तेजस्वी ने सीएम बनने की चाहत में कांग्रेस और माले के सामने डाल दिये हथियार
नई दिल्ली। तेजस्वी यादव ने सीएम बनने की चाहत में कांग्रेस और भाकपा माले के सामने हथियार डाल दिये। तेजस्वी की यही तमन्ना थी कि सहयोगी दल उन्हें अभी के अभी सीएम चेहरा मान लें और बदले में कुछ अधिक सीटें ले लें। जिस कांग्रेस पार्टी के वो 58 से 65 सीटें देने की बात कर रहे थे उसे 70 सीटें देनी पड़ी। वाल्मीकि नगर लोकसभा उपचुनाव की सीट भी कांग्रेस के खाते में गयी। गदगद कांग्रेस ने तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार मान लिया। इसके पहले कांग्रेस कई बार तेजस्वी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा चुकी थी। जिस सदानंद सिंह ने तेजस्वी को लिमिट में रहने की चेतावनी दी थी वे तेजस्वी को नेता मानने के लिए मंच पर मौजूद थे। कल तक राजद, भाकपा माले को 15 सीट से अधिक देने के लिए राजी नहीं था लेकिन उसे आज 19 सीटें देकर गठबंधन में तीसरा सबसे बड़ा साझीदार बनाना पड़ा। समय-समय पर सवाल उठाने वाले भाकपा माले ने भी तेजस्वी को नेता मान लिया। सीपीएम और सीपीआइ तो लालू के जमाने भी राजद का साथ दे चुकी हैं। तेजस्वी यादव ने आज बड़े फक्र से कहा, सभी छह दलों ने मेरे नेतृत्व में चुनाव लड़ने के लिए एक मजबूत गठबंधन बनाया है। तेजस्वी पहली बार सीएम कैंडिडेट के रूप में चुनाव लड़ेंगे जो उनके छोटे से राजनीकि जीवन के लिए बहुत बड़ी बात है।
तेजस्वी की खुशी में खलल
तेजस्वी के मनोनुकूल गठबंधन में मुकेश सहनी के विद्रोह ने खलल डाल दिया। मुकेश सहनी को उम्मीद थी कि उनकी हिस्सेदारी की घोषणा भी संयुक्त प्रेस कांफ्रेस में कर दी जाएगी । लेकिन तेजस्वी ने अपने 144 के कोटे से कुछ सीटें देने की बात कह कर मुकेश सहनी को नाराज कर दिया। मुकेश सहनी ने तेजस्वी पर पीठ में छूरा घोंपने का आरोप लगाया है। तेजस्वी को अगर मुकेश सहनी को मनाने की गरज पड़ गयी तो राजद को 130-135 सीटों पर भी चुनाव लड़ना पड़ सकता है। राजद को अपने कोटे में से झामुमो को भी कुछ सीटें देनी है। पहले चर्चा थी कि मुकेश सहनी की वीआइपी को 9 सीटें देने पर रजामंदी हो गयी है। लेकिन आखिरी वक्त में वीआइपी को वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया। अगर रुठे सहयोगिय़ों को मनाने की मजबूरी में तेजस्वी को 130-135 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा तो ये उनकी उम्मीदों से बहुत कम होगा। आज से कुछ दिन पहले तक राजद 150 सीटों पर लड़ने की बात कर रहा था। राजद विधायक भोला यादव ने 150 सिम्बल लेटर पर लालू यादव से दस्तखत करा भी लिये थे। लेकिन तेजस्वी को सीएम प्रोजेक्ट करने एवज में लालू ने अपनी सीटों की कुर्बानी दे दी।
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तेजस्वी पहली बार झुके कांग्रेस के सामने
कांग्रेस ने पहली बार सीट शेय़रिंग के मुद्दे पर राजद को झुकाया है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने लिए 15 से 12 सीटें मांगती रही लेकिन लालू ने कोई तवज्जो नहीं दी। कांग्रेस को मजबूरी में 9 सीटों पर पर राजी होना पड़ा था। दूसरी तरफ लालू ने केवल छह साल पुरानी रालोसपा को पांच सीटें दे कर कांग्रेस को एक तरह से चिढ़ा दिया था। लेकिन एक साल बाद राजद की हालत ये हो गयी कि उसे कांग्रेस की शर्तों पर सीट बंटवारा करना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजद ने कांग्रेस को 70 सीटें दे कर एक बड़ा जोखिम उठाया है। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति ऐसी नहीं है कि उसके पास जीतने लायक 70 कैंडिडेट हैं। यह फैसला उसी तरह का है जैसे कि लालू यादव ने 2010 में लोजपा को 75 सीटें दे कर चुनावी समझौता किया था। राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस सीट शेयरिंग का नतीजा ये रहा था कि राजद के विधायकों की संख्या 54 से घट कर 22 पर आ गिरी थी। लोजपा को 75 में से केवल 3 सीटों पर जीत मिली थी। गठबंधन में किसी दल के लिए अधिकतम सीट लेने ज्यादा महत्वपूर्ण उसके जीत के आंकड़े हैं। अगर कमजोर दल हैसियत से अधिक सीटें लेते हैं तो आखिरकार नुकसान गठबंधन का ही होता है। 27 विधायकों वाली कांग्रेस अगर दुगने से भी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो यह उसके दबाव का नतीजा है। 2015 में लालू कांग्रेस को 25 से अधिक सीटें नहीं देना चाहते थे लेकिन जब दिन गिरे तो वे 70 पर भी राजी हो गये।
भाकपा माले के सामने भी झुका राजद
तेजस्वी को भाकपा माले के सामने भी झुकना पड़ा। उन्हें माले को 15 की बजाय 19 सीटें देनी पड़ी। शुक्रवार को राबड़ी आवास पर वार्ता के लिए आमंत्रित किये दीपांकर भट्टाचार्या को राजद ने 15 सीटें ऑफर की थीं। लेकिन एक दिन बाद उन्हें 19 देने पर राजी होना पड़ा। इतना ही नहीं राजद को अपनी जीती हुई आरा सीट भी माले को देनी पड़ी है। 2015 में आरा से राजद के मो. नवाज आलम जीते थे। 2015 के चुनाव में इस सीट पर माले उम्मीदवार को केवल पांच हजार ही वोट मिले थे फिर भी राजद को अपना दावा छोड़ना पड़ा है। अब आरा से माले का उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। खबरों के मुतबिक राजद ने अपनी पालीगंज सीट भी माले को दी है। वैसे अभी केवल सीटों का बंटवारा हुआ है। कौन सीट किसके खाते में गयी है, इसका फैसला नहीं हुआ है। लेकिन अभी तक जो भी राजनीतिक तस्वीर सामने आयी है उसमें राजद का 'मुलायम' चेहरा ही सामने आया है। जैसे उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव अपने असंगत फैसलों की वजह से राजनीति परिदृश्य से गायब हो गये कहीं वही संकट राजद के सामने न आ जाए।
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