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उत्‍तर प्रदेश में मुश्‍किल है पूर्ण बहुमत से सरकार बनना

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लखनऊ। राजनीतिक लिहाज से देश के सबसे महत्वपूर्ण और सर्वाधिक आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में वैसे तो सभी प्रमुख दल बहुमत हासिल कर लेने का दावा कर रहे हैं लेकिन सचाई के धरातल पर उनके दावे मूर्तरूप लेते नजर नहीं आ रहे हैं और राज्य में एकबार फिर साझा सरकार बनने के आसार दिख रहे हैं। अब तक के दो चुनावी सर्वेक्षणों और प्रदेश की राजनीति में गहरा दखल रखने वालों की राय में इस बार के चुनावी बाजार में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय और सोशल इंजीनियरिंग के सिक्के के खरीदार कम ही नजर आ रहे हैं। राज्य में भ्रष्टाचारमुक्त, भयमुक्त, अत्याचारमुक्त और सुशासनयुक्त शासन का वादा करके वर्ष 2007 में सभी को अचंभित करते हुए पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पांच साल के शासनकाल में न तो सुशासन जैसी कोई बात दिखी और न ही प्रदेश के विकास में उठाया गया कोई महत्वपूर्ण कदम ही नजर आया।

चुनावी सर्वेक्षणों की मानें तो वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में 206 सीटें जीतने वाली बसपा को आसन्न चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है और उसका संख्याबल सिमट कर 140-145 के आस पास रह जाने का अनुमान है। बसपा हालांकि इस बार भी बहुमत पाने का दावा कर रही है लेकिन उसकी सरकार के भ्रष्टाचार, कुशासन, प्रदेश के विकास के लिए कुछ न करने के साथ सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए उसके दावे में बहुत दम नजर नहीं आ रहा है। बहुमत की ओर ले जाता उसका दलित और ब्रामण मतदाता भी इस बार उस पर आंख मूंद कर विश्वास करता नहीं दिख रहा है। प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने हालांकि इस बार कुछ नया प्रयोग करते हुए पार्टी की कमान अपने युवराज अखिलेश यादव के हाथ सौंपी है जो कि काफी मशक्त से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं और इस चुनाव में अपनी पार्टी के सत्ता में आने की बात भी कह रहे हैं।

राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री मायावती ने अपने सौ से अधिक विधायकों को टिकट नहीं देकर दल में भितरघात को खुला न्यौता दे दिया है और यही बसपा को वर्ष 2007 का चमत्कार एक बार फिर दिखाने से रोक सकता है। समाजवादी पार्टी के बहुमत के दावे पर टिकट बंटवारे में हुए घमासान के साथ साथ कई जगह बार बार उम्मीदवारों को बदलने की घटनाएं असर डाल सकती हैं। इसके अलावा कभी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खासमखास रहे और चुनाव प्रबंधन में माहिर अमर सिंह स्वगठित राष्‍ट्रीय लोकमंच के लिये भले ही कुछ न कर सकें लेकिन सपा के मतों को काट जरूर सकते हैं। मुस्लिम और यादव मतों के आधार पर सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देख रही सपा मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के साथ साथ कई छोटे वोट कटवा दलों के कारण विधानसभा में बहुमत के जादुई आंकड़े को छूने में कामयाब होती नजर नहीं आ रही है।

प्रदेश में दो दशकों से सत्ता से दूर कांग्रेस ने भी सूबे में चुनाव अभियान की बागडोर अपने युवराज राहुल गांधी को सौंपी है जो बड़ी मेहनत और लगन से काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं। कांग्रेस और राष्टीय लोकदल के साथ हुआ उनका चुनावी गठबंधन कुछ रंग दिखाता लग रहा है। कभी राम मंदिर के मुद्दे पर देश और प्रदेश में सत्ताशीर्ष पर पहुंची भारतीय जनता पार्टी के कामकाज के तरीके से तो ऐसा लगता है कि वह इस बार चुनावी समर में मुकाबले से पहले ही हार का मन बना चुकी है। केन्द्र में सत्तासीन कांग्रेस ने इन चुनाव के मौके पर मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उछाल कर चुनावी समर में मुस्लिम मतों के धु्रवीकरण की कोशिश की है। अब यह प्रयास कितना रंग लाता है यह तो भविष्य ही बतायेगा। वैसे कुछ चुनाव पंडितों के अनुसार इन चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिलती नजर आ रही है।

हालांकि वह बहुमत के आंकड़े को छू सकेगी, यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी। ऐन चुनाव से पहले मायावती सरकार के कथित भ्रष्ट पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल करने और इस मुद्दे को लेकर शुरू हुई अंदरूनी खींचतान ने भाजपा की चुनावी सम्भावनाओं को करारा आघात पहुंचाया है। भाजपा का मानो वही हाल हो रहा है कि गये थे छब्बे बनने, दुबे बनकर लौट रहे हैं। हालांकि कुशवाहा ने अपनी सदस्यता को स्थगित रखने का पत्र लिखकर भाजपा की लाज बचाने की कोशिश की है लेकिन यह भी सच है कि इस प्रकरण से उसे जितना नुकसान होना था, वह हो चुका है। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को प्रदेश के चुनाव में उतार कर भाजपा कुछ करिश्मा करने की आस लगाए है लेकिन वह बहुमत के जादुई आंकड़े से बहुत दूर नजर आ रही है।

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English summary
In UP Assembly Poll, there is a possibility of ally government. According to a survey no chance for being a full flash government.
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