छावला गैंगरेप केस: सुप्रीम कोर्ट में फिर डाली गई याचिका, इस आधार पर फैसले को दी चुनौती
दिल्ली के छावला गैंगरेप केस में तीनों अभियुक्तों को बरी किए जाने के खिलाफ पीड़ित के परिवार वाले सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। उन्होंने सर्वोच्च अदालत से अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है। मामला 2012 का है।
छावला गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका
निर्भया कांड से कुछ महीने पहले राजधानी दिल्ली में ही एक उसी तरह की जघन्य गैंगरेप और हत्या की वारदात हुई थी, जिसमें 19 साल की पीड़िता को दरिंदों ने बहुत ही बेरहमी से रेप के बाद कत्ल कर दिया था। अब पीड़िता के पिता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दोषियों को बरी किए जाने के खिलाफ फिर से विचार करने की अर्जी दी गई है। संवाददाताओं से पीड़िता के पिता के वकील एस शर्मा ने कहा, 'पीड़िता के माता-पिता की ओर से हमने एक पुनर्विचार याचिका दायर की है। कुछ मुद्दे थे, जो कि सर्वोच्च अदालत की नोटिस में नहीं लाए गए थे। हमारी मांग है कि आदेश वापस लिया जाए और ट्रायल कोर्ट से पारित आदेश, जिसे कि हाई कोर्ट ने कंफर्म किया है, उसे बहाल किया जाना चाहिए।'
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को बरी किया है
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने निचली अदालत से दोषी करार दिए गए तीनों अभियुक्तों को बरी करने का आदेश सुनाया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि सारी परिस्थितियों और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के आधार पर यह मानना मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों पर दोष साबित कर पाया है।
कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनदेखी हुई- याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जो पुनर्विचार याचिका दायर की गई है, उसमें दलील दी गई है कि 7 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई त्रुटियां स्पष्ट नजर आती हैं। सर्वोच्च अदालत ने कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों पर ध्यान नहीं दिया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि गवाही में थोड़ी-बहुत अंतर को बहुत ही ज्यादा महत्त्व दिया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि डीएनएन मैच से लेकर, कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स जैसे कई महत्वपूर्ण सबूत मौजूद थे।
अभियुक्तों को बरी करने से देश में आक्रोश
याचिका में खुली अदालत में सुनवाई की भी मांग की गई है। करीब दो हफ्ते पहले दिल्ली सरकार की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की गई थी, जिसे लेफ्टिनेंट गवर्नर विनय सक्सेना ने मंजूर किया था। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की पीड़िता को 10 साल पहले ही दिल्ली से अगवा करके गैंगरेप के बाद हत्या करके उसके शव को फेंक दिया गया था। उसके ठीक 10 साल बाद जिस तरह से अभियुक्तों को बरी किया गया, उससे पूरे देश में भारी आक्रोश पैदा हुआ है।
क्या है छावाल गैंगरेप केस ?
मामला 9 फरवरी, 2012 का है। पीड़िता दिल्ली के छावला कैंप स्थित अपने घर से करीब 10 मिनट की दूरी पर बस से उतरी थी। वह गुरुग्राम के साइबर सिटी में एक प्राइवेट कंपनी काम करती थी। वह अपने दो दस्तों के साथ थी, तभी उसे कुछ व्यक्तियों ने कार में अगवा कर लिया था। कुछ दिनों बाद हरियाणा के रेवाड़ी में उसका जो शव बरामद हुआ था, उससे पता चला कि उसके साथ दरिंदगीं की सारी हदें पार कर दी गई थीं। शरीर पर सिगरेट से जलाने के निशान थे। प्राइवेट पार्ट में शराब की टूटी बोतलें डाली गई थीं।