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जानिए क्यों खेली जाती है पूर्णिया में राख से होली?

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पटना। होली यानी मस्ती और रंगो का त्योहार। जहां लोग अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं वहीं देश में कुछ जगह ऐसी हैं जहां राख से होली खेली जाती है। आईये आज आपको हम इसका राज बताते हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में अब भी वह स्थान है जहां होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता के बीच बैठ गई थी और भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था। इसके बाद हिरण्यकश्यप का वध किया गया था।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक हिरण्यकश्यप के किले में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था। कहा जाता है कि इस स्तम्भ को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया परंतु यह झुक तो गया लेकिन टूटा नहीं। इसी स्थान पर भीमेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। मान्यता है कि हिरण्यकश्यप यहीं बैठकर पूजा करता था।

इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। कहते हैं कि जब होलिका जल गई थी और प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशियां मनाई थीं और तभी से होली प्रारम्भ हुई। उन्होंने बताया कि यहां होलिका दहन के समय करीब 40 से 50 हजार लोग उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं। आज भी मिथिला के लोग रंग की बजाए राख और मिट्टी से ही होली खेलते हैं।

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English summary
Holi is a spring religious festival celebrated by Hindus. In Purnia, Bihar, Holi Is Played with ash.
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