क्या ‘चिराग’ की रोशनी में नरेन्द्र मोदी की तस्वीर देख डर गए नीतीश कुमार?
क्या चिराग की रोशनी में नरेन्द्र मोदी की तस्वीर देख कर डर गये थे नीतीश ? क्या नीतीश को इस बात की आशंका थी कि अगर लोजपा ने मोदी के नाम पर वोट मांगा तो उनका खेल बिगड़ जाएगा ? लोजपा-जदयू की लड़ाई में जब भाजपा तमाशबीन बनी रही तो नीतीश को धमकी पर उतरना पड़ा। नीतीश ने भाजपा को दो टूक कह दिया कि वह दोनों हाथ में लड्डू नहीं रख सकती। उसे लोजपा या जदयू में से किसी एक को चुनना होगा। मंगलावार को दिन के तीन बजे ही सीट बंटवारे पर नीतीश के साथ भाजपा की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस होनी थी। लेकिन जब तक भाजपा ने नीतीश को पक्का भरोसा नहीं दिया तब तक इसे टाला जाता रहा। नीतीश आर या पार के लिए अड़ गये तो भाजपा ने घुटने टेक दिये। संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस से पहले ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को मीडिया के सामने बार-बार ये कहना पड़ा कि नीतीश ही एनडीए के नेता हैं। उन्हें लोजपा से किनारा करने के लिए कहना पड़ा कि एनडीए में वही रहेगा जो नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार करेगा। भाजपा ने जैसे ही अपना स्टैंड क्लीयर किया नीतीश ने साझा प्रेस कांफ्रेंस के लिए रजामंदी दे दी।
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नीतीश की धमकी
नीतीश कुमार अपने नेतृत्व को लेकर पहले कभी इतने आशंकित नहीं हुए थे। जदयू के नेता शुरू में चिराग की बगावत को कोई अहमियत नहीं दे रहे थे। जदयू के कई नेताओं ने तो चिराग पासवान को अकेले चुनाव लड़ने तक की चुनौती दी थी। लेकिन जैसे ही चिराग ने अलग हो कर मोदी की तारीफ और नीतीश की मजम्मत शुरू की, जदयू का नजरिया बदल गया। नीतीश को अंदेशा सताने लगा कि कहीं लोजपा को मोदी के नाम का फायदा न मिल जाए। चूंकि जदयू के सभी उम्मीदवारों को लोजपा से चुनौती मिलने वाली है, ऐसे में अगर मोदी समर्थकों ने जदयू की बजाय लोजपा को वोट दे दिये तो बेड़ा गर्क हो सकता है। चुनाव में तीन और महागठबंधन पहले से जोर आजमाइश कर रहे हैं। अगर लोजपा ने थोड़े मतों का भी हेरफेर कर दिया तो नतीजे बदल सकते हैं। चिराग की बगावत का सारा नुकसान अकेले जदयू को झेलना पड़ता। इसलिए नीतीश ने तय किया कि अब भाजपा को हरहाल में लोजपा से दूर करना है। इसलिए नीतीश ने भाजपा के सामने शर्त रख दी कि वह लोजपा से नाता तोड़ने का एलान सार्वजनिक मंच से करे।
धमकी से डरे भाजपा नेता
नीतीश और भाजपा की साझा प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सुशील मोदी ने कई बार इस बात को दोहराया कि जिसे नीतीश मंजूर नहीं उसके लिए एनडीए में कोई जगह नहीं। मंच पर भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेन्द्र यादव, चुनाव प्रभारी देवेन्द्र फड़नवीस, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी मौजूद थे। उनके सामने सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को संतुष्ट करने के लिए जितनी बातें कहीं उससे यही प्रतीत हुआ कि भाजपा बहुत गहरे दबाव में थी। नीतीश ने भाजपा को इस मंच से सफाई देने के लिए मजबूर कर दिया था। सुशील मोदी को यह भी कहना पड़ा कि अगर चिराग पासवान ने पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तस्वीर का इस्तेमाल किया तो वे इसकी शिकायत चुनाव आयोग से करेंगे। सुशील मोदी ने हर पहलू से नीतीश को खुश करने की कोशिश की। मोदी ने कहा, भजापा के विधायकों की संख्या अगर जदयू से अधिक भी हुई तो भी नीतीश ही सीएम होंगे। उन्होंने कहा कि हमने नीतीश कुमार को नेता माना है तो इसे पूरी ईमानदारी से माना है। संख्याबल से इस फैसले पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा।
भाजपा को क्यों देनी पड़ी सफाई ?
दरअसल चिराग पासवान के एक बयान ने जदयू को बेचैन कर दिया था। चिराग ने सोमवार कहा था कि चुनाव के बाद अगली सरकार भाजपा के नेतृत्व में बनेगी जिसमें लोजपा भी शामिल होगी। लोजपा के सभी विधायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में काम करेंगे। इसके बाद जदयू के कान खड़े हो गये। उसको शक होने लगा कि भाजपा पर्दे के पीछे लोजपा के साथ मिलकर उसके खिलाफ कोई खिचड़ी पका रही है। अगर भाजपा के अधिक उम्मीदवार जीत गये और उसे लोजपा के समर्थन से सरकार बनाने विकल्प मिल जाएगा तो जदयू का पत्ता यूं ही साफ हो जाएगा। हालांकि ये सारी बातें अटकलों और अनुमानों पर आधारित थीं लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार का आत्मविश्वास डगमगा गया। नीतीश कुमार खुद को बिहार में सबसे बड़ा चुनावी चेहरा मानते हैं। उनको अपने काम और समीकरण पर भी बहुत भरोसा है। लेकिन चिराग के बाउंसर ने उन्हें डक करने पर मजबूर कर दिया। नीतीश ने कोई जोखिम उठाने से बेहतर यही समझा कि भाजपा को लोजपा बिल्कुल जुदा कर दिया जाए।
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मोदी का फोटो और बिहार की राजनीति
नरेन्द्र मोदी की तस्वीर ने एक बार फिर बिहार की सियासत में खलबली मचायी। 2010 में नरेन्द्र मोदी के साथ अपनी तस्वीर प्रकाशित होने पर नीतीश कुमार इतने नाराज हुए थे कि उन्होंने आडवाणी समेत भाजपा के तमाम नेताओं की खुलेआम तौहीन कर दी थी। इस बार चिराग के साथ नरेन्द्र मोदी की तस्वीर ने नीतीश कुमार को इतना विचलित कर दिया कि उन्होंने भाजपा नेताओं को सफाई देने पर मजबूर कर दिया। लोजपा को एनडीए से दरकिनार करने का एलान किसी दूसरे मौके पर हो सकता था। लेकिन जानबूझ कर इसके लिए संयुक्त प्रेसवार्ता के मंच को चुना गया। सीट बंटवारे से अधिक चर्चा उसी बात की हो रही है कि भाजपा के नेताओं ने नीतीश के नेतृत्व को स्वीकर करने के लिए कितने मिनट में कितनी बार उनका नाम लिया। अब सवाल ये है कि अगर नीतीश कुमार इतने ही मजबूत और लोकप्रिय नेता हैं तो फिर उन्हें लोजपा का मोदी प्रेम क्यों अखर रहा है ? क्यों नहीं वे अपने बल पर चुनावी नैया पार लगाने की सोच रहे ?