यूपी चुनाव: घर में ही होगी पुनिया और बेनी की असली परीक्षा
कभी समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव का दाहिना हाथ रहे और पिछड़े मतदाताओं विशेष रूप से कुर्मी बिरादरी में खासी पैठ रखने वाले वर्मा को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है। राज्य के बाराबंकी, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच समेत कुर्मी बहुल उत्तर-मध्य पट्टी के जिलों में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन में वर्मा का खासा दखल रहा है। ऐसे में वर्मा के सामने अपने आकाओं के भरोसे पर खरा उतरने की कड़ी चुनौती है। दूसरी ओर, कभी मुख्यमंत्री मायावती के करीबी अफसर रहे पुनिया को उत्तर प्रदेश में दलित जनाधार वाले दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की बुनियाद में सेंध लगाने की खास जिम्मेदारी के साथ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है और वह कई बार राज्य सरकार से दो-दो हाथ करते नजर आ चुके हैं। कांग्रेस को इन दोनों नेताओं से बहुत उम्मीदें और अपेक्षाएं हैं।
चूंकि बाराबंकी में पहले चरण में मतदान होना है। इसलिये वहां का रुझान काफी असरदार हो सकता हैं। यादव, मुस्लिम और दलित बहुल बाराबंकी सदर सीट से कांग्रेस ने सपा से तीन बार विधायक रह चुके छोटे लाल यादव को टिकट दिया है, लेकिन उन्हें राज्य के रेशम उद्योग राज्य मंत्री तथा सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी संग्राम सिंह वर्मा से कड़ी चुनौती मिल रही है। बाराबंकी के चुनावी परिदृश्य पर निगाह डालें तो कांग्रेस के लिये राह कतई आसान नहीं है। नये परिसीमन के बाद जिले में कुल छह सीटें रह गयी हैं। वर्मा को बाराबंकी सदर सीट से यादव को जिताने के लिये खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। यादव को टिकट दिलाने में वर्मा की खासी भूमिका रही है।
पुनिया के नजरिये से भी यह सीट काफी अहम है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित कामयाबी के बाद उनकी लोकप्रियता की पहली परीक्षा उनके निवास वाले क्षेत्र में होगी। वर्मा के लिये जिले की दरियाबाद सीट प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है। ब्रामण तथा दलित बहुल इस क्षेत्र से उनके बेटे तथा प्रदेश के पूर्व कारागार मंत्री राकेश वर्मा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इस्पात मंत्री बनने के बाद वर्मा ने इस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है, लेकिन यहां भी उनके लिये स्थितियां बहुत आसान नहीं हैं। दरियाबाद से राकेश को सपा के मौजूदा विधायक राजीव कुमार सिंह से कड़ी चुनौती मिल रही है। इसके अलावा इस क्षेत्र से भाजपा ने अपने पूर्व विधायक सुंदरलाल दीक्षित तथा बसपा ने इलाके के ब्रामण तथा जैन मतदाताओं पर पकड़ रखने वाले विवेकानंद पाण्डेय को उतारा है।
बाराबंकी की नवसृजित सीट मुस्लिम और दलित बहुल है। कांग्रेस ने यहां से निजामुद्दीन को प्रत्याशी बनाया है। निजामुद्दीन को खास राजनीतिक अनुभव नहीं है और उनका मुकाबला सपा प्रत्याशी पूर्व विधायक फरीद महफूज किदवाई तथा बसपा की मौजूदा विधायक मीता गौतम से है। अब बेनी प्रसाद वर्मा निजामुद्दीन को इस चुनावी भंवर से निकाल पाते हैं या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। दलित तथा मुस्लिम बहुल जैदपुर सीट से कांग्रेस ने वर्मा के खास माने जाने वाले पूर्व भाजपा सांसद बैजनाथ रावत को मैदान में उतारा है, लेकिन यहां भी रास्ता आसान नहीं होगा, क्योंकि इस क्षेत्र से भाजपा ने विधान परिषद सदस्य रामनरेश रावत को और बसपा ने पूर्व सांसद कमला रावत के बेटे वेद प्रकाश रावत को उतारकर समीकरण मुश्किल कर दिये हैं।
कुछ यही हाल हैदरगढ़ और रामनगर सीटों के समीकरणों का भी है। दलित तथा मुस्लिम बहुल हैदरगढ़ में कांग्रेस ने आरके चौधरी को मैदान में उतारा है। यह सीट खासकर पुनिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी है, क्योंकि चौधरी को टिकट दिलाने में उनकी खासी भूमिका है। रामनगर में ठाकुर मतदाताओं को साधने के लिये कांग्रेंस ने कुंवर रामवीर सिंह के रूप में ठाकुर प्रत्याशी उतारा है, लेकिन लड़ाई यहां भी बहुत दुरूह है। सिंह का मुकाबला एक नहीं बल्कि दो-दो मौजूदा विधायकों से है।
हैदरगढ़ से चौधरी को सपा प्रत्याशी और पार्टी के पूर्व सांसद राम मगन रावत कड़ी टक्कर दे रहे हैं। कांग्रेस को यह सीट जिताने के लिये वर्मा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है, क्योंकि सपा में रहते उनके द्वारा चुने गये प्रत्याशी कई बार यहां से पराजित हो चुके हैं। नये परिसीमन के बाद हैदरगढ़ के सुरक्षित सीट हो जाने के बाद वहां से सपा विधायक अरविंद सिंह गोप रामनगर में ताल ठोंक रहे हैं, जबकि क्षेत्रीय विधायक अमरेश शुक्ला की उनसे सीधी टक्कर है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी रामवीर सिंह के लिये जीत की कश्ती निकालना आसान नहीं होगा।