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क्‍या होता अगर गर्भ में नहीं मारी गई होती बेटियां?

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female foeticide
प्रदीप शुक्‍ल 'स्‍वतंत्र'
गर्भ में पलने वाली बच्चियों को मौत देने वाले क्‍या इस समाज में बदलाव की ठंडी बयार महसूस कर रहे हैं? टीवी पर सत्‍यमेव जयते क्‍या कन्‍या भ्रूण हत्‍या के खिलाफ एक अभियान शुरू करता नजर आ रहा है? एक महान लेखक ने लिखा है कि स्‍त्री की अवनति और उन्‍नति पर ही राष्‍ट्र की उन्‍नति निर्भर है, लेकिन क्‍या समाज में यह विचार घर कर पाया है। क्‍या मासूमों को गर्भ में ही मौत देने वाला समाज अपने अंर्तमन को टटोलने के लिए तैयार हो पाया है।

सामाजिक रवैया चाहे जितना भी भयावह हो लेकिन हमारी बेटियों ने हमे हमेशा गौरवान्वित ही किया है। हमारी बेटियों को दबी हुई चिंगारी मिलती है तो वे आग लगाकर विश्‍व में भारत का तूती बोलवाती हैं। अगर हम ओलंपिक 2012 की बात करें, तो इस बार चुनौतियां महिला वर्ग में पुरूषों से कुछ कम नहीं है, बल्कि कुछ खेलों में तो हमे महिलाओं से कुछ ज्‍यादा ही उम्‍मीद हैं। बैडमिंटन स्‍टार सायना नेहवाल हो या महिला पहलवान गीता। तीरंदाजी की तिकड़ी दीपिका कुमारी, चेक्रोवोलू सुवोरू, बोम्‍बयाला देवी हो या एथलीट कृष्‍णा देवी पूरे देश की निगाहें महिलाओं पर ही टिकी हुई हैं।

आज जो बेटियां दरिंदे समाज के हाथों बचकर बड़ी हो गयी उनके माता-पिता चाहते है कि उनकी बेटियां भी देश का नाम रोशन करें। इन्‍होंने ऐसी सफलताएं हासिल की हैं जिससे समाज सोचने पर मजबूर हो सके। अब जरा सोचिए अगर ये बेटियां मां के गर्भ में ही शिकार हो जाती, तो सवा सौ करोड़ लोगों का देश ओलंपिक में किससे पदक की उम्‍मीद करता? या भ्रूण हत्‍या का शिकार हुई बेटियां अगर इस समाज में होती तो क्‍या आज हमारे देश में एक ही सायना नेहवाल, या क्‍या एक ही सानिया मिर्जा होती।?

आखिर यह भी हैरान करने वाला है कि सायना नेहवाल और गीता उस हरियाणा की निकली, जहां मां के गर्भ में बच्चियों का बीज पनपते हुए उनको खत्‍म करने की सोच लिया जाता है। वहां मां तो है लेकिन घर का चिराग जलाने के लिए बहुए नहीं मिलती। इन्‍हें भी अपने खेल जीवन में तमाम अवरोहों का सामना करना पड़ा होगा, लेकिन पैदा होकर तो वे समाज का सबसे बड़ा अवरोध पार कर चुकी हैं। मगर उन्‍होंने फिर भी एक अनूठा उदाहरण पेश किया है।

अब आपको बता दें कि तीरंदाज दीपिका झारखंड़ की रहने वाली है। उसके पिता रिक्‍शा चलाकर परिवार का पालन पोषण करते है। यदि वे अपना पेट काटकर बेटी के सपनों को हकीकत के पंख लगाने के लिए हरसंभव प्रयास कर सकते हैं, तो शिक्षित व संपन्‍न समाज की सोच क्‍यों नहीं बदल सकती? पहनावे तो हमारे आधुनिक है, लेकिन हमारी सोच दैत्‍यकाल की है। अब इस दैत्‍य सोच को त्‍यागकर क्‍या हम एक नये विचार और नई सोच की नींव रखने के लिए तैयार हैं?

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English summary
Aamir Khan's serial Satyamev Jayate has ignite the fire against against female foeticide. This will definitely change the mindset and Nation will see the new reform.
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