वाइब्रेंट गुजरात- मोदी का विश्वास या भ्रम?
या तो वे स्वयं इन शब्दों के आगे चलते हैं या फिर उनके कार्य ऐसे होते हैं कि समर्थकों और विरोधियों को तो जाने दीजिए, तटस्थों को भी उस कार्य से पहले इन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने को विवश हो जाना पड़ता है। इसी कार्यक्रम में मोदी ने जापान के एक प्रवासी भारतीय को जनवरी-2013 में गुजरात आने का निमंत्रण दिया। यह निमंत्रण ‘एक मात्र' या ‘पहली बार' जैसे शब्दों से भी बड़ा आश्चर्यजनक था।
दरअसल गुजरात में एक तरफ विधानसभा चुनाव 2012 की दुंदुभि बज चुकी है। चारों ओर चुनावी माहौल है। वायदों की बहार है। भाषणों का शोर है। हालाँकि अभी यह शोर उग्र नहीं हुआ है। कोई यात्रा निकाल रहा है, तो कोई घर बाँट रहा है, तो कोई गुजरात में अपनी जगह बनाने के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार से जोर लगाने की कोशिश कर रहा है, परंतु इस सारे हंगामे के बीच नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार उस समारोह की तैयारियों में जुटी है, जिसका भविष्य अभी तय होना बाकी है।
जी हां। हम बात कर रहे हैं वाइब्रेंट गुजरात अंतरराष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन (वीजीआईआईएस) की। मोदी ने जापान के इस प्रवासी भारतीय को इसी सम्मेलन में आने का न्यौता दिया। अब विरोधाभास देखिए। यह सम्मेलन होना है 11 से 13 जनवरी, 2013 में। इसके स्वप्नदृष्टा और इसके आरंभकर्ता हैं वर्तमान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और यह भी सब जानते हैं कि मोदी अपने इस आरंभ को जारी रख पाएँगे या नहीं, उसका निर्णय गुजरात की जनता 20 दिसमबर, 2012 को सुनाने वाली है। अब भला बताइए, जिस मोदी की सत्ता का फैसला 20 दिसम्बर, 2012 को होना है, वह मोदी और उनका प्रशासन 2013 में होने वाले वीजीआईआईएस की तैयारियाँ अगस्त-2012 से कर रहे हैं। अब आप ही तय कीजिए कि यह मोदी का विश्रंभ है या भ्रम। विश्रंभ का अर्थ है आत्मविश्वास और भ्रम का अर्थ तो सर्वविदित है।
यदि वीजीआईआईएस की तैयारियाँ अगस्त-2012 से ही शुरू कर दी गई है, तो फिर मोदी के विश्रंभ की दाद देनी होगी। एक तरफ पूरा देश गुजरात चुनावों पर टकटकी लगाए बैठा है। 22 वर्षों से सत्ता से दूर कांग्रेस जहाँ इस बार पूरा जोर लगा रही है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल अपने राजनीतिक जीवन की संभवतः आखिरी बाजी खेल रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला के लिए भी गुजरात चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है, क्योंकि कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें गुजरात चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपी है। स्वयं राष्ट्रीय स्तर पर गुजरात चुनाव महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि जहाँ कांग्रेस जानती है कि यदि मोदी की जीत हुई, तो वे गुजरात से निकल कर उसके लिए राष्ट्रीय चुनौती बनेंगे, वहीं भाजपा में भी राष्ट्रीय स्तर पर लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली जैसे कई नेताओं के लिए मोदी चुनौती बनेंगे। तीसरे कांग्रेस-भाजपा के उपरांत जो दल और नेता हैं, जिनमें नीतिश कुमार सबसे प्रमुख हैं, उनकी भी चाहत यही है कि मोदी को गुजरात में ही रोक दिया जाए।
एक तरफ प्रधानमंत्री पद की दावेदारी और दूसरी तरफ गुजरात चुनाव की चुनौती। इतने हंगामों के बीच भी यदि मोदी और उनका प्रशासन वीजीआईआईएस की तैयारियों में जुटा है तो फिर मोदी का विश्रंभ प्रणाण करने के योग्य है। इन सब चुनौतियों के बीच भी मोदी को आत्मविश्वास है कि 13 और 17 दिसम्बर को होने वाले मतदान में गुजरात की जनता उन्हीं के नाम पर मुहर लगाएगी और 20 दिसम्बर को मतों की गिनती के बाद जीत उन्हीं की होगी।
यही कारण है कि अगस्त-2012 से शुरू की गई वीजीआईआईएस की तैयारियों का जनवरी-2013 तक का पूरा खाका तैयार किया गया है। अक्टूबर में वीजीआईआईएस के अंतर्गत कई कार्यक्रम होने हैं, तो नवम्बर और दिसम्बर में भी सम्मेलनों-समिटों-परिसंवादों का सिलसिला चलता रहेगा। संभवतः चुनावी आचार संहिता का भी पूरा ध्यान रखा गया होगा, क्योंकि मोदी जानते हैं कि आचार संहित के दौरान सरकारी उद्घाटनों, समारोहों और घोषणाओं पर रोक लग जाती है। इसके बावजूद मोदी सरकार चुनावी आचार संहिता से बचते हुए लगातार वीजीआईआईएस की तैयारियों में जुटी हुई है।
अब देखना यह है कि मोदी का यह विश्रंभ सार्थक साबित होता है या फिर भ्रम। फैसला 20 दिसम्बर, 2012 को हो ही जाएगा। यदि भ्रम साबित हुआ, तो फिर नई सरकार की संभावनाओं में कांग्रेस और गुजरात परिवर्तन पार्टी या फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसे दलों का नाम शामिल हो जाएगा। यदि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला या उसके नेतृत्व में किसी भी प्रकार की गठबंधन सरकार बनी, तो अब तक के उसके नेताओं के भाषण से स्पष्ट है कि वीजीआईआईएस का आयोजन खटाई में ही पड़ जाएगा।