इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, कहा- पहली पत्नी को मर्जी के खिलाफ अपने साथ नहीं रख सकता मुस्लिम पुरूष
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, कहा- पहली पत्नी को मर्जी के खिलाफ अपने साथ नहीं रख सकता मुस्लिम पुरूष
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह को लेकर अहम और बड़ा फैसला दिया है। इलाहाबाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'इस्लामिक कानून के मुताबिक, मुस्लिम व्यक्ति को एक बीवी के रहते दूसरी शादी करने का अधिकार है। मगर, पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ कोर्ट से साथ रहने के लिए बाध्य करने का आदेश पाने का अधिकार नहीं है।' यह फैसला न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने सुनाया है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, संत कबीर नगर की परिवारिक अदालत ने पहली पत्नी को उसके पति के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ रहने के लिए आदेश देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट के इस आदेश को याचिकाकर्ता अजीजुर्रहमान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और राजेंद्र कुमार ने सुनवाई करते हुए संत कबीर नगर की परिवारिक अदालत के फैसले को सही ठहराया।
कोर्ट नहीं कर सकता बाध्य
कोर्ट ने याचिकाकर्ता अजीजुर्रहमान की याचिका खारिज करते हुए कहा, 'मुसलमानों को स्वयं ही एक पत्नी के रहते दूसरी से शादी करने से बचना चाहिए। एक पत्नी के साथ न्याय न कर पाने वाले मुस्लिम को दूसरी शादी करने की स्वयं कुरान ही इजाजत नहीं देता।' कोर्ट ने कहा कि यह पहली पत्नी के साथ क्रूरता है और कोर्ट भी पहली पत्नी को पति के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।
महिलाओं को गरिमामय जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार
कोर्ट ने कहा यदि पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ पति के साथ रहने को बाध्य करती है, तो यह महिला के गरिमामय जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लघंन होगा। इस दौरान कोर्ट ने कुरान की सूरा चार आयत तीन के हवाले से कहा, यदि मुस्लिम अपनी पत्नी तथा बच्चों की सही देखभाल करने में सक्षम नहीं है तो उसे दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं होगी।
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