मूर्ति टूटने से रोक नहीं पायी, तो आतंकियों को क्या रोक पायेगा खुफिया विभाग
यह सवाल सिर्फ हमारा नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का है, खास कर लखनऊवासियों का है। गुरुवार को राजधानी में मायावती की मूर्ति तोड़े जाने के बाद कानपुर में बवाल हो गया। बसपाईयों ने हंगामा शुरू कर दिया, तोड़फोड़ की, जिसे रोकने के लिये पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ीं। सच पूछिए तो यह घटना छोटी-मोटी नहीं थी। चूंकि मायावती एक दलित नेता हैं और यूपी में जातिवाद की जड़ें बहुत ज्यादा मजबूत हैं, इसलिए इस घटना के बाद दंगे भड़क सकते थे। कईयों की जान जा सकती थी और पब्लिक प्रॉपर्टी जैसे बसें, ट्रेनें, आदि फूंकी जा सकती थीं।
शायद लोकल इंटेलीजेंस यूनिट को इस बात का अंदाजा नहीं था, शायद इसीलिये प्रेस क्लब में बेबाक बयानबाजी के बाद भी एलआईयू शांत बैठी रही। बसपा सुप्रीमों मायावती की मूर्ति तोडऩे से दो घंटा पहले यूपी नव निर्माण सेना ने प्रेस क्लब में एक पत्रकार वार्ता कर प्रेस रिलीज़ जारी की और कई संदिग्ध बातें कहीं। पत्रकार वार्ता ने यूपी नव निर्माण सेना ने ऐसे बयान दिए जो प्रदेश की शांति भंग होने की ओर इशारा करती हैं।
इसके बावजूद भी पुलिस, प्रशासन और खूफिया तंत्र को इस बयानबाजी भनक नहीं लग सकी। दो घंटे के बाद समाजिक परिवर्तन स्थल पर चार लोगों ने पहुंचकर मायावती की मूर्ति को खंडित कर दिया। मूर्ति तोड़े जाने पर पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों ने अफसोस जताया लेकिन देर शाम तक एलआईयू के बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
पुलिस को घटना की जानकारी तो उस वक्त हुई जब टेलीविजन पर घटना का वीडियो चलने लगा। यूपी पुलिस का सूचना तंत्र कितना कमजोर है यह बात उजागर हो गयी। पुलिस के आला अधिकारियों ने खुफिया तंत्र की नाकामी स्वीकार की। प्रदेश के डीजीपी एसी शर्मा का भी कहना है कि खुफिया तंत्र की नकामीं थी, इसकी जांच की जा रही है। लेकिन हम डीजीपी साहब से पूछा चाहेंगे, कि अगर यह आतंकी घटना होती, तब उनका क्या जवाब होता?