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क्या बिहार में कोरोना की जांच घटाकर सही स्थिति दबाना चाहती है नीतीश सरकार ?

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पटना, 6 मई: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आज सुबह तक बीते 24 घंटों में बिहार में कोरोना संक्रमण के 14,836 नए मामले सामने आए हैं और 61 लोगों की मौत का आंकड़ा दिखाया गया है। लेकिन, हकीकत ये है बीते दिनों में जितनी ही तेजी से संक्रमण का ग्राफ बढ़ रहा है, टेस्टिंग की संख्या उतनी ही तेजी से घटती जा रही है। सवाल है कि नीतीश सरकार में ऐसा क्यों हो रहा है। टेस्टिंग,ट्रेसिंग और ट्रीटिंग के कोविड प्रोटोकॉल को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है। जबकि, कोविड की दूसरी लहर में बिहार के ग्रामीण इलाके भी भयंकर रूप से वायरस के चपेट में आ चुके हैं। हालात बिगड़ने की वजह से ही वहां लॉकडाउन की घोषणा करनी पड़ी है।

बिहार में क्यों घटा दी गई है कोरोना की जांच ?

बिहार में क्यों घटा दी गई है कोरोना की जांच ?

न्यूज पोर्टल रेडिफ डॉट कॉम के मुताबिक पिछले 4 मई को विकास कुमार नाम का एक युवक पटना के गर्दनीबाग सरकारी अस्पताल में आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए गया। उसके साथ उसका पड़ोसी भी था। तीन घंटे तक लाइन में लगे रहने के बाद स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि लौट जाएं टेस्ट नहीं हो पाएगा। ये सिर्फ उनके साथ नहीं हुआ है और न ही कोई एक दिन की बात है। आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। उदाहरण के लिए 27 अप्रैल को बिहार में 1 लाख सैंपल की जांच हुई और 3 मई को वह संख्या बढ़ने की जगह घटकर सिर्फ 72,000 रह गई। ऐसा तब हो रहा है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद ही रोजाना 1 लाख से ज्यादा टेस्ट कराने की बात कही थी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार ब्रांच के सदस्य डॉक्टर सुनील कुमार के मुताबिक नए संक्रमण का तभी पता चल सकता है, जब ज्यादा से ज्यादा सैंपल की जांच की जाए। यही नहीं केंद्र सरकार की भी यही रणनीति है, जिसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हुए सुने जाते हैं- टेस्ट, ट्रेस एंड ट्रीट। लेकिन, बिहार इस रणनीति में क्यों पिछड़ रहा है या फिर ऐसा किसी खास वजह से किया जा रहा है?

जांच घटती गई, नए संक्रमण बढ़ते गए

जांच घटती गई, नए संक्रमण बढ़ते गए

सबसे बड़ी बात है कि पटना हाई कोर्ट का रुख देखने के बाद और राज्य में कोरोना से बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर ही सीएम ने 15 मई तक लॉकडाउन की घोषणा की है। अब आंकड़ों पर गौर कीजिए तो पता चलेगा कि अगर टेस्टिंग कम हो रही है तो यह कितने गंभीर संकट को दावत देने की तरह है। 27 अप्रैल को 1,00,238 सैंपलों की जांच हुई 12,604 सैंपल पॉजिटिव मिले। 28 अप्रैल को 1,03,895 सैंपलों की जांच हुई और 13,374 सैंपल पॉजिटिव निकले। 29 अप्रैल से जांच काम होने लगी। इस दिन सिर्फ 97,972 लोगों की जांच हुई, लेकिन फिर भी 13,089 सैंपल पॉजिटिव मिले। 30 अप्रैल को 98,169 जांच में 15,853 (पॉजिटिव मिले, 1 मई 95,686 सैंपल की जांच में 13,789 पॉजिटिव मिले, 2 मई को 89,393 सैंपल की जांच हुई और 13,534 नए संक्रमण सामने आए और 3 मई को सिर्फ 72, 658 सैंपलों की जांच हुई, फिर भी 11,407 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई।

टेस्टिंग कम करने के पीछे की क्या है रणनीति ?

टेस्टिंग कम करने के पीछे की क्या है रणनीति ?

सवाल है कि जब दूसरी लहर में कोरोना के मामले बिहार के गांवों में भी तेजी से फैल चुके हैं, फिर टेस्टिंग कम करने के पीछे की रणनीति क्या हो सकती है? जबकि, आंकड़े गवाह हैं कि कम टेस्ट होने के बाद भी नए संक्रमण का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। 30 मार्च को राज्य में सिर्फ 74 नए मामले सामने आए थे और अप्रैल-मई में इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। पिछले पांच दिनों में जिस दौरान टेस्टिंग कम हुई है, उसमें 500 से ज्यादा लोगों की वहां कोरोना से मौत भी हो चुकी है। गांवों में होने वाली कई मौतों का तो सही से आंकड़ा भी नहीं सामने आ रहा है।

क्या कोरोना के आंकड़े छिपाना चाहती है सरकार ?

क्या कोरोना के आंकड़े छिपाना चाहती है सरकार ?

कोरोना के कहर के बीच बिहार सरकार की टेस्टिंग रणनीति को देखकर लगता है कि अधिकारी इसमें जानबूझकर ढिलाई कर रहे हैं। हो सकता है कि राज्य सरकार प्रदेश में कोरोना की वास्तविक स्थिति पर पर्दा डालने के लिए इस रणनीति पर चल रही हो, जिससे आंकड़े ज्यादा नहीं बढ़ेंगे। जबकि,सच्चाई ये है कि ग्रामीण इलाकों में तो स्वास्थ्य का कोई ठोस बुनियादी ढांचा उपलब्ध ही नहीं है। कई जगहों पर कोरोना के लक्षणों वाले मरीजों का इलाज भी झोला-छाप डॉक्टर वायरल फ्लू के नाम पर कर रहे हैं। ऊपर से लगता है कि सरकार ने आरटी-पीसीआर टेस्ट और रैपिड एंटीजन टेस्ट को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश भी नहीं दे रखा है कि इन दोनों का अनुपात कितना होना है। सरकारी वेबसाइट पर भी इस संबंध में जानकारी नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, 'अगल-अलग कोविड टेस्ट से संबंधित डेटा हम नहीं शेयर कर सकते। हम से कहा गया है कि कोविड से संबंधित आधिकारिक डेटा के बारे में कुछ ना कहें।'

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रैपिड एंटीजन टेस्टिंग के भरोसे बिहार!

रैपिड एंटीजन टेस्टिंग के भरोसे बिहार!

स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक आरटी-पीसीआर टेस्ट की सुविधा सिर्फ जिला मुख्यालयों में ही उपलब्ध है और उनमें से भी कई जगहों पर वह काम नहीं कर पा रहा है। हालांकि, करीब दो हफ्ते पहले राज्य के स्वास्थ्य सचिव प्रत्तय अमृत ने माना था कि बिहार में 60 से 70 फीसदी रैपिड एंटीजन टेस्ट ही होते हैं और सिर्फ 25 से 30 फीसदी ही आरटी-पीसीआर टेस्ट होती है। जबकि, आरटी-पीसीआर टेस्ट को अभी भी कोविड की जांच में बेहतर माना जाता है और कुछ नए वेरिएंट को छोड़कर इसकी टेस्ट रिपोर्ट आमतौर पर सही होती है।

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English summary
New cases of Kovid infection are increasing daily in Bihar, but Nitish Kumar government is working on a strategy to reduce testing to suppress the figures
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