अब आदिवासी क्षेत्र में चलेगा एड्स बचाव अभियान
इस अभियान में आदिवासी क्षेत्रों के बैगाओं सहित गुनिया-सिरहा और स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा। इसके अंतर्गत स्थानीय बोली में सहज और सरल तरीके से एड्स से बचाव की जानकारी दी जाएगी। इसके लिए निमोरा स्थित राज्य ग्रामीण विकास संस्थान में आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत मितानिनों और लिंक वर्करों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण सह-कार्यशाला पिछले दिनों सम्पन्न हुआ।
छत्तीसगढ़ राज्य एड्स नियंत्रण समिति के परियोजना संचालक कमलप्रीत सिंह ने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सिंह ने बताया कि एचआईवी एड्स के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के अलावा आदिवासी क्षेत्रों में भी एड्स से बचाव के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिलाओं के होने वाले बच्चे को एचआईवी संक्रमण से बचाया जा सकता है।
इसके लिए गर्भवती माताओं को नेवरापिन का टेबलेट और शिशु के जन्म के बाद उसे नेवरापिन का सिरप दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में एड्स से बचाव के लिए उनके बीच सही संदेश पहुंचाना आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि जो संदेश हम देना चाहते हैं उस क्षेत्रा के निवासियों को आसानी से समझ में आ जाए तभी जागरूकता अभियान की सार्थकता होगी।
इसके
लिए
जरूरी
है
कि
स्थानीय
बोली
में
एड्स
की
गंभीरता
और
उससे
बचाव
की
जानकारी
दी
जाए।
सिंह
ने
बताया
कि
इस
अभियान
के
अंतर्गत
गर्भवती
माताओं
की
जांच,
बच्चों
का
टीकाकरण,
एचआईवी
एड्स
से
बचाव
तथा
स्वास्थ्य
संबंधी
अन्य
जानकारी
दी
जाएगी।
इसके
साथ
ही
सभी
प्रचार
सामग्री
हिन्दी
के
अलावा
भतरी,
हल्बी
और
अन्य
स्थानीय
बोलियों
में
मुद्रित
कराया
जाएगा।