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151 साल का हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट, हर हिंदुस्तानी को पढ़नी चाहिएं ये खास बातें

आज इलाहाबाद हाईकोर्ट 151 साल का हो गया है। डेढ सौ सालों में एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसले किए हैं।

By Rizwan
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इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को अमेरिका के न्यायालयों में भी महत्वपूर्ण निर्णयों की श्रेणी में मानकर बड़े सम्मान के साथ पढ़े जाते हैं। इस कोर्ट की निर्भीक क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री के विरुद्ध भी निर्णय दिया जा चुका है। जबकि क्रांतिकारियों पर भी यहां बड़े फैसले हुए।

151 साल का हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट

151 साल का हुआ इलाहाबाद हाइकोर्ट

151 साल का हुआ इलाहाबाद हाइकोर्ट

आज इलाहाबाद हाईकोर्ट 151 साल का हो गया है। लेकिन इन डेढ सौ सालों में एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक और साहसिक फैसलों से पूरे दुनिया में न्यायपालिका के लिये नजीर पेश की। जिसे गर्व के साथ हर हिंदुस्तानी को पढना व जानना चाहिये। आज इलाहाबाद हाईकोर्ट की साख का ही असर है कि यहां के निर्णय को अमेरिका के न्यायालयों में भी महत्वपूर्ण निर्णयों की श्रेणी में मानकर बड़े सम्मान के साथ पढ़े जाते है।

प्रधानमंत्री के खिलाफ भी दिया गया फैसला

प्रधानमंत्री के खिलाफ भी दिया गया फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट की निर्भीक क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां से प्रधानमंत्री तक के विरुद्ध भी निर्णय दिया जा चुका है। यहां तक की अयोध्या में राम लला मंदिर के लिये भी फैसला सुना चुका है।

आजादी के मतवाले क्रांतिकारियों से लेकर, अण्डरवर्ल्ड डॉन, नेता से लेकर अफसर, घोटालों से लेकर अपराध व आम आदमी के मुकदमों में यहां के निर्णय न्यायपालिका के लिये उदाहरण बनते रहे हैं। क्रांतिकारियों का कानपुर बम कांड, चौरीचौरा केस, आगरा कॉन्सपिरेंसी , पीएम इंदिरा गांधी, जगदंबिका पाल केस इतिहास में दर्ज वह स्वर्णिम फैसले हैं जो न्यायपालिका की मौजूदगी में भारत की इस अदालत का इतिहास सुनाते रहेंगे। आने वाले वक्त में इस हाईकोर्ट की पूरी प्रक्रिया यानी मुकदमों से लेकर दस्तावेज डिजिटल हो जायेंगे। तब इसका रूतबा कहीं और बुलंद हो जायेगा।

दुनिया के सबसे शार्प बैरिस्टर यहां कर चुके प्रैक्टिस

दुनिया के सबसे शार्प बैरिस्टर यहां कर चुके प्रैक्टिस

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दुनिया के सबसे टॉप और शार्प बैरिस्टर प्रैक्टिस करते थे। जिनमे पं. मोतीलाल नेहरू, पं.मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू, बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन, पं. जवाहर लाल नेहरू आज भी इस पेशे में आने वाले लोगों के लिये आदर्श हैं और इनकी चर्चा विदेशों में जमकर होती थी। साथ ही वहां के वकील इनसे परामर्श लेकर बड़े बड़े केश की पैरवी किया करते थे। इस कड़ी में न्यायमूर्ति रहे गिरिधर मालवीय को कौन भूल सकता है।

पं. कन्हैयालाल मिश्र, बाबू जगदीश स्वरूप, सतीश चंद्र खरे, श्यामनाथ कक्कड़, शांतिभूषण, पं.प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी, शेखर सरन, एसएन मुल्ला ने यहीं से पूरे देश में ख्याति आर्जित की। शांतिभूषण व श्यामनाथ कक्कड़ तो केंद्रीय विधि मंत्री भी रहे। बाबू जगदीश स्वरूप फौजदारी मामलों के प्रसिद्ध वकील रहे तो आनंद देव गिरि सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल रहे। जबकि यहां यहां के न्यायाधीश जस्टिस आरएस पाठक, जस्टिस केएन सिंह, जस्टिस वीएन खरे देश के प्रधान न्यायाधीश भी बने।

जब प्रधानमंत्री इंदिरा का निर्वाचन रद्द होने पर दुनिया हुई स्तब्ध

जब प्रधानमंत्री इंदिरा का निर्वाचन रद्द होने पर दुनिया हुई स्तब्ध

बात उस समय की है जब इंदिरा गांधी देश की जनता के दिलों पर राज कर रही थी। 1971 में संसदीय चुनाव का फिर से बिगुल बजा। इंदिरा रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में मैदान में उतरी। उस समय प्रधानमंत्री के विरुद्ध देश भर में चर्चित दिग्गज राजनेता राजनारायण चुनाव लड़ने मैदान में आ गये ।चुनाव सम्पन्न हुआ और काउंटिंग में इंदिरा गांधी 18 लाख तीन हजार 309 वोट पाकर रिकॉर्ड मतो से जीत गयी।

तब राजनारायण ने इंदिरा की जीत को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने आरोप लगाया की, इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए। उनकी याचिका संख्या (5/1971) हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली। इस मामले में शांति भूषण राज नारायण के वकील थे ।

हाइकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और 12 जून 1975 को कोर्टरूम नंबर 24 में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने एतिहासिक फैसले को सुनाते हुए इंदिरा गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था । साथ ही इंदिरा गांधी के छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाते हुये अयोग्य भी ठहरा दिया। इलाहबाद हाइकोर्ट ने हाईकोर्ट के दिग्गज वकील पंडित मोती लाल नेहरू की पोती और आजाद भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के खिलाफ ऐसा फैसले सुनाया था कि पूरी दुनिया हिल गयी थी।

 देश में जब इमरजेंसी लगी

देश में जब इमरजेंसी लगी

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 27 जून 1975 को देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी । इस घोषणा के बाद गैर कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं के लिये मुश्किल खड़ी हो गई । उन्हे मीसा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाने लगा। एक के बाद एक नेताओ को जेलों में ठूंसा जाने लगा। तब भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई ।

कोर्ट ने 6885/1975 नंबर पर उनकी याचिका स्वीकार कर ली। उसी समय वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी भी सामने आये और याचिका दायर की। रिकार्ड में उनकी याचिका 7428/1975 आज भी दर्ज है। इमरजेंसी में मीसा कानून के तहत नेताओ की गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई । इन दोनो याचिकाओ पर तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति केबी अस्थाना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की अपने ऐतिहासिक फैसले में नेताओं की गिरफ्तारी निरस्त कर दी।

जब पैदा हुआ संवैधानिक संकट टाला

जब पैदा हुआ संवैधानिक संकट टाला

उत्तर प्रदेश में आज योगी सरकार पूर्ण बहुमत में है और संवैधानिक रूप से शासन कर रही है। लेकिन बात 1998 की है। उस वक्त बेहद ही सख्त कहे जाने वाले कल्याण सिंह की सरकार सूबे में थी। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 23 फरवरी 1998 को यूपी के कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया और लोकतांत्रिक कांग्रेस दल के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी।

फिर क्या था यूपी समेत पूरे देश में भूचाल आ गया। लोगों को लगा कहीं फिर इमरजेंसी के हालात न हो जाये। क्योंकि अब तो संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। आश्चर्य जनक तरीके से ही सही यूपी में दो-दो मुख्यमंत्री हो गये।

उस वक्त डा. नरेंद्र कुमार सिंह गौर ने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। सुनवाई होने लगी तो न्यायमूर्ति वीरेंद्र दीक्षित व न्यायमूर्ति डीके सेठ की खंडपीठ ने कल्याण सिंह की बर्खास्तगी पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर राज्यपाल चाहें तो कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने का आदेश दे सकते हैं। फिर क्या था यूपी में आया संवैधानिक संकट टल गया। लेकिन उस दौरान आलम यह था कि कोर्ट का फैसला सुनने के लिए हाईकोर्ट के चारों तरफ सड़के पब्लिक और नेताओं से खचाखच भरी थी यह वह दौर था जब हिंदुस्तान के सबसे बड़े सियासी संकट का हाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था ।

ये दिलचस्प आंकड़ा

ये दिलचस्प आंकड़ा

क्या आप जानते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐतिहासिक केस में किस जज ने फैसला सुनाया था, नहीं ! तो हम बताते हैं आपको उन ऐतिहासिक जज और उनके केस फैसले के बारे में

1 - चौरीचौरा लूट कांड केस
इस केस की सुनवाई सर मियर्स व जस्टिस पिगॉट ने करते हुये क्रांतिकारियों को सजा सुनाई थी।

2 - क्रांतिकारियों द्वारा किया गया 'कानपुर बम कांड केस'
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति इकबाल अहमद एवं जस्टिस आलसॉप ने की थी।

3 - प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी केस
इस केस की सुनवाई जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने करते हुये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया था।

4 - इमरजेंसी में मीसा कानून में गिरफ्तारी
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति केबी अस्थाना ने करते हुये नेताओ की गिरफ्तारी रद्द कर दी थी।

 खुद का म्यूजियम, अनूठी उपलब्धि

खुद का म्यूजियम, अनूठी उपलब्धि

इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का पहला ऐसा हाईकोर्ट है, जिसका अपना संग्रहालय व आर्काइव सिस्टम है। 1966 में स्थापित वातानुकूलित व आधुनिक म्यूजियम में हाईकोर्ट के गठन वाले ब्रिटेन के महारानी की ओर से जारी लेटर्स पेटेंट, पहले चीफ जस्टिस से वर्तमान चीफ जस्टिस तक की तस्वीर।

यहां के दिग्गज वकीलों की फोटो, इलाहाबाद में जजों की शुरुआती पोशाक, बिग, कुर्सी, मुहर, सिक्के, पहली महिला जज, पहली महिला वकील, प्रिवी कौंसिल गए जज की फोटो, ऐतिहासिक फैसले, हाईकोर्ट पर जारी डाक टिकट आदि संग्रहीत हैं।

एक दिलचस्प बात यह है कि इलाहाबाद में हाईकोर्ट की शुरुआत के बाद तीली वाले पहियों की गिनती की कारें एक दो दिग्गजों के पास थी । लेकिन वर्तमान एक से बढ़कर एक कारों के काफिले से चारों तरफ की सड़कें भरी रहती हैं। चैंबरों के बाहर बरामदों में भी वकीलों के लिए बैठने की जगह नहीं रह गई।

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English summary
Allahabad High Court unknown facts everyone should know
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