बिहार के चुनाव परिणाम का देश की राजनीति पर असर, 7 प्वाइंट में समझिए
पटना- बिहार चुनाव का अंतिम परिणाम क्या रहने वाला है, इसकी भविष्यवाणी अभी भी करना मुश्किल है। लेकिन, जिस तरह से तमाम एग्जिट पोल ने एनडीए को राज्य की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, वह कहानी तो पूरी तरह से पलट चुकी है। बिहार में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनेगी या राजद अपनी जगह बनाए रखेगा यह तो अंतिम रिजल्ट के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि नीतीश कुमार के तीन-तीन कार्यकाल की एंटी इंकम्बेंसी के बावजूद सत्ताधारी गठबंधन ने जिस तरह से चुनावी समर में अपना दबदबा कायम रखा है तो उसमें सबसे बड़ा योगदान भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का माना जा सकता है। जाहिर है कि नतीजे चाहे जो भी रहें, लेकिन उसका असर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति पर देखने को मिल सकता है।
1- एक बार यह फिर साबित होता दिख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव और उनकी छवि वहां सत्ताधारी गठबंधन को सत्ता के करीब तक पहुंचाने में मदद की है। यह वही राज्य है, जहां लोकसभा चुनावों में एनडीए की 40 में से 39 सीटों पर जीत हुई थी। चिराग पासवान ने भी लोगों से पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग कर ही नीतीश के राह में रोड़े डाल दिए हैं।
2-बिहार में बिना किसी मजबूत नेतृत्व के भी भाजपा और मजबूत हुई है। वहां अभी पार्टी के सबसे बड़े नेता उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी हैं, जिनकी नीतीश कुमार से बहुत ही ज्यादा बनती है और इस चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन निश्चित तौर पर खराब हुआ है। लेकिन, नीतीश के प्रदर्शन के बाद प्रदेश के मौजूदा भाजपा नेता पार्टी की बढ़त की वाहवाही ले पाएंगे इसकी कम ही संभावना है।
3- महाराष्ट्र में शिवसेना जैसे सहयोगी से धोखा खाने के बाद बिहार में गठबंधन की राजनीति करते हुए अपना प्रदर्शन काफी बेहतर करने से बीजेपी को नया हौसला मिला है।
4- सिर्फ बिहार विधानसभा चुनाव ही नहीं, करीब दर्जन भर राज्यों में भाजपा ने उपचुनावों में भी अपना परचम लहराया है। जाहिर है कि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर भाजपा को जीत का भरोसा और ज्यादा कायम होगा।
5-बिहार के चुनाव नतीजे यह बताने के लिए भी काफी हैं कि तेजस्वी यादव ने अपनी रैलियों में जितनी भीड़ जुटाई उन्हें वो वोटों में उसी मात्रा में तब्दील नहीं कर पाए हैं और ना ही तमाम एग्जिट पोल से उनका बढ़ा हौसला ही बरकरार रह पाया है। वह जेडीयू को जरूर तीसरे स्थान पर करने में सफल हुए हैं, लेकिन इतना भी तय है कि वह बिहार में जनाधारविहीन कांग्रेस को इतने महत्वपूर्ण चुनाव में 70 सीटें देने की गलती कभी भी हजम नहीं कर पाएंगे।
6-कांग्रेस ने लालू यादव की गैर-मौजूदगी का फायदा उठाकर तेजस्वी यादव पर दबाव बनाया और 2015 से भी कहीं ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए। लेकिन, नतीजे ऐसे आए कि उसकी सीटें पिछली बार से भी काफी कम रह गईं। जाहिर है कि इसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर विरोधी फिर सवाल उठाएंगे, जो कि दोबारा अपनी मां के बाद अध्यक्ष पद पर बैठने की तैयारी कर रहे हैं।
7- बिहार में कांग्रेस ने सिर्फ राहुल गांधी को अपने 'परिवार' के एकमात्र सदस्य के रूप में स्टार प्रचारक बनाकर भेजा, नतीजा पार्टी के लिए उत्साहजनक नहीं रहा। मध्य प्रदेश में हुए उपचुनाव में भी यह तय हो चुका है कि कांग्रेस अब वहां सत्ता से बेदखल हो चुकी है और राहुल के तमाम लेफ्टिनेंट जमीन पर उन्हें कुछ भी सकारात्मक करके नहीं दिखा पाए।
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