एक मुस्लिम परिवार, जिसके बिना अधूरा है गुजरात का दशहरा
अहमदाबाद। हिन्दू-मुस्लिम के बीच कई टकराव देखने वाला अहमदाबाद में शराफत अली फारूकी अपने हुनर से एक ऐसी मिसाल पेश कर रहे हैं कि दशहरा आते ही रामलीला कमैटी उन्हें ढूंढने लगती है।
शराफल अली फारूकी उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले हैं। 37 साल के हो चुके फारूकी का काफी वक्त अहमदाबाद में गुजरता है, खासतौर से दशहरा से पहले।
फारूकी का अहमदाबाद के रमोल इलाके में स्टूडियो है, जहां वो रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाते हैं। 30 फीट से भी ज्यादा ऊंचाई वाले इन पुतलों की पूरे शहर में मांग है।
जानिए दशहरे का महत्व और खास बातें...
इस साल भी फारुकी ने अहमदाबाद में 15 बड़े पुतले बनाए हैं, जो दशहरा पर जलाए जाएंगे। ये पुतले अहमदाबाद और गुजरात के दूसरे शहरों को भी भेजे गए हैं।
'चार पीढ़ियों से हमारा परिवार पुतले बना रहा है'
फारूकी कहते हैं कि जब होश संभाला तो अपने अब्बा अशरफ अली को आगरा के किरावली में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाते देखा। उनके साथ इसी काम में हाथ बंटाया और फिर खुद भी यही काम करने लगा।
फारूकी ना सिर्फ अहमदाबाद बल्कि उत्तर भारत के कई शहरों में दशहरा के पुतले बनाते हैं। फारूकी कहते हैं कि चार पीढ़ियों से पुतले बनाते आ रहे हैं, हमारा पुश्तैनी काम है।
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फारूकी कहते हैं कि मुझे तो कभी किसी ने नहीं कहा कि मुसलनमान होकर हिंदुओं के त्यौहार से क्यों जुड़े हो या पुतले क्यों बनाते हो। फारुकी कहते हैं कि ना कभी किसी हिंदु ने इसको लेकर कुछ कहा, आखिर सारे ग्राहक ही हिंदू हैं।
फारूकी साफ कहते हैं कि वो अपने काम से खुश हूं और आगे भी यही काम करते रहेंगे। वो कहते हैं कि रामायण की कहानी मुझे मुंह जुबानी याद है और उन्हें रामलीला देखना बहुत पसंद है।
ये बेहद जिम्मेदारी का काम है
फारूकी कहते हैं कि पुतले बनाने का काम बेहद जिम्मेदारी का काम है। वो कहते हैं कि एक पूरे समुदाय के त्योहार की खुशियां आपकी एक गैर-जिम्मेदाराना हरकत से खराब हो सकती हैं।
फारूकी कहते हैं कि चाहे दिन-रात काम करना पड़े या फिर सेहत आपका साथ ना दे लेकिन वक्त पर पुतला तैयार करना है, इसमें कोई देर नहीं की जा सकती है।
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फारूकी कहते हैं कि उन्होंने तो कभी किसी तरह की सांप्रदायिकता का सामना नहीं किया लेकिन कई बार कुछ खबरें दिल को तोड़ने वाली जरूर सुनने को मिल जाती हैं।
सांप्रदायिकता पर आगे फारूकी कहते हैं, हमारी तहजीब की जड़ें बहुत गहरी हैं। हमारे दिलों में एक-दूसरे के लिए बेहद प्यार है, इज्जत है। सांप्रदायिक और फसादी लोग हमारी तहजीब के सामने बेहद बौने हैं।