Bihar assembly elections: VIP को 11 सीटें देकर जेडीयू को ‘कुर्सी’ से नौ दो ग्यारह करने की तैयारी
विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में पहले अपने रुख से लोगों को चौंकाया और अब वीआईपी के लिए दूसरों का रुख भी चौंकाने वाला है। वीआईपी को महागठबंधन में तेजस्वी से भाव नहीं मिला तो मुकेश सहनी ने एनडीए का दरवाजा खटखटाया। एनडीए, जहां आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा चक्कर काटते रह गये, चिराग पासवान को स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ना पड़ गया और जीतन राम मांझी के 'हम’ को भी नीतीश कुमार की जेडीयू ने अपने कोटे से जगह दी। ऐसे एनडीए में न सिर्फ वीआईपी नेता मुकेश सहनी को जगह मिली, बल्कि 11 सीटों के साथ उन्हें 'सम्मान’ मिला। बिहार की सियासत में यह चौंकाने वाला फैसला है और इसके मायने छोटे नहीं हैं।
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मुकेश सहनी ने महागठबंधन में रहकर 2019 में 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था- खगड़िया, मधुबनी और मुजफ्फरपुर। एक में भी उन्हें जीत नहीं मिली। खुद मुकेश सहनी को जितना वोट नहीं मिला, उससे बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। फिर भी उनके खाते में आए 2 लाख 54 हजार 184 वोट। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को पता चल चुका था कि मुकेश सहनी को खुद उनका वोट बैंक भी वोट नहीं कर रहा है। लिहाजा तेजस्वी ने वीआईपी को साथ रखकर अपनी हार सुनिश्चित करने का रास्ता नहीं चुना। महागठबंधन में जितनी सीट वे वीआईपी को देते, वह शुद्ध नुकसान होता।
बीजेपी ने क्यों खेला मुकेश सहनी की वीआईपी पर दांव?
बीजेपी ने मुकेश सहनी पर भरोसा किया है तो क्यों? मुकेश सहनी ने अपना राजनीतिक करियर बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार करते हुए 2014 में शुरू किया था। 2018 में वीआईपी बनायी। महागठबंधन में चले गये। एक बार फिर वे बीजेपी के साथ हैं तो इसकी वजह यह है कि मुकेश सहनी मल्लाह जाति का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं जिसकी आबादी प्रदेश में 6 फीसदी है। मगर, ओबीसी नेता के तौर पर उन्हें देखे जाने पर यही आबादी 15 फीसदी हो जाती है। एनडीए में बीजेपी जेडीयू से अंदरूनी लड़ाई लड़ रही है, बीजेपी अपना कद बढ़ाना चाहती है और चुनाव बाद की सियासत में अपने लिए समर्थकों का कुनबा तैयार कर रही है। एनडीए के भीतर जिस तरीके से नीतीश कुमार ने अपने कोटे से जीतन राम मांझी को टिकट दिया है वह गौरतलब इसलिए है क्योंकि मांझी की पार्टी 'हम’ एनडीए में है या नहीं, यह खुद उन्हें भी नहीं मालूम। जीतन राम का कहना है कि उनका गठबंधन जेडीयू से है। बीजेपी ने जवाबी रणनीति पर चलते हुए वीआईपी को उसी रूप में अपने कोटे से 11 सीटें दे डाली हैं। वीआईपी को जो सीटें एनडीए ने गठबंधन में दी हैं उनमें ब्रह्मपुर, बोचहा, गौरा बौराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर और बनियापुर। अंदरखाने की सियासत ये है कि इन सीटों पर ऐसा नहीं है कि उम्मीदवार वही होगा जिसे मुकेश सहनी चाहेंगे। बीजेपी के प्रति निष्ठा रखने वाले उम्मीदवार इन सीटों से खड़े दिखेंगे। मुकेश सहनी इस समझौते को अपना सम्मान समझकर स्वीकार करेंगे। यह बीजेपी की एक और रणनीति है और एनडीए के भीतर और बाहर विरोधियों के लिए चौंकाने वाली रणनीति है।
बिहार: लोजपा की चुनौती को अपने 'वोट बैंक' से नाकाम करने की है जदयू की तैयारी
बीजेपी
की
अतिपिछड़ों
तक
पहुंच
बनाने
की
कोशिश
बिहार में अब तक जिन सीटों पर बीजेपी ने प्रत्याशियों की घोषणा की है उनमें सवर्णों और बनियों का बोलबाला है। बीजेपी खुद को सवर्णों-बनियों का प्रतिनिधित्व करते हुए बिहार में पेश कर रही है तो सहयोगी दल उसे ऐसा चाहिए जो पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के साथ-साथ दलितों को जोड़ सके। वीआईपी जैसी अति पिछड़े वर्ग की राजनीति करने वाले को साथ जोड़कर वास्तव में बीजेपी ने अपनी सीटों के लिए जनाधार वर्ग बढ़ाने की कोशिश की है। बीजेपी की नज़र वीआईपी के रूप में एक पार्टी पर नहीं, बल्कि उस बहाने अति पिछड़ा वर्ग के 15 फीसद वोट बैंक तक पहुंच बनाने की है।
एलजेपी को एनडीए से बाहर बीजेपी दे रही है 'सम्मान'
एलजेपी
को
बीजेपी
अलग
तरीके
से
इस्तेमाल
कर
रही
है।
वह
एनडीए
से
बाहर
है।
जेडीयू
के
खिलाफ
है।
उस
प्लेटफॉर्म
पर
बीजेपी
के
वे
तमाम
नेता
इकट्ठे
हो
रहे
हैं
जिन्हें
जेडीयू
की
वजह
से
अपना
राजनीतिक
भविष्य
अंधकार
में
नज़र
आ
रहा
है।
इसमें
बड़ी
संख्या
में
बागी
भी
हैं।
बीजेपी
के
दिग्गज
नेता
रामेश्वर
चौरसिया,
पूर्व
मंत्री
रेणु
कुशवाहा,
पूर्व
विधायक
उषा
विद्यार्थी
समेत
बीजेपी
नेता
राजेंद्र
सिंह,
नरेंद्र
यादव
अब
तक
वो
नाम
हैं
जो
एलजेपी
में
शामिल
हो
चुके
हैं।
एनडीए
से
बाहर
एक
सहयोगी
दल
बीजेपी
ने
बिहार
विधानसभा
चुनाव
में
तैयार
कर
दिखाया
है।
मुकेश
सहनी
को
11
सीटें
देकर
और
एलजेपी
को
अलग
प्लेटफॉर्म
के
तौर
पर
खड़े
करने
में
मदद
कर
बीजेपी
ने
दरअसल
जेडीयू
को
बिहार
की
सियासत
में
निर्णायक
भूमिका
से
नौ
दो
ग्यारह
करने
की
तैयारी
कर
ली
है।
ऐसा
लगता
है
मानो
बीजेपी
का
मुकाबला
आरजेडी
से
न
होकर
जेडीयू
से
ही
हो।