सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि बनाए रखने के लिए चुनाव खर्च निभा सकता है महत्वपूर्ण भूमिका
नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से रफ्तार पकड़ ली है। वित्तीय वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी विकास दर 8 फीसदी के पार 8.2 फीसदी पहुंच गई है। लेकिन इसी के साथ कई सारे सवाल भी हैं कि क्या पिछले दो वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जो कुछ देखने को मिला है वो अब सही रास्ते पर है। आखिर पिछले सालों में अर्थव्यवस्था में ऐसी उछाल क्यों देखने को नहीं मिली।
अप्रैल-जून में मैन्युफैक्चरिंग दर 13.5 प्रतिशत रहा। जबकि कृषि आय 5.3 प्रतिशत बढ़ी है और निर्माण क्षेत्र में विकास दर 8.7 प्रतिशत रही है जो कि पिछले साल की तिमाही की तुलना में बराबर है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और रुपए में गिरावट अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगा सकता है। संभावित रूप से गति को बनाए रखने के लिए आने वाले महीनों में सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी ना हो तो बेहतर है।
लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसे आपको जरूर जानना चाहिए। दरअसल अर्थव्यवस्था में यह वृद्धि आंशिक रूप से कुथ तथाकथित प्रभाव के लिए जिम्मेदार है। एक सांख्यिकीय पूर्वाग्रह तब होता है जब वर्तमान अवधि की असामान्य रूप से उच्च या निम्न की पिछली बार से तुलना की जाती है। निर्माण क्षेत्र में उछाल के पीछे मुख्य वजह पिछले साल 1.8 प्रतिशत की गिरावट है। क्योंकि पिछले साल 1 जुलाई से लागू किए गए जीएसटी की वजह से इनमें कमी आई थी। नया सिस्टम था इसलिए उसका असर अर्थव्यवस्था के साथ-साथ व्यापारियों पर देखने को मिला।
पिछले जून में, कंपनियों को यह सुनिश्चित नहीं था कि जीएसटी के बाद उनके उत्पादों की कीमतें बढ़ेगी, गिर जाएंगी या रहेंगी। इसका असर सीधे अर्थव्यवस्था पर पड़ा। लेकिन इस साल निवेश को भी गति मिली है। चीजें साफ हुई हैं। खासकर निजी क्षेत्रों में डिमांड को पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है। इसी का असर है कि अप्रैल-जून 2018 में इस क्षेत्र की वृद्धि दर 10.2 रहा है जो कि पिछले साल कि तुलना में 0.82 प्रतिशत अधिक है। इसके साथ-साथ कार शो रूम क्षेत्र में भी तेजी आई है। ऐसे में कुछ मामलों में आगे भी बढ़ोतरी की उम्मीद है।
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