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कोरोना की चुनौतियां: तापमान बढ़ने के साथ काम पर जाना जोख़िम भरा होगा?

एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि साल 2100 तक दुनिया में अभी से कम से कम चार गुना ज़्यादा लोग हीट स्ट्रेस के शिकार हो सकते हैं.

By डेविड शुकमैन
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कोरोना की चुनौतियां: तापमान बढ़ने के साथ काम पर जाना जोख़िम भरा होगा?

लाखों लोग दुनिया भर में हीट स्ट्रेस से पैदा होने वाली परेशानियों का सामना करते हैं. हीट स्ट्रेस लगने से शरीर के कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं और जान को ख़तरा भी हो सकता है.

विकासशील देशों में काम करने वाले कई लोगों को इन हालातों का सामना करना पड़ता है. अक्सर खेतों में काम करने वाले मज़ूदर, इमारतों और फ़ैक्ट्रियों में काम करने वाले मज़दूर और अस्पताल के कर्मी भी इन हालात का सामना करते हैं.

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ते तापमान में यह और भी मुश्किलें पैदा करने वाला है. ऐसी स्थिति में 'इंसानों को और भी गर्म वातावरण' में काम करना पड़ सकता है.

डॉक्टर जिमी ली को जब हमने देखा तो उनके गले से पसीना बह रहा था और गर्मी से वो बेहाल थे. वो भीषण गर्मी में सिंगापुर के एक अस्पताल में कोरोना के मरीज़ों के इलाज में लगे हुए थे.

जानबूझकर एयर कंडीशनर का इस्तेमाल अस्पतालों में नहीं किया जा रहा है ताकि कोरोना वायरस को हवा में फैलने से रोका जा सके. उन्होंने यह नोटिस किया कि "वो और उनके दूसरे सहकर्मी एक दूसरे पर ज़्यादा चिड़चिड़े हो रहे हैं और जल्दी ही गुस्सा हो रहे हैं."

संक्रमण को रोकने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट की वजह से हालत और ख़राब हैं. प्लास्टिक की कई परतें भीषण गर्मी में और हालत बिगाड़ रही हैं.

कोरोना की चुनौतियां: तापमान बढ़ने के साथ काम पर जाना जोख़िम भरा होगा?

डॉक्टर जिमी ली कहते हैं, "वाकई में जब आप इसे पहनते हैं तभी ये परेशान करने लगता है और आठ घंटे की पूरी शिफ़्ट में तो यह वाकई में काफी असहज कर देता है."

वो मानते हैं कि ज़्यादा गर्मी आपके काम करने की क्षमता को धीमा कर देती है जो कि किसी मेडिकल स्टाफ के लिए काफ़ी अहम है. उसे फौरन कोई फैसला लेना होता है.

वो हीट स्ट्रेस के लक्षणों को जैसे जी मचलाना और चक्कर आने को अनदेखा कर अपने काम में लगे रहते हैं जब तक कि वो बेहोश होकर गिर ना जाए.

हीट स्ट्रेस
Getty Images
हीट स्ट्रेस

क्या है हीट स्ट्रेस?

यह तब होता है जब शरीर पर्याप्त तौर पर खुद को ठंडा नहीं रख पाता है और उसका तापमान ख़तरनाक स्तर तक बढ़ जाता है. ऐसे हालत में शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं.

यह तब होता है जब पसीने के वाष्पीकरण की प्रक्रिया हवा के बहुत नम होने की वजह से बंद हो जाती है और अत्यधिक गर्मी से निजात नहीं मिल रही होती है.

डॉ ली और दूसरे मेडिकल स्टाफ का मानना है कि पीपीई कीट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि इसमें पसीने के वाष्पीकरण की प्रक्रिया प्रभावित होती है.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम में फिजियोलॉजी की शोधकर्ता डॉक्टर रेबेका लुकास कहती हैं कि हीट स्ट्रेस की वजह से बेहोशी और मांसपेशियों में ऐंठन के साथ-साथ किडनी और आंत के फेल होने का भी ख़तरा होता है.

हीट स्ट्रेस
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हीट स्ट्रेस

हम कैसे इसका पता लगा सकते हैं?

वेट बल्ब ग्लोब टम्परेचर (डब्लूबीजीटी) एक ऐसा सिस्टम है जिससे हमें ना सिर्फ गर्मी का अंदाज़ा लगता है बल्कि यह आद्रता और दूसरे तथ्यों के सहारे हमें वातावरण की वास्तविक स्थिति के बारे में बताता है.

1950 के दशक में अमरीकी फ़ौज इसका इस्तेमाल अपने सैनिकों को सुरक्षित रखने में करती थी.

उदाहरण के लिए जब डब्लूबीजीटी 29 डिग्री सेल्सियस पर पहुँचे तो किसी को भी यह सलाह दी जाती है कि वो व्यायाम रोक दे. लेकिन डॉ ली और उनके साथी लगातार सिंगापुर के एनजी टेंग फोंग अस्पताल में इस तापमान पर काम कर रहे हैं.

डब्लूबीजीटी के स्केल पर जब 32 डिग्री सेल्सियस पहुँच जाए तो सलाह दी जाती है कि कठोर शारीरिक गतिविधियाँ रोक देनी चाहिए क्योंकि उस वक्त ख़तरा अपने 'चरम' पर पहुँच गया होता है.

लेकिन हाल ही में श्री रामाचंद्रा यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर विद्या वेणुगोपाल ने डब्लूबीजीटी पर यह स्तर चेन्नई के अस्पतालों में दर्ज किया है.

इसके अलावा उन्होंने साल्ट पैन की फैक्ट्री में डब्लूबीजीटी पर 33 डिग्री तापमान पाया तो वहीं स्टील फैक्ट्री में 41.7 डिग्री सेल्सियस पाया.

वो कहती हैं, "अगर यह हालत हर रोज़ रहती है तो फिर लोगों को डिहाइड्रेशन, दिल की बीमारी, किडनी में पत्थर और गर्मी लगने जैसी समस्याएँ पैदा होंगी."

जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ेगा?

जैसे-जैसे दुनिया का तापमान बढ़ेगा वैसे-वैसे अधिक आद्रता बढ़ेगी. इसका असर यह होगा कि लोगों को गर्मी और आद्रता से मिलने वाले नुक़सानदेह परिणाम भुगतने होंगे.

ब्रिटेन के मेट ऑफिस के प्रोफेसर रिचर्ड बेट्स कम्पयुटर मॉडल पर काम करते हैं. वो कहते हैं कि डब्लूबीजीटी पर 32 डिग्री सेल्सियस वाले दिनों की संख्या बढ़ने वाली है. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कटौती पर हालांकि यह बहुत हद तक निर्भर करेगा.

वो कहते हैं कि लाखों लोगों के लिए काम पर जाना जोखिम भरा होने वाला है.

"हम इंसान एक तापमान की एक विशेष सीमा के अंदर ही रहने के लिए बने हैं. इसलिए यह साफ है कि अगर हम ऐसे ही दुनिया का तापमान बढ़ाते रहे तो फिर दुनिया के कई गर्म हिस्से हमारे रहने के लिहाज़ से बहुत गर्म हो जाएंगे."

इस साल के शुरुआत में छपे अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि साल 2100 तक दुनिया में 1.2 अरब लोग हीट स्ट्रेस से प्रभावित हो सकते हैं. अभी से कम से कम चार गुना ज़्यादा.

क्या है समाधान

डॉ जिमी ली के मुताबिक़, "ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है."

काम शुरू करने से पहले लोगों को बहुत सारा तरल पदार्थ पीना चाहिए, बीच-बीच में ब्रेक लेते रहना चाहिए और जब वो आराम के लिए रुके तो फिर कुछ पीना चाहिए.

उनके अस्पताल ने कर्मचारियों के लिए "स्लूशी" रखना शुरू कर दिया है जो सेमी फ्रोज़न ड्रिंक्स होती हैं. ताकि उन्हें गर्मी से बचाया जा सके.

लेकिन वो मानते हैं कि हीट स्ट्रेस से बचना इतना आसान नहीं है.

उनके और उनके सहयोगियों के लिए ब्रेक लेने का मतलब है कि उन्हें पीपीई किट निकालना पड़ेगा और फिर दोबारा नया पहनना पड़ेगा.

वो कहते हैं इसमें एक व्यावहारिक समस्या भी है - "कुछ लोग ज़्यादा कुछ पीना नहीं चाहते ताकि उन्हें शौचालय ना जाना पड़े."

और एक पेशेवर इच्छाशक्ति होती है कि चाहे कितनी भी मुश्किल स्थितियां हों काम जारी रखना है, ताकि सहयोगियों और मरीज़ संकट की घड़ी में निराश ना पड़ जाएं.

सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ जासोन ली कहते हैं कि ज़्यादा जुनूनी लोगों को हीट इंजरी होने का ज़्यादा ख़तरा होता है.

डॉ जासोन ली उस विशेषज्ञ समूह का भी हिस्सा हैं जो अत्यधिक गर्मी के ख़तरों के बारे में बेहतर तरीक़े से बता सकते हैं. ये समूह ग्लोबल हीट हेल्थ इनफोर्मेशन नेटवर्क से जुड़ा है. इस संस्था ने कोविड-19 से निपटने के काम में लगे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए गाइडलाइन भी बनाई हैं.

जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और अमरीकी मौसम और जलवायु एजेंसी नोआ ने भी मान्यता दी है.

डॉ ली कहते हैं कि आराम करने और तरल पदार्थ लेते रहने - साथ ही बाहर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए शेड बनाए जाने के अलावा हीट स्ट्रेस से बचने का सबसे अच्छा तरीक़ा है शारीरिक तौर पर फिट रहना.

वो कहते हैं, "खुदको फिट रखकर, आप गर्मी सहन करने की अपनी क्षमता भी बढ़ा लेते हैं, साथ ही इसके और भी कई फायदे हैं."

और वो कहते हैं कि कोविड-19 से निपटने के दौरान पीपीई किट में पसीना-पसीना होने की स्वास्थ्यकर्मियों की चुनौती, भविष्य में बढ़ने वाले तापमान के लिए "फुल ड्रेस रिहर्सल की तरह है."

"जलवायु परिवर्तन ज़्यादा बड़ी समस्या होगी और ज़रूरत है कि आने वाले समय के लिए सभी देश मिलकर तैयारी करें."

वो कहते हैं, "अगर ऐसा नहीं करते तो इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी होगी."

BBC Hindi
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English summary
Corona's Challenges: Will it be risky to go to work as temperatures rise?
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