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मेरे साथ धोखा हुआ : पूर्व नेपाल नरेश

By Staff
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काठमांडू, 26 मई (आईएएनएस)। ताज छिनने के दो साल बाद नेपाल के अंतिम नरेश ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने अंतत: अपनी चुप्पी तोड़ी है। शाह ने कहा है कि उनके साथ धोखा किया गया।

62 वर्षीय ज्ञानेंद्र ने अपने बचपन में कभी नहीं कल्पना की थी कि नेपाल के शाही शासन का इस तरह पतन होगा, और उन्हें इस शासन के पतन के लिए ही सिर पर ताज रखना होगा। उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टियों के साथ हुए एक समझौते के तहत उन्होंने 2006 में कुर्सी छोड़ दी थी।

लेकिन उन्होंने कहा कि पार्टियों ने उनके साथ धोखा किया।

इस बात का खुलासा ज्ञानेंद्र ने नेपाल में एक निजी टीवी चैनल को दिए पहले औपचारिक साक्षात्कार में किया।

ज्ञानेंद्र रविवार को जब तराई में स्थित एक हिंदू मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के लिए पहुंचे थे, तो राजतंत्र समर्थकों ने उनका जोरदार स्वागत किया था। खराब मौसम के कारण ज्ञानेंद्र को उस शहर में रात भी गुजारनी पड़ी थी।

अपने इस प्रवास के दौरान ज्ञानेंद्र ने इमेज टेलीविजन के सामने अपने मन की भड़ास उगल दी। यह साक्षात्कार मंगलवार की रात प्रसारित हुआ। इस प्रसारण में पूर्व नरेश को कानून का पालन करने वाले और कर अदा करने वाले आम आदमी की तरह एक नई जिंदगी जीते हुए बताया गया था।

वर्ष 2005 में नरेश ज्ञानेंद्र ने नेपाल में जारी राजनीतिक संकट का लाभ उठाते हुए सेना के सहयोग से पूरी सत्ता अपने हाथ में ले ली थी।

लेकिन 2006 में 19 दिनों तक चले सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के बाद मजबूरन उन्हें सत्ता सौंपनी पड़ी थी।

इस बात का हमेशा संकेत मिला है कि प्रमुख पार्टियों ने नरेश के शर्तनामे के बदले उनके ताज को बचाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वे बाद में अपनी बातों से मुकर गए।

पूर्व नरेश ने कहा, "तमाम सारे लोग उस समझौते के बारे में जानते हैं। मैं इस बात को नेपाल की जनता पर छोड़ता हूं, वही फैसला करेगी। हमें इस बारे में कुछ भी नहीं कहना है।"

ज्ञानेंद्र ने इस बात से भी इंकार किया कि नेपाल के शाही खानदान के पतन के लिए वह जिम्मेदार रहे हैं या उनके बेटे पारस की बदनामी।

लेकिन इसके साथ ही उन्होंने परिवार के मुखिया के नाते इस आरोप को स्वीकार किया, क्योंकि दूसरों पर दोषारोपण करना उनके स्वाभाव का हिस्सा नहीं है।

ज्ञानेंद्र ने कहा कि राजनीति में आने का उनका कोई इरादा नहीं है और हिंदू मंदिर में उनका यह दौरा मात्र धार्मिक दौरा था।

ज्ञानेंद्र ने कहा, "हमें राजनीति के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। यह उचित समय नहीं है।" उन्होंने कहा कि वह राजनीतिक पार्टियों के आदेश मानने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, "यदि वे मुझसे कहेंगी कि मैं चुपचाप बैठा रहूं तो मैं वैसा भी करूंगा।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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