नए चेहरों पर दांव लगाकर भाजपा क्या बिहार में सीएम का सपना साकार करेगी?
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भाजपा ने महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी नये चेहरों को राजनीति की कमान सौंप कर सबको चौंका दिया है। विधानमंडल दल का नेता और उपनेता चुने जाने से पहले तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी की कोई चर्चा नहीं थीं। डिप्टी सीएम के लिए कामेश्वर चौपाल का नाम तेजी से उछला था। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अचानक तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी पर दांव खेल दिया। भाजपा नेता गढ़ने में यकीन रखती है इसलिए वह सामान्य नेताओं पर भी दांव खेलना पसंद करती है। पांच साल की तैयारी फिर भाजपा का सीएम। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस को नितिन गड़करी की इच्छा के खिलाफ खड़ा किया गया था। फडणवीस महाराष्ट्र में भाजपा के पहले सीएम बने। बिहार में भी सुशील कुमार मोदी को हटा कर तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को डिप्टी सीएम बनाया गया है। पांच साल में इन दोनों को गढ़ कर भाजपा बिहार में पहले सीएम की दावेदारी पेश करेगी। जमे जमाये मठाधीशों की जगह नये चेहरे का प्रयोग, भाजपा के लिए अभी तक सफल रहा है।
नये चेहरों को मौका
भाजपा के 7 मंत्रियों में सिर्फ रेणु देवी और मंगल पांडेय ही पहले मंत्री रहे हैं। तारकिशोर प्रसाद, अमरेन्द्र प्रताप सिंह, रामप्रीत पासवान, जीवेश कुमार और राममूरत राय पहली बार मंत्री बने हैं। भाजपा में और भी वरिष्ठ और दिग्गज विधायक थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इन्हें की मौका देना बेहतर समझा। सुशील मोदी की तुलना में तारकिशोर प्रसाद कम पढ़े लिखे हैं। वे सिर्फ इंटर पास हैं। लेकिन इसके बावजूद तारकिशोर प्रसाद पर भरोसा किया गया। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि वे नीतीश की छाया से मुक्त पार्टी के लिए एक समर्पित नेता हैं। एनडीए की सरकार में वे भाजपा के हितों का बखूबी संररक्षण कर सकते हैं। वक्त आया तो वे नीतीश के सामने अड़ भी सकते हैं। सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से रुखसत कर केन्द्रीय नेतृत्व ने साफ कर दिया है अब नीतीश के साथ वह अपनी मर्जी से सरकार चलाएगी।
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नीतीश कुमार पर मनोवैज्ञानिक दबाव
भाजपा ने दो डिप्टी सीएम बना कर नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ा दिया है। इसके अलावा नीतीश कुमार को स्पीकर की पोस्ट भी भाजपा को देनी पड़ी। अनुभवी नेता नंदकिशोर यादव के स्पीकर बनने से भाजपा की स्थिति मजबूत रहेगी। 125 के आंकड़े वाली नीतीश सरकार को अगर भविष्य में बहुमत को लेकर कोई दिक्कत होती है तब स्पीकर की भूमिका सबसे अहम होगी। यह महत्वपूर्ण पद भाजपा के पास रहने से सत्ता पर उसकी पकड़ मजबूत रहेगी। फरवरी 2014 में जब नीतीश कुमार अल्पमत की सरकार चला रहे थे और राजद के 13 विधायकों ने विद्रोह कर दिया था तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने अहम भूमिका अदा की थी। तब लालू यादव ने नीतीश कुमार पर तोड़फोड़ का आरोप लगाया था। भाजपा से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार उस समय चार निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार चला रहे थे। कांग्रेस के चार विधायकों ने समर्थन का कोई लिखित पत्र नहीं दिया था। 2020 के चुनाव के बाद भविष्य में क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए स्पीकर की पद बहुत निर्णायक होने वाला है।
रोजगार का मुद्दा
बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना था। तेजस्वी यादव ने सबसे पहले 10 लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर बड़ी संख्या में वोटरों का अपनी तरफ खींचा था। तब नीतीश कुमार ने कहा था कि 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देना नामुकिन है। लेकिन अब नीतीश भाजपा के उस वायदे का क्या करेंगे जिसमें 19 लाख लोगों को रोजगार देने की बात कही गयी है। भाजपा भविष्य की राजनीति को पुख्ता करने के लिए इस चुनावी घोषणा को पूरा करना चाहेगी। अगर नीतीश कुमार इसे असंभव बता कर विरोध करेंगे तो यह उनके खिलाफ ही जाएगा। रोजगार अब एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। नीतीश के सामने समस्या होगी कि वे सात निश्चय पार्ट-2 लागू करें कि 19 लाख लोगों को रोजगार दें। नीतीश कुमार के इस अंतर्विरोध का फायदा उठा कर भाजपा अपना मकसद पूरा कर सकती है।
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