क्यों जातीय जनगणना के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ साथ आ रहे हैं नीतीश और लालू?
पटना, 03 अगस्त। क्या नीतीश कुमार एनडीए से विद्रोह करेंगे ? उनके इरादों से ऐसा लग रहा है कि बात बिगड़ेगी तो दूर तलक जाएगी। उनके एक बयान से बगावत की बू आ रही है। उन्होंने कहा है कि अगर केन्द्र सरकार जातीय जनगणना नहीं भी कराती है तो बिहार सरकार यह दायित्व पूरा करने का विकल्प खुला रखेगी। तो क्या नीतीश सरकार बिहार में स्वतंत्र तरीके से जातीय जनगणना कराएगी ? क्या राज्य सरकार को जातीय जनगणना कराने का अधिकार है ?
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2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट किसी राज्य सरकार को जातीय जनगणना कराने का आदेश नहीं दे सकता । ऐसा इसलिए क्यों कि यह केन्द्र सरकार का नीतिगत मामला है। कानून में केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह जनगणना कराने के तौर तरीका को तय करे। 2021 के जनगणना दस्तावेज में अन्य पिछड़ी जातियों की गिनती के लिए कोई कॉलम नहीं रखा गया है। केन्द्र सरकार संसद में कह चुकी है इस बार जातीय जनगणना नहीं करायी जाएगी। इसके बावजूद नीतीश कुमार बिहार में जातीय जनगणना कराये जाने क संकेत दे रहे हैं। क्या नीतीश केन्द्र के फैसले को चुनौती देंगे ?
सबसे अधिक हंगामा बिहार में क्यों?
आखिर बिहार में ही क्यों इस मुद्दे पर सबसे अधिक हंगामा मचा हुआ है ? दरअसल बिहार में राजद और जदयू को ही जातीय समूहों से सर्वाधिक ताकत मिलती रही है। लालू यादव वे 1990 में जिस पिछड़वाद की नींव रखी थी अब वह बिहार की जरूरत बन गया है। लालू यादव के समय सभी पिछड़ी जातियां एक थीं। इसलिए वे एक शतिशाली नेता बन सके। लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने इसमें विभाजन कर दिया। उन्होंने 1994 में तर्क दिया कि पिछड़े वर्ग की सभी जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। कुछ खास पिछड़ी जातियां ही इसका फायदा उठा रही हैं। अतिपिछड़ी जातियों की हकमारी हो रही है। इसलिए कर्पूरी ठाकुर फारमूले की तर्ज पर पिछड़े वर्ग और अतिपिछड़े वर्ग के लिए अलग-अलग आरक्षण तय किया जाय। जब लालू यादव को यह मंजूर न हुआ तो नीतीश कुमार ने अलग हो कर समता पार्टी बना ली थी। तब से नीतीश कुमार अतिपिछड़ी जातियों की राजनीति कर रहे हैं। अतिपिछड़ी जातियों का भरोसा जीतने में नीतीश को ग्यारह साल लग गये। फिर 2005 वे मुख्यमंत्री बने। लालू यादव की पार्टी इसलिए सत्ता से बाहर हुई क्यों कि पिछड़े वर्ग की अधिकतर जातियों ने उनका साथ छोड़ दिया। सिर्फ यादवों का समर्थन ही उनके साथ रहा।
1931 में अखंड बिहार की आबादी 3 करोड़ 85 लाख
1931 की जनगणना ब्रिटिश हुकूमत के दौरान की गयी थी। उस समय बिहार, झारखंड और ओडिशा एक राज्य थे। तब अखंड बिहार की कुल आबादी 3 करोड़ 85 लाख थी। हिंदू समुदाय में अगर किसी एक जाति की बात करें तो यादवों की संख्या सबसे अधिक थी। जाहिर है पिछले 91 साल में हर समुदाय की आबादी बहुत बढ़ी है। आज भी बिहार में यादव समुदाय की जनसंख्या को सबसे अधिक माना जाता है। माना जाता है कि अभी बिहार में यादवों की आबादी करीब 14 फीसदी है। भले देश में जातीय जनगणना नहीं हुई हो लेकिन बिहार में चुनावी रणनीति बनाने वाली एजेंसिंया अपने सर्वे या अलग अलग श्रोतों से बिहार में किस जाति का कितना प्रतिशत वोट है, इसका खाका बना रखा है। चुनावी गुणा-भाग अब तक इन्ही आंकड़ों के आधार पर होता रहा है। राजद जातीय जनगणना के लिए इसलिए जोर लगा रहा है ताकि वह यह जान सके कि यादवों की आबादी 14 फीसदी ही है या उससे भी अधिक ? अगर यह प्रतिशत अधिक हुआ तो वह अपने लिए और अधिक हिस्सेदारी मांगेगा। अगर पिछड़े वर्ग की हर जातियों का प्रमाणिक आंकड़ा मौजूद होगा तो वह बहुसंख्यक जाति को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करेगा।
अभी राजद-जदयू का मकसद एक
नीतीश कुमार की जातीय जनगणना में दिलचस्पी इसलिए अधिक है क्यों कि वह भी जानना चाहते हैं अतिपिछड़े वर्ग में किस जाति की आबादी कितनी है। चूंकि उनकी राजनीति का आधार ही इन समूहों पर टिका हुआ है इसलिए वे भी जातीय जनगणना के पक्ष में आ गये हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अतिपिछड़े वर्ग के समर्थन के बल पर 16 सीटें जीती थीं। माना जाता है कि बिहार में अतिपिछड़े वर्ग की आबादी करीब 25 फीसदी है। अतिपिछड़ा वर्ग में बढ़ई, कुम्हार, कहांर, कानू, तुरहा, माली, हलवाई, सोनार जैसी 127 से अधिक जातियां हैं। इन जातियों के अधितकर लोग परम्परागत कार्य करते हैं। इनमें कई जातियों को लोग जानते भी नहीं। अब जैसे छिपी, कथबनिया, पैरघा, जागा जैसी जातियों की शायद ही कभी चर्चा होती है। इसलिए इनके हक की भी कोई बात नहीं करता। अगर ऐसी सभी जातियों की आबादी मालूम हो जाएगी तो अतिपिछड़े वर्ग की राजनीति को साधने में सहूलियत हो जाएगी। चूंकि जदयू गैरयादव पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने की योजना पर काम कर रहा है। इसलिए वह जातीय जनगणना के लिए कड़े तेवर अपना रहा है। चूंकि अभी राजद और जदयू की तात्कालीक जरूरत एक समान है इसलिए दोनों साथ हो गये हैं।