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बहू-बेटियों का सबसे बड़ा खरीददार है हरियाणा

By रविंद्र सिंह
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Haryana is India's biggest buyer of brides
चंडीगढ़। मन में पिया से मिलने का सपना संजोकर कई प्रदेशों की सीमाएं लांघकर बालाएं हर साल हरियाणा में आती हंै, लेकिन उनके सपने कुछ ही दिनों में टूट जाते हैं। जब उन्हें सच्चाई मालूम होती है कि अब न पिया मिलेगा न प्यार। बस अंधेरे बाजार में भटकना होगा। कई बार शादी के नाटक के बाद उन्हें देह व्यापार में ढकेल दिया जाता है। 21वीं सदी की इस नयी मानव मंडी के खरीददार देश के समद राज्य पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र हैं। बहू मंडी के नये बाजार में राजस्थान का हनुमाननगर और श्रीगंगानगर जिला भी शामिल है। पाकिस्तान की सीमा से लगा श्रींगंगानगर राजस्थान का वह जिला है जहां लैंगिक अनुपात सबसे कम है।

राजधानी दिल्ली है बहू वितरण की प्रमुख मंडी

इस समय हरियाणा में देश के 15 राज्यों से दुल्हनें खरीदकर लाई जा रहीं हैैं जोकि बहू मंडी के सबसे बड़ा खरीददार बन चुका है। इसमें पूर्वोत्तर के सभी राज्यों असम, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश व आंध प्रदेश तथा दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार का नाम भी शामिल है। पश्चिम बंगाल क्षेत्र में जहां असम बड़ी मंडी है वहीं देश की राजधानी दिल्ली वितरण का प्रमुख केन्द्र है। पुलिस ने भी इन आंकड़ों की पुष्टिi की है, जिनमें दुल्हन के रूप में आने वाली इन युवतियों को देह व्यापार में उतार दिया जाता है।

हरियाणा पुलिस की मदद से बहुत सी लड़कियों को उनके घर भी पहुंचाया गया है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में, जहां लिंग-अनुपात देश में सबसे कम है, युवकों का विवाह होना कठिन होता जा रहा है। वे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से भारी राशि देकर लड़कियां खरीदकर लाने को बाध्य हो गए हैं। यहां पर उन्हें 10 हजार से 70 हजार की राशि देकर खरीदा जाता है। खरीदकर लाई गई दुल्हनें परिवार में निम्रस्तरीय स्थान ही प्राप्त कर पाते हैं। गरीब परिवारों के बच्चे तो कभी-कभी कुंआरे ही रह जाते हैं। इस तरह लिंग-अनुपात में गिरावट के अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव दिख रहे हैं।

हर साल रह जाते हैं 130 कुवांरे

आंकड़ों की माने तो हरियाणा में एक हजार में एक सौ तीस बिना शादी के रह जाते हैं। विशेष तौर पर हरियाणा के हिसार जिले में एक हजार लड़कों के मुकाबले 851 लड़कियां ही हैं। लड़कियों की यह संख्या दलित जातियों में लिंगानुपात एक तक संतुलित होने के चलते है। नहीं तो सिर्फ हरियाणा के स्वर्ण और पिछड़ी जातियों के लिंगानुपात के औसत आनुमानित से भी काफी कम होंगे। दूसरी तरफ विडंबना यह है कि टैफिकिंग की गिरफ्त में आने वाली ज्यादातर लड़कियां दलित समुदाय की होती हैं।

2004 में बिहार की भूमिका नामक स्वयं सेवी संस्था ने 173 मामलों का अध्ययन किया। अपनी जारी रिपोर्ट में संस्था ने लिखा कि टैफिकिंग में जहां 85 प्रतिशत किशोरी हैं वहीं इतना ही प्रतिशत दलित लड़कियों का भी है। हरियाणा में भ्रूण हत्याओं के बाद शादी के लिये लडि़कयों की कमी ने बहुत हद तक हरियाणा के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश की संरचना को तोड़ा है। पूरे हरियाणा में टैफिकिंग करके ब्याहने का पिछले कुछ सालों में चलन बढ़ा है। शुरू के वर्षों में कम्बोज, रोर, डोबर गडरिया और ब्राहमण युवक ही बहका के लायी गयी लड़कियों को खरीदकर ब्याहते थे। अब जाटों में भी यह चलन तेजी के साथ फैल रहा है।

नब्बे के दशक में शुरू हुआ शादियों का चलन

नब्बे के दशक के उतराद्र्ध में इस तरह की शादियों का चलन शुरू हुआ। हरियाणा के मेवात क्षेत्र में खरीदकर ब्याही गयी दुल्हनों को 'पारो' कहा जाता है। बेशक इस इलाके की हर ;पारो' का चन्द्रमुखी के एहसास से गुजरना नियती है। यहां कौन अपना, कौन पराया वे किसको कहें। यहां के रिवाज नये हैं, बोली और माहौल नया है। पति है मगर उससे वह दो बात नहीं कर सकती।

करे भी तो कैसे आखिर भाषा जो अपनी नहीं है। हरियाणा के कई जिलों में ब्याह के लिए लड़कियां नहीं मिल पा रहीं हैं। दूसरे राज्यों से खरीदी गयी गरीब आदिवासी लड़कियों को बहू बनाने की मजबूरी से ठसक वाले जाट भी गुजर रहे हैं। जाटों के जातीय गर्व का सिंहासन डोलने लगा है। वह खरीदी गयी पृजा है जो आज करनाल के झुंडला गांव की बहू है। चूल्हे पर दूध गरमा रही साहब सिंह की पत्नी पूजा का एक बार नहीं पांच बार मोलभाव हो चुका है। उसकी यह छठी शादी है।

दरवाजे पर खड़ी गाय से कम कीमत इसलिए लगी क्योंकि वह कुंआरी नहीं थी। अन्यथा हरियाणा के बहू बाजार में पृजा के बदले दलालों को पन्द्रह-बीस हजार जरूर मिलते। पृजा पश्चिम बंगाल से आने के बाद से दलालों के हाथों बिन ब्याहों के आंगनों में घुमायी जाती रही है। उन चौखटों को उसने पार किया जो कैदखानों से भी बदतर थे।

हरियाणा,पंजाब,राजस्थान तथा पश्चिमी उतर-प्रदेश के सैकड़ों गांवों में देश निकाला का जीवन बसर कर रही हजारों महिलाओं की यह पीडा शब्द किस तरह बयां कर पायेंगे। जब वह पानी भरती है तो गांव के युवक ऐसे घुरते हैं जैसे वह सबकी रखैल हो। सच कहा जाये तो 'नानजात के मेहरारू गांव भर की भौजाई' वाली हालत में रहना भी इनके नारकीय जीवन के दैनन्दिन में शामिल है। पानी के लिए कुंए पर जमा महिलाएं बातों-बातों में कितने तरीके से बेइज्जत करती हैं उसका अहसास जीते जी पारो को मार डालता है। फिर भी जीती हैं।

नोट- स्टोरी में दिये गए नाम काल्पनिक हैं।

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English summary
The sex ration in Haryana is very less that is why people are not getting girls to marry. This is the biggest reason for human trafficking there. Haryana is biggest buyer of brides in India.
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