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सोशल मीडिया की वजह से प्रचार की सामग्री का बाजार ठंडा, पंचायत एवं निकाय चुनाव में 60 फ़ीसदी तक कम हुआ व्यापार

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रीवा, 15 जून: जिले में चुनावों की सरगर्मी तेज हो चुकी है, मगर चुनाव प्रचार सामग्री के बाजार में मायूसियत पसरी हुई है। ऐसा पहली बार देखने को मिला है जब राज्य में चुनाव का माहौल गर्म है, मगर प्रचार सामग्री की दुकान है बिल्कुल ठंडी पड़ी हुई हैं। इसका सबसे बड़ा कारण सोशल मीडिया को माना जा रहा है। इसके जरिए लोगों तक आसानी से कम खर्चे में पहुंचा जा सकता है। चुनाव आते ही जहां इन दुकानों पर पार्टियों और प्रत्याशियों के द्वारा बैनर, झंडे, गमछे, पोस्टर, बिल्ले, टोपी आदि की मांग बढ़ जाती थी, वहीं इस बार माहौल पूरी तरह से शांत दिखाई दे रहा है।

Social media

वर्तमान के चुनावों में प्रचार का मुख्य जरिया प्रत्याशियों ने सोशल मीडिया यानी फेसबुक और व्हाट्सएप को बना लिया है जिसके जरिए आसानी से लोगों तक कम खर्चे में पहुंचा जा सकता है‌। प्रत्याशियों के फेसबुक में पेज बने हुए हैं, जिसके जरिए वे वोटरों तक अपना संदेश आसानी से पहुंचा पाने में सफल हो रहे हैं। उनके समर्थकों के द्वारा इन पोस्टों को अधिक से अधिक शेयर करने का भी काम किया जा रहा है। इस माध्यम के जरिए प्रत्याशियों की बात आसानी से वोटरों तक पहुंच रही है हालांकि फेसबुक अकाउंट और पेज की पब्लिक सिटी करने के लिए अलग से आपरेटर व कंपनियां भी काम करने लगी हैं।

चुनाव आयोग की लगाम का असर

घरों के बाहर प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह से छपी दीवारें व समर्थकों के सिर पर टोपी हो या बिल्ले यह दर्शाते थे कि निर्वाचन की सरगर्मी तेज हो गई है और मतदान का समय करीब आने लगा है।लेकिन चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के बढ़ते खर्च को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा तय कर दी थी जिसके बाद शक्ति से निगरानी भी होने लगी है। इसी कारण लोगों ने चुनाव सामग्री पर पैसे खर्च करना बंद कर दिया है। निकाय चुनाव में वर्तमान में केवल हैड बिल का ही चलन रह गया है, जो प्रत्याशी व समर्थक अपने वोटरों के घर-घर तक पहुंचा देते हैं।

प्लास्टिक बैन होने से बढ़ी कीमतें

सतना के अमरपाटन के जिला सहकारी बैंक के पास चुनाव प्रचार सामग्री की दुकान चला रहे श्रद्धा प्रिंटिंग प्रेस के विजय पटेल का कहना है कि कोरोना के बाद से पार्टियां जनसंपर्क के लिए सोशल मीडिया का उपयोग अधिक कर रहे हैं। जिसके वजह से आउट डोर कैंपेनिंग कम हो गया है, जिसकी वजह से चुनाव प्रचार सामग्री की बिक्री पर लगभग 60% की कमी आई है वहीं ज्योत्सना प्रिंटिंग प्रेस के हीरालाल पटेल का कहना है कि चुनाव प्रचार की सामग्रियां थोड़ी महंगी हो चुकी हैं प्लास्टिक के बैन हो जाने के कारण चुनाव प्रचार की सामग्रियों को बनाने कितने कागज और कपड़े का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके वजह से दाम बढ़ गए हैं।पार्टियों के झंडे ₹5 से ₹200 तक में उपलब्ध हैं इसी तरह पटका₹2 से ₹10 तथा विभिन्न पार्टियों के टीशर्ट ₹100 से 250 रुपए ताक में मिल रहे हैं।

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English summary
Due to social media, the market of promotional material is cold, business reduced by 60% in panchayat and civic elections
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