सोनिया बनाम मुलायम: नजरिया मां और पिता का
पिछले एक सप्ताह की राजनीतिक गतिविधियों और जनता के फैसलने ने उत्तर प्रदेश में काया पलट कर दिया। इस कायापलट में एक सितारा डूबने की कगार पर पहुंच गया तो एक सितारा सातवें आसमान पर। क्षेत्रीय स्तर पर काम करने वाले एक राजनीतिक परिवार ने सदियों गांधी का नाम लगाने वाले राजनीतिक परिवार की नीव पर जोरदार हथौड़ा मारा। इस चुनाव में एक बात जो पूरी तरह स्पष्ट होकर सामने आयी वो है सोनिया गांधी और मुलायम सिंह यादव के बीच का फर्क। वो फर्क जो एक पार्टी के पतन को दर्शाता है तो दूसरी के उत्थान को।
हम शुरुआत करेंगे बेनी प्रसाद वर्मा के उस बयान जो जो उन्होंने टीवी चैनलों को दिया। उनसे पूछा गया कि कांग्रेस ने राहुल गांधी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट क्यों नहीं किया। जवाब मिला "क्या बात कर रहे हो, उस परिवार से कोई मुख्यमंत्री बना है आज तक, वहां सब पीएम बनते हैं...."। अगला बयान आज कांग्रेस प्रवक्ता का आया कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की गद्दी पर किसे बिठाया जाये, इसका फैसला 10 जनपथ पर सोनिया गांधी करेंगी। और अंत में हम बताना चाहेंगे कि शनिवार को सपा की विधायक दल की बैठक में अखिलेश को सर्वसम्मति से नेता चुना गया।
यहां से आपको अपने आप मुलायम और सोनिया के बीच के फर्क दिखाई देने लगेंगे-
फर्क नंबर 1: परिवारवाद
गांधी परिवार परिवारवाद से कभी ऊपर नहीं उठ सका है, जबकि मुलायम परिवारवाद पर विश्वास नहीं रखते। कांग्रेस में या तो सोनिया गांधी की या राहुल गांधी की चलती है, जबकि सपा में छोटे से बड़े फैसले तक सभी सदस्यों की बैठक बुलायी जाती है और उसमें लोकतांत्रिक ढंग से फैसला होता है। सबसे बड़ा उदाहरण शनिवार को हुई विधायक दल की बैठक है।
फर्क नंबर 2: लोकतंत्र पर विश्वास
यह सभी जानते हैं कि अगर मुलायम चाहते तो चुनाव से पहले ही अखिलेश का नाम सीएम के रूप में प्रस्तावित कर देते। या फिर जीतने के तुरंत बाद वो अपना फैसला सुनाते हुए अखिलेश को सीएम बना देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक ढंग से बैठक बुलाई और तब सभी विधायकों ने मिलकर अखिलेश का नाम फाइनल किया। वैसे बैठक बुलाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि मुलायम यह देखना चाहते थे कि कितने विधायक अखिलेश के समर्थन में हैं और कितने विरोध में। हालांकि परिणाम सकारात्मक मिला।
वहीं उत्तराखंड की बात करें तो वहां आज दिल्ली के 10 जनपथ में सोनिया गांधी फैसला लेंगी कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। फैसले का आधार होगा गुलाम नबी आजाद की रिपोर्ट जो उन्होंने उत्तराखंड पर तैयार की है। जरा सोचिये क्या कांग्रेस अपने विधायक दल की बैठक नहीं बुला सकती थी, क्या चुने गये विधायक अपना नेता चुनने में सक्षम नहीं हैं? नहीं ऐसा नहीं है, बल्कि सोनिया गांधी अपनी पार्टी में खुद को सबसे ऊपर रखना चाहती हैं उन्हें पार्टी के अंदर लोकतंत्र पर विश्वास नहीं है।
फर्क नंबर 3: बेटे का प्रोजेक्शन
सोनिया ने अपने बेटे राहुल को हमेशा आसमान पर बिठा कर रखा। यही कारण है कि कांग्रेस में बार-बार राहुल गांधी को पीएम बनाये जाने की बातें उठती रहती हैं। यहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कई बार कह चुके हैं कि वो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वहीं मुलायम ने हमेशा अखिलेश को जमीन पर चलना सिखाया। मुलायम ने कभी नहीं कहा कि अखिलेश यूपी के मुखिया होंगे। सपा की हर रैली में अखिलेश ने भी हमेशा कहा कि अगर सपा आयी तो मुलायम ही सीएम होंगे। राहुल को जहां सीधे कांग्रेस का महासचिव बनाया गया, वहीं अखिलेश पहले छात्र सभा के अध्यक्ष बने, फिर लोहिया वाहिनी के और फिर सपा में आये वो भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में, न कि किसी राष्ट्रीय पद पर।
फर्क नंबर 4: गुस्सा
सोनिया गांधी ने यूपी में जितनी भी रैलियां की उसमें उन्होंने मायावती और मुलायम को गरियाने के अलावा कुछ नहीं किया। अपनी मां की देखा देखी राहुल गांधी भी मंच से सरकार पर जमकर बरसे, यहां तक राहुल ने एक कांगज को फाड़ते हुए अपनी बॉडी लैंगवेज से भी गुस्से को दर्शाया। वहीं मुलायम ने किसी भी रैली में मायावती सरकार के खिलाफ कोई गुस्सा व्यक्त नहीं किया। वो हमेशा मुलायम रहे और अखिलेश यादव ने भी अपने हर बयान या भाषण मुस्कुराकर कर देते हुए अपनी मुलायममियत कायम रखी।
फर्क नंबर 5: चुनावी रणनीति
सोनिया और मुलायम की चुनावी रणनीति में भी बड़ा फर्क रहा- सोनिया ने राहुल को उन-उन जगहों पर भेजा, जहां कांग्रेस का पहले गढ़ रहा है या वर्तमान में कांग्रेस की तूती बोलती है, वहीं मुलायम ने अखिलेश को गाजीपुर से लेकर गाजियाबाद तक हर जगह भेजा। सोनिया माता के युवराज रोड पर कम मंच पर ज्यादा दिखाई दिये, वहीं पिता मुलायम के बेटे अखिलेश मंच पर कम रोड पर ज्यादा चले।