीं हैं। लेकिन हम आज छत्तीसगढ़ में बन रही एक ऐसी राखी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मांग दिल्ली, असम, साउथ जैसे अन्य राज्यों में हो रही है. साथ ही ऑनलाइन के जरिये इन राखियों की डिलीवरी की जा रही है.महिला स्वसहायता समूह इन राखियों को बेचकर अच्छी आमदनी भी कमा रहे हैं।

इस तरह तैयार हो रही इकोफ्रेंडली राखियाँ

इस तरह तैयार हो रही इकोफ्रेंडली राखियाँ

महिला समुह उड़ान नई दिशा की अध्यक्ष निधि बताती हैं कि उनका समूह वनस्पतिक पौधे अश्वगंधा, तुलसी व शतावर, फूलों के बीजो से राखियाँ तैयार कर रहा है। इन बीजों से बनी राखियां भाइयों की कलाई में सजने के बाद घर-आंगन की भी शोभा बढ़ाएंगी। इनके पौधे की तरह ही भाई बहन का प्यार सदैव हरा-भरा रहे, इसके लिए छग उड़ान संस्था की महिलाओं ने इस बार यह अनोखी राखियां बनाने का फैसला किया है।

अन्य राज्यों में बढ़ी डिमांड

अन्य राज्यों में बढ़ी डिमांड

संस्था प्रमुख निधि चंद्राकर ने बताया कि राखियां उतारने के बाद इनके बीजों को घर-आंगन में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके औषधीय महत्व का लोगों को फायदा भी मिलेगा। महिला समूह ने राखियों के धान के बैच भी तैयार किए हैं। निधि ने बताया कि इस बार अपने छत्तीसगढ़ की पहचान को और प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से खास राखियां और बैज बनाए हैं। इनकी डिमांड दिल्ली, राजस्थान के बाड़मेर, उत्तराखंड से मिली है।

बालोद में कपड़ों से बन रही डिजाइनर राखियाँ

बालोद में कपड़ों से बन रही डिजाइनर राखियाँ

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम हथौद जहां पर ज्यादातर परिवार हथकरघा के माध्यम से लोग अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं। यहां गौठान समूह की महिलाओं और लड़कियों ने राखी के इस पवित्र पर्व में प्लास्टिक स्थान पर कपड़े की ऐसी राखियां बनाई, जो लोगों को खूब पसंद आ रही है। ये राखियाँ बनते ही हाथों हाथ बिक रहीं हैं। दरअसल इनकी राखियों को ऑनलाइन माध्यम अमेजॉन और ट्रेड इंडिया जैसे पोर्टल में अपलोड किया गया। जिसके बाद असम, न्यू दिल्ली और साउथ जैसे कई राज्यों से डिमांड आए और हाथों-हाथ यह राखियां बिक रही हैं।

पहली बार राखियों में गोदना व कसीदाकारी

पहली बार राखियों में गोदना व कसीदाकारी

डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां पर कुल 60 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही है और 20 महिलाएं इस कार्य में हिस्सेदारी है। इस तरह कुल 80 महिलाएं इस कार्य में शामिल है। उन्होंने कहा कि महिलाएं काफी रूचि लेकर यह कार्य कर रही है और आगे भी यह बेहतर कार्य करेंगे.एक तरफ बाजार में रंग-बिरंगी राखियां मौजूद रहती है परन्तु इन लड़कियों और महिलाओं द्वारा जो राखियां तैयार की गई है वह बेहद ही रंग-बिरंगे हैं और वहां पर प्रिंटिंग भी काफी खूबसूरत है. उसमें गोदना कला सहित कसीदा कला भी राखियों में उतारा गया है

हर्बल व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग

हर्बल व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग

बालोद में महिला समूह द्वारा तैयार राखियाँ पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। यहां पर अनार के छिलके,मंदिरों से एकत्र गेंदे के फूल, हर्रा लोहे, गुड़ का मिश्रण, आलम गोंद, चायपत्ती, हीना कत्था यह सभी रंग होते हैं।जो राखियों को सुंदर बनाते हैं। इन्हें कुछ ऐसा लगाया जाता है। कि यह पक्का रंग में तब्दील हो जाए। गेंदे के फूल से पीले रंग प्राप्त किए जाते हैं.गुड़ और लोहे को मिलाकर काले रन बनाए जाते हैं. मेहंदी से हरे रंग का उपयोग किया जाता है. इस तरह हर प्राकृतिक चीजें कुछ न कुछ रंगे भी है. जिसे इन लड़कियों ने अपने राखियों में उपयोग किया है.

ऑनलाइन आर्केट से मिले आर्डर, अन्य राज्यों में डिलवरी

ऑनलाइन आर्केट से मिले आर्डर, अन्य राज्यों में डिलवरी

छत्तीसगढ़ के बालोद व दुर्ग जिले में समूहों द्वारा बनी राखियों की मांग दिल्ली, असम, दक्षिण भारत समेत अन्य राज्यों में हो रही है। साथ ही ऑनलाइन आर्डर के जरिये इन राखियों की डिलीवरी की जा रही है। बाजार में मिलने वाली प्लास्टिक के उत्पादों से बनी राखियों की तुलना में ये इकोफ्रेंडली राखियां सुंदर और किफायती भी हैं। उड़ान संस्था की राखियों की कीमत मात्र 10-15 रुपए है। मांग को ध्यान में रखकर पवित्र मौलीधागा से फैंसी राखियां भी बनाई गई है।

गौठान समूह की महिलाओं ने बनाई राखियां

गौठान समूह की महिलाओं ने बनाई राखियां

लड़कियों और महिलाओं ने जिला प्रशासन के सहयोग से बालोद में इको फ्रेंडली राखियाँ तैयार की है। कलेक्टर ने इन महिलाओं के कार्यों की सराहना की और कहा कि निश्चित ही यह गर्व का विषय है। ऐसी सरकार की योजनाओं के माध्यम से महिलाएं जो कि घरों में ही सिमट कर रह जाती हैं। वे घरों से बाहर निकले और अपने अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने और उनसे आर्थिक और सामाजिक रूप से खुद के साथ अपने परिवार को भी मजबूत करें. कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने कहा कि यह हमारी महिलाओं की प्रतिभा के परिणाम स्वरुप यहां की इको फ्रेंडली राखियां नई दिल्ली, असम और साउथ इंडिया के कई राज्यों तक पहुंची है. यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है.

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English summary
CG: Women's groups are making eco-friendly rakhis, use of tattoos in clothes, increased demand in other states
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