नालंदा विश्वविद्यालय के लिए कोष जुटाना सबसे बड़ी चुनौती
नई दिल्ली। नालंदा विश्वविद्यालय के संरक्षक समूह की दो दिवसीय बैठक में समूह के अध्यक्ष और नोबल पुरुस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की अपनी योजनाओं का ठोस खाका प्रस्तुत किया। सेन ने कहा, "दुनिया के इतिहास में विश्वविद्यालय हमारी सबसे बड़ी बौद्धिक धरोहर थी।"
नालंदा संरक्षक समूह का गठन वर्ष 2007 में किया गया था और इसका अध्यक्ष सेन को चुना गया था। सेन ने शैक्षणिक संस्थान निर्माण को लेकर एक ठोस संरचना तैयार की है। बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी हिस्सा लिया। विश्वविद्यालय के संरक्षक समूह के अध्यक्ष और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने मंगलवार को पत्रकारों को बताया, "हम अंतर्राष्ट्रीय कोष जुटाने का प्रयास करेंगे।"
सेन ने कहा कि वह सरकार से, निजी संगठनों से तथा धार्मिक संस्थानों से, हर किसी से आर्थिक सहयोग लेने को तैयार हैं। विश्वविद्यालय के निर्माण पर अनुमानित 1,005 करोड़ रुपये की लागत आएगी। सिंगापुर के बौद्ध संगठनों ने और एक वैश्विक अध्ययन केंद्र ने एक विश्व स्तरीय पुस्कालय के निर्माण के लिए पहले ही आर्थिक अनुदान का प्रस्ताव दिया है।
सेन ने कहा, "सिंगापुर के बौद्ध समुदाय ने आर्थिक मदद से एक समृद्ध पुस्तकालय बनाने की बात कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।" उन्होंने संभवत: 50 लाख से एक करोड़ डालर तक की मदद का प्रस्ताव दिया है। सेन ने इसके साथ ही लेडी श्रीराम कॉलेज में समाज शास्त्र के प्रोफेसर गोपा सबरवाल को विश्वविद्यालय के नए व पहले कुलपति के रूप में परिचय कराया। जिससे कि प्राचीन समय की तरह ही वैश्विक स्तर पर छात्र यहां अध्ययन के लिए आकर्षित हो सकें।