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कोरबा की हवा में ज़हर, बढ़ रही टीबी के मरीजों की संख्‍या

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कोरबा। छत्तीसगढ़ में प्रदूषण के स्‍तर की पड़ताल करने हम कोरबा गये। हवा में धूल का नज़ारा यहां आम है। 40 डिग्री तापमान के बीच पसीना बह रहा था और हम रुमाल से पोछते जा रहे थे। महज 35 मिनट बीते थे कि रुमाल पर काले-काले मोटे कण नज़र आये। आप उन कणों को नीचे तस्वीर में देख सकते हैं। जी हां। कोरबा की हवा इतनी ज्यादा खराब हो चुकी है, कि यहां कार्बन के मोटे-मोटे कण यहां रहने वाले लोगों के फेफड़ों को छलनी कर रहे हैं। जी हां हम इस खबर में बात करेंगे कोरबा के वायु प्रदूषण की और तस्वीरों में दिखायेंगे कि किस तरह के वातावरण में यहां के लोग जी रहे हैं। यही नहीं यहां पर ट्यूबरक्लॉसिस यानी टीबी के मरीजों की संख्‍या निरंतर बढ़ रही है।

Coal Mine in Korba

छत्तीसगढ़ के आधे से ज्यादा इलाकों में बिजली सप्लाई करने वाले कोरबा में 8 थर्मल पावर प्लांट हैं, जहां दिन भर कोयला जलाया जाता है। साथ ही कोरबा में दर्जनों कोलये की खानें हैं। यहां से देश के कई भागों में कोयला सप्लाई किया जाता है। लेकिन देश के विकास की रफ्तार तेज़ करने की जद्दोजहद में खुद कोरबा बीमार पड़ता जा रहा है। केवल कोयले की धूल नहीं, बल्कि यहां पर पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश यानी कोयला जलने के बाद निकलने वाली राख उड़ कर तेज़ हवाओं के साथ दूर-दूर तक फैल जाती है, यहां के लोगों के केवल फैफड़े ही नहीं खराब कर रही है, बल्कि तमाम अन्य बीमारियों का कारण बन रही है। चलिये तस्‍वीरों के साथ देखते हैं कोरबा किस तरह प्रदूषण की मार झेल रहा है।

कोरबा की सड़कें

कोरबा की सड़कें

कोरबा की सड़कों पर रात-दिन कोयले से भरे ट्रक गुज़रते हैं। कोरबा के मुख्‍य शहर से लेकर चॉंपा जैसे दूर-दराज़ के इलाकों तक की सड़कें काली राख से पटी रहती हैं। इन्हीं सड़कों से जब वाहन गुज़रते हैं, तो उड़ने वाली धूल लोगों के शरीर में भारी मात्रा के साथ प्रवेश करती है। अगर आपका घर मेन-रोड पर है, तो केवल आंगन या बालकनी नहीं, बल्कि घर के अंदर भी कोयले के कण आसानी से जम जाते हैं। झाड़ू लगाने पर कूड़े से ज्यादा यहां काली धूल निकलती है।

काले हो जाते हैं सफेद कपड़े

काले हो जाते हैं सफेद कपड़े

कोरबा में रहने वाली गृहणी संयुक्ता मुर्मू ने वनइंडिया से बातचीत में बताया कि यहां अगर आप सुबह सफेद कपड़े पहन कर निकलेंगे, तो शाम तक काले धब्बे आपको मिलेंगे। सबसे अधिक धूल रात को आती है, जब तेज हवा चलती है। रात भर में छत के ऊपर काली धूल की परत जम जाती है। सुबह झाड़ू लगाने पर केवल काली धूल निकलती है। यही नहीं सुबह के समय हवा में धुंध जैसा होने के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है और थकान महसूस होती है। कोरबा में खांसी की बीमारी सबसे आम है।

कहां से उठती है धूल

कहां से उठती है धूल

कुसमुंडा कोल माइंस की इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि माल-गाड़ी में भरने से पहले कोयला एकत्र किया गया है। कोयले यहां तक ट्रेकों में भर कर लाया जाता है। जब ट्रेक खाली किया जाता है, तब कोयले के पॉवडर की धूल उड़ती है। इस धूल में केवल कार्बन होता है और साथ में कई सारे धातु व रासायनिक तत्व। यही धूल आस-पास के इलाकों में फैलती जाती है। इसी प्रकार जब कोयला दूसरे शहरों में पहुंचाने के लिये ट्रकों में भर कर ले जाया जाता है, तब भी ऐसी ही धूल उड़ती है। यानी पूरा कोरबा इसी धूल की चपेट में चौबीसों घंटे रहता है।

शाम को सिगड़ी का धुआं

शाम को सिगड़ी का धुआं

कोयले के पॉवडर से भरी धूल के साथ-साथ यहां के लोगों द्वारा जलायी जाने वाली सिगड़ी भी भरपूर धुआं छोड़ती है। यहां पर छोटी-छोटी गलियों में रहने वाले लोग हर रोज़ सुबह शाम सिगड़ी जलाते हैं। इससे न केवल इलाके में प्रदूषण होता है, बल्कि पूरे कोरबा में शाम के वक्‍त इसका असर देखने को मिलता है। बात जब प्रदूषण की आती है, तो लोग कहते हैं, कि अगर बंद करना है, तो पहले फैक्ट्रियों का धुआं बंद करिये, उसके बाद हमारी सिगड़ी पर बैन लगाइये। और जब गैस सिलेंडर पर भोजन पकाने की बात पूछिए तो कहते हैं कि सिलेंडर हमें मिला है, लेकिन उसकी रीफिलिंग के पैसे नहीं जुट पाते, इसीलिये हमें मजबूरन अंगीडी व सिगड़ी का प्रयोग करना पड़ता है।

हर शाम कोहरे जैसा नज़ारा

हर शाम कोहरे जैसा नज़ारा

कोरबा शहर की चारों दिशाओं में मौजूद पावर प्लांट, केमिकल फैक्ट्रियों और इस्‍पात फैक्ट्रियों के चलते भारी मात्रा में धुआं आता है। शाम होते-होते ऐसा नज़ारा हो जाता है, मानो दिसंबर की सर्दी में दिल्ली की शाम हो, जिसमें शाम होते ही धुंध छाने लगती है। आलम यह होता है, कि इस धुंध में सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। सांस के मरीजों को तो इन्हेलर का प्रयोग करना पड़ता है।

बढ़ रही है टीबी के मरीजों की संख्‍या

बढ़ रही है टीबी के मरीजों की संख्‍या

कोरबा की हवा में इस कदर जहर घुल चुका है कि यहां हर साल 1000 से 1100 तक टीबी के नये मरीज आ रहे हैं। 2018 में 1190 नये मरीज पाये गये, जिनका तुरंत उपचार तो शुरू कर दिया गया, लेकिन प्रदूषण की चपेट से उनको रोकना आज भी असंभव सा है। इस संबंध में डिस्ट्रिक्ट ट्यूबरक्लॉसिस कंट्रोलिंग ऑफिसर डा. आरएसपी पायकरा ने वनइंडिया से बातचीत में कहा कि स्‍वास्‍थ्‍य के नजरिये से यहां के हालात अच्‍छे नहीं हैं। जो लोग शहरी इलाकों में हैं और मास्क आदि पहन कर निकलते हैं, या ज्यादा पढ़े लिखे हैं, वो तो टीबी जैसी बीमारियों की चपेट में आने से बच जाते हैं, लेकिन पावर प्लांट व अन्य फैक्ट्रियों में काम करने वाले लेबर क्लास के लोग बहुत ज्यादा जागरूक नहीं होते, लिहाज़ा उन्‍हें ये रोग बहुत जल्‍द पकड़ लेता है। महीने में 100 के करीब नये मरीजों की संख्‍या रहती है, जो घटती बढ़ती रहती है। 2019 में जिस रफ्तार से टीबी के नये मरीज मिल रहे हैं उससे लगता है टीबी के मरीजों की संख्‍या 2000 के पार हो सकती है। लेकिन छोटी-छोटी बस्तियों में रहने वाले तमाम लोग धूम्रपान व शराब का सेवन भी करते हैं, लिहाजा उनमें टीबी का यह भी एक कारण है।

कमजोर हो रहा लोगों का इम्यून सिस्‍टम

कमजोर हो रहा लोगों का इम्यून सिस्‍टम

कोरबा के डीटीओ डा. पायकरा बताते हैं कि यहां के ऐशपॉन्‍ड में भरी राखड़ जब उड़ती है, तो वो अपने साथ कई सारे रासायनिक तत्‍व लेकर आती है। फ्लाई ऐश यानी राखड़ में सिलिकन, आर्सेनिक, लेड, मैंगनीज़, कोबाल्‍ट, थैलियम, वैनेडियम जैसे तत्वों के घटक मौजूद होते हैं। साथ में ढेर सारा कार्बन। ऐसी हवा के बीच जो बच्चे पल-बढ़ रहे हैं, उनका इम्यून सिस्‍टम धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। यही नहीं व्यस्क लोगों की प्रतिरक्षण प्रणाली पर भी ऐसा ही असर पड़ता है। डा. पायकरा ने बताया कि एनजीओ, रिसर्चर्स और स्‍टट हेल्थ रिसर्च सेंटर के स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों की मदद से उनकी टीम शहर में टीबी के मरीजों का पता लगाती है। पता चलते ही नजदीकी स्वास्‍थ्‍य केंद्र में उपचार शुरू कर देते हैं। अगर मरीज स्वास्‍थ्‍य केंद्र नहीं आते तो डॉक्‍टर उनके घर जाते हैं। लेकिन इन सबके बीच जो देखने को मिल रहा है, टीबी जैसी बीमारी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों को ज्यादा हो रही है। और इसमें कोई शक नहीं कि राखड़ के बीच रहने वाले और भी लोग, चाहे वो किसी भी वर्ग के क्यों न हो, अगर टीबी की चपेट में आते हैं, तो उनमें अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।

सरकार के पास जाती है नियमित रिपोर्ट

सरकार के पास जाती है नियमित रिपोर्ट

12 लाख की आबादी वाले कोरबा में प्रदूषण के चलते कोरबा ईस्‍ट, कोरबा वेस्‍ट, एनटीपीसी, बालको, इन सभी इलाकों से लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं और सीएमओ इंचार्ज को भेजे जाते हैं। कोरबा के सीएमओ इंचार्ज बीबी बोडे के अनुसार जो भी रिपोर्ट उन्हें फील्‍ड से मिलती है, उसे हर महीने शासन को भेज देते हैं, साथ ही एक भी मरीज को छोड़ते नहीं। चाहे वो सांस संबंधी बीमारी का केस हो या लेप्रसी या टीबी का, केस का पता चलते ही तुरंत ऐक्शन होता है। यही नहीं शहर के पानी के दूषित होने की रिपोर्ट मिलने पर भी तुरंत ऐक्शन होता है।

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English summary
Around 15 Lakh people in Korba are living in the air having high concentration of carbon. Reason is Coal mines and power plants. Number of tuberculosis patients are increasing because of the pollution.
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