बिहार के इस मंदिर में टूटी 700 साल पुरानी परंपरा! वैष्णवी देवी को 'फल और सब्जियों' से रिझाएंगे भक्त
पटना, 27 सितंबर। शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा। नवरात्रि के 9 दिनों ने मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की विधिवत पूजा का दौर जारी है। भारत के कई ऐसे देवी मंदिर हैं, जहां आज भी पुरानी परंपराएं जीवित हैं। लेकिन बेगूसराय में एक मंदिर ऐसा है जहां 700 साल पुरानी परंपरा को तोड़ा जा चुका है। इसके लिए पुजारियों ने अब दूसरा रास्ता चुन लिया है। आइए जानते हैं कि इस मंदिर वो कौन सी परंपरा है जिसे यहां के उपासक अब आगे नहीं बढ़ाना चाहते।
शहर से 33 किलोमीटर दूर है प्राचीन मंदिर
बिहार के बेगूसराय जिले में शहर से 33 किलोमीटर दूर एक प्राचीन दुर्गा का मां का मंदिर है। मंदिर में अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बड़ी संख्या मां के भक्त पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां मां वैष्णवी की खास पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
दुर्गा मंदिर में 700 साल पुरानी परंपरा
ये मंदिर बेगूसराय में भगवानपुर ब्लॉक के लखनपुर में स्थित है। लेकिन अब इसे इस बार आगे नहीं बढ़ाया गया। जहां पिछले साल नवरात्रि तक एक 700 साल पुरानी परंपरा जीवित थी। मां वैष्णवी को खुश करने के लिए इस परंपरा को यहां खास माना जाता था। ऐसी मान्यता थी कि अगर ये प्राचीन परंपरा टूटी तो मां क्रोधित हो जाएंगी।
ये है मान्यता
मान्यता के अनुसार दुर्गा को शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा की मूर्ति को 700 साल पहले बंगाल में नादिया नामक स्थान से कुलदेवी के रूप में लाया गया था। इसे लखनपुर में स्थापित किया गया। जहां मां की पूजा बंगाली विधि से की जाती थी। जिसके कारण बेगूसराय का अब तक इकलौता प्राचीन मंदिर था जहां पशुबलि देने की परंपरा थी।
मंदिर में थी पशुबलि की परंपरा
बेगूसराय देवी वैष्णवी देवी मंदिर में पिछले साल तक भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए पशु बलि का इतिहास था। लेकिन इस परंपरा को इस साल खत्म कर दिया जाएगा। इसके लिए मंदिर के पुजारियों ने एक अलग उपाय ढूंढा है।
देवी को रिझाने के लिए नया प्रयोग
बेगूसराय के इस दुर्गा मंदिर का प्रबंधन मां दुर्गा मंदिर पुष्पलता घोष चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। अब यहां श्रद्धालु पहली बार श्री वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन भी कर सकेंगे। मां दुर्गा के दर्शन के लिए बेगूसराय ही नहीं बल्कि बिहार और पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश से श्रद्धालु यहां इस उम्मीद से पहुंचते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। हाल ही में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस मंदिर में मां का आशीर्वीद लेने पहुंचे थे।
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