जिंदगी के 87वें पड़ाव पर भी अटल हैं 'अटल'
अंतर की चिर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं मानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं
हम बात कर रहे हैं एक ऐसे महान नेता की जिनके करोडों चहते हैं, जिनकी शख्सियत राजनीति की खुरदरी जमीन से लेकर कविता की मखमली फर्श तक फैली है। जिनकी चुटकी, ठहराव, शब्द और जिसके बोलने की कला का पूरा देश लोहा मानता है। जी हां इस महान शख्सियत का नाम है अटल बिहारी बाजपेयी और आज उनका जन्मदिन है। तो आगे की बात करने से पहले हम वाजपेयी जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाईयां देते हैं।
अटल बिहारी बाजपेयी को किसी पहचान की जरुरत नहीं है क्योंकि जिस तरह राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान या राष्ट्रचिन्ह किसी देश की पहचान कराते हैं, वैसी ही स्थिति कुछ व्यक्तित्वों की होती है। वे अपने राष्ट्र के पर्याय और पहचान बन जाते हैं। जैसे अब्राहम लिंकन से अमरीका, कोसीगिन से सोवियत संघ, चाऊ एनलाई या माओ-त्से तुंग से चीन, सद्दाम हुसैन से इराक, जुल्फिकार अली भुट्टो से पाकिस्तान और महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी या फिर अटल बिहारी वाजपेयी से भारत।
चुकी आज वाजपेयी का जन्मदिन है तो आईए उनसे जुड़े कुछ पहलुओं पर नजर डाल लेते हैं। वाजपेयी का जन्म वर्ष 1924 में आज ही के दिन हुआ था। अपने युवा दिनों में अटल बिहारी वाजपेयी ने खूब अध्ययन किया और बाद के दिनों में भी पढ़ना नहीं भूले। वे सरकारी कागजों का भी गहन अध्ययन करते थे। वाजपेयी में किसी भी विषय पर घंटों तक बोल पाने की क्षमता थी। उन्हें बोलने से पहले पढ़ने की जरुरत नहीं थी। अटल जी जब भी भाषण देते थे तो विरोधी भी चुप होकर सुनते थे।
बाजपेयी जी अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव जीतने में सक्षम रहे। वे दो बार राज्यसभा में गए और दस बार लोकसभा सदस्य रहे। वे चार राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों, बलरामपुर, लखनऊ, विदिशा, ग्वालियर, नई दिल्ली, गांधीनगर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। उन्होंने सत्ता के लिए समझौते करने की जल्दबाजी नहीं दिखाई, उन्होंने अपने समय का इंतजार किया। उनका राष्ट्र भाषा हिन्दी से प्रेम अतुलनीय रहा। जब भी मौका मिला, उन्होंने हिन्दी को बढ़ाया। वे सोच, स्वभाव, रहन-सहन व पहनावे से संपूर्ण भारतीय रहे। वे उदार रहे, उनमें कट्टरता नहीं रही। उनमें साहस, प्रबंधन, समन्वय और संयोजन की शक्ति रही। ऎसा नहीं है कि वे केवल धीर-गंभीर रहते थे, वे हंसी-मजाक में भी पीछे नहीं थे। उनकी गिनती स्पष्टवादी नेताओं में हुई।
वाजपेयी जी के राजनीतिक सफर के सुनहरे पल
1957 में बाजपेयी जी जब पहले बार सांसद बने जो उनकी उम्र लगभग 33 साल थी। उसके बाद जनसंघ के टिकट पर उत्तर प्रदेश के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार लोकसभा के लिये चुने गये। 1968 में वाजपेयी जी को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया। दीनदयाल उपाध्याय ने उनके बारे में कहा था कि वाजपेयी जी में आयु से कही ज्यादा दृष्टिकोण और समझदारी है। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बनें। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का गौरव बढ़ाया।
29 दिसंबर 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और वाजपेयी ही इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। उसके बाद 6 दिसंबंर 1992 को अयोध्या में विवादास्पद ढांचा ढहाने के अभियान से वाजपेयी जी ने खुद को अलग रखा और इस घटना पर खेद भी जताया। 1993 में वाजपेयी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गये जिससे राजनीतिक बिरादरी में भी भाजपा की स्वीकार्यता और जगह बढ़ने लगी। 1996 में लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। इस दौरान उनका कार्यकाल सिर्फ 13 दिन का रहा।
1998 में वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस दौरान उनका कार्यकाल 13 माह का रहा। इस कार्यकाल में ही उन्होंने परमाणु परीक्षण किया। उसके बाद लोकसभा चुनाव में वाजपेयी भले ही एक वोट से हार गये मगर उन्होंने करोड़ो लोगों का दिल जीत लिया। 1999 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए बहुमत के साथ सत्ता में आया और फिर उसके बाद देश में राजनीतिक स्थिरता आई।
यह तो बात रही वाजपेयी की राजनीतिक सफर की। तो क्या आपको पता है कि ऐसे महाल शख्सियत का मौजूदा समय किस तरह बीत रहा है? अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी दिल्ली स्थित सरकारी आवास में रहते हैं। वर्ष 2009 में लकवे के आघात के कारण ज्यादा समय बिस्तर पर आराम करते बीतता है। दिन में दो बार उन्हें व्हील चेयर पर बैठाकर घुमाया जाता है। वाजपेयी जी की याददाश्त भी काफी कमजोर हो गई है। हालत यह है कि उनसे अगर कोई मिलने आता है तो अक्सर उन्हें याद दिलाना पड़ता है। उन्हें आज भी पत्र आते हैं, जिसका जवाब उनके सचिव देते हैं।
वाजपेयी जी को सुनाई भी कम देता है और आवाज भी भर्राती है। बोलने में उन्हें काफी दिक्कत होती है। अब वह अखबार या किताब नहीं पढ़ते केवल टीवी देखते हैं। अब इसे संयोग ही कहेंगे कि अटल जी के सहयोगी और उनके अच्छे दोस्त रहे पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस का भी इन दिनों लगभग यही हाल है। खैर अटल जी की हालत कैसी भी हो मगर उम्र के 87वें पड़ाव पर आज भी वह अटल हैं। हम उनकी अच्छी स्वास्थय की कामना के साथ ही साथ उन्हें एक बार फिर जन्मदिन की बधाईंयां देते हैं।
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