आंखों-देखी: मुम्बई से आया मेरा यार, आंखों में मायूसी और दिल से लाचार
पटना, 21 अप्रैल। ऐ रुक्क ! रुक्का, रुक्क ! कहां भाग रहा है ? जानता नहीं, जांच जरूरी है ? पुलिस का एक जवान फर्श पर डंडा पटकते हुए भाग रहा है। उसके आगे सात- आठ नौजवान कंधे पर भारीभरकम बैग लटकाये दौड़ रहे हैं। बोझ के चलते वे ज्यादा तेज नहीं दौड़ पाते। पुलिस वाला उन्हें पकड़ लेता है। फिर उन्हें कोरोना जांच के लिए लाइन में खड़ा कर दिया जाता है। दानापुर रेलवे स्टेशन पर मुम्बई से एक ट्रेन आयी है। मुम्बई (पनवेल) से आने वाले सभी यात्रियों के लिए कोरोना टेस्ट अनिवार्य है। यात्री भी इस बात को जानते हैं। लेकिन कई यात्री क्वारेंटाइन होने के डर से बिना जांच कराये ही भागने लगते हैं। ये जल्दी से जल्दी घर जाने के लिए उतावले हैं। कई चलती ट्रेन से ही उतर जाते हैं। कई भाग निकले। कुछ पकड़े भी गये। प्लेटफॉर्म पर 'उभरते बिहार’ की यह तस्वीर बेचैन कर देने वाली है। रोटी की चिंता कोरोना के खौफ पर भारी है। पिछले साल कितनी मशक्कत के बाद मुम्बई से बिहार लौटे थे। तब तय किया था कि अब नहीं जाएंगे। बिहार में ही रहेंगे। लेकिन जब यहां पेट की आग ठंडी नहीं हुई तो फिर मुम्बई जाना पड़ा। पिछली बार चुनाव था तो छह महीने तक मुफ्त राशन देने की बात हुई थी। इस बार क्या होगा, पता नहीं।
मुम्बई से आया मेरा यार, आंखों में मायूसी और दिल से लाचार
मुम्बई से आने वाली इस ट्रेन के करीब 400 यात्रियों की कोरोना जांच हुई। दो पोजिटिव निकले। उन्हें एम्बुलेंस से पटना के क्वारेंटाइन सेंटर में पहुंचाया गया। कोरोना जांच के लिए जो लाइन लगी है उसमें सोशल डिस्टेंसिंग नदारत है। उन्हें बार-बार दो गज दूरी बनाये रखने के लिए कहा जाता है। लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेगंती। वे ऐसे खड़े हैं जैसे दो साल पहले मुम्बई के सिनेमा हॉल में टिकट के लिए खड़ा होते थे। बेपरवाह एक दूसरे से सट कर अपनी जांच की बारी का इंतजार कर रहे थे। इनकी आंखों में निराशा है। घर जाने में जितनी देर हो रही है उतनी झुंझलाहट बढ़ती जा रही है। जिंदगी अभी पटरी पर भी नहीं आयी थी कि फिर उथलपुथल मच गयी। कोई जुलाई-अगस्त में गया था तो कई छठ के बाद गया था। पांच- छह महीना बैठने के बाद काम मिला। मुम्बई में कोरोना तांडव के बीच भी काम करते रहे। लेकिन लॉकडाउन ने डरा दिया। अगर काम छूट गया और फंस गये तो क्या होगा ? कुछ ही दिन कमाये थे कि फिर भागमभाग। न इधर के रहे न उधर के। बिहार के लोग हमें बाहर वाले कहते हैं और मुम्बई के लोग बिहार वाले कहते हैं। इस खींचतान में जिंदगी झंड हो गयी है।
वहां जितनी कमाई थी यहां मुमकिन नहीं
इस बार बिहार सरकार बाहर काम करने वाले लोगों को घर बुला रही है। उनके रोजगार के लिए घोषणाएं भी हो रही हैं। कुशल कामगारों को रोजगार के लिए अब हर जिले को 75 लाख रुपये देने का एलान किया गया है। पंचायत स्तर पर रोजगार देने के लिए कैंप लगाया जाएगा। लेकिन पिछले साल सरकारी दावों की हकीकत देख ली है। मुम्बई से आने वाले एक नौजवान का कहना है, अगर हमें हमारी क्षमता के मुताबिक घर में रोजगार मिल गया होता तो मुम्बई क्यों जाते ? मैं टाइल्स लगाता हूं। रोज आठ सौ से एक हजार रुपये कमा लेता था। पच्चीस-तीस हजार में से कुछ पैसा घर भी भेजता था। क्या घर लौटने के बाद मुझे ऐसा काम मिल पाएगा ? क्या इतना पैसा कमा पाउंगा ? मुझ से मनरेगा की मजदूरी कैसे होगी ? मेरे कई साथी मुम्बई के पेंट हाउस और आलिशान बंगलों में मोड्यूलर किचेन बनाते थे। वे जितना कमाते थे उतना अपने गांव या जिले में कमाना सपने की तरह है। लेकिन मजबूरी में सब कुछ छोड़ कर घर जा रहे हैं।
घर लौटना आसान है क्या ?
गुजरात और मुम्बई से ट्रेनों का बिहार आना जारी है। बाहर काम करने वाले लोग बहुत फजीहत झेल कर ट्रेन में सवार हो पा रहे हैं। एक नौजवान ने चार दिन पहले का हाल बताया। मुम्बई में सुबह पांच बजे ट्रेन थी। रात ग्यारह बजे ही स्टेशन पर आ गये। गेट पर पुलिस ने रोक लिया। कहा, पक्का टिकट है तभी जाने देंगे। जिनके पास टिकट था वे अंदर गये। जिनके पास नहीं था वे बाहर रह गये। बिना टिकट वाले लोग दिन के तीन बजे से ही स्टेशन के अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन पुलिस डंडा पटक कर उन्हें खदेड़ देती। एक-दो बोतल पानी था। वो कब का खत्म हो गया। स्टेशन परिसर में जो कुछ खाने-पीने का मिल भी रहा था वो घंटे-दो घंटे खत्म हो गया। लोग भूखे-प्यासे गेट के बाहर इधर-अधर भटक रहे हैं। रिजर्वेशन वाला टिकट चाहिए। साधारण टिकट काउंटर बंद है। जब रात हुई तो कुछ टिकट दलाल घूमने लगे। कहने लगे कि बिहार जाना है तो दो हजार रुपये लगेंगे। सिर्फ बैठने की सीट मिलेगी। लेकिन ठगे जाने के डर से टिकट नहीं लिया। कुछ लोग ट्रक रिजर्व कर घर जाने की बात कर रहे थे। घर लौटना इतना आसान नहीं है जितना यहां लोग समझ रहे हैं। देख लीजिए, दानापुर आने के बाद भी धक्के खा रहे हैं।
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