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बीते वर्ष हुआ सर्वाधिक बिजली उत्पादन क्षमता का निर्माण (लीड-1)

By Staff
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केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बुधवार को विज्ञान भवन में ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के पहले तीन वर्षो में 22,302 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता का निर्माण किया गया है। यह मात्रा 10वीं पंचवर्षीय योजना में तैयार कुल बिजली उत्पादन क्षमता से अधिक है।

ऊर्जा मंत्रालय का 12वीं पंचवर्षीय योजना में 1,00,000 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता निर्माण का इरादा है। इसमें से 58,000 मेगावॉट क्षमता की परियोजनाओं पर काम जारी है।

शिंदे ने सभी उपभोक्ताओं को पर्याप्त और सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के लिए नए प्रयासों और प्रतिबद्धता का आह्वान किया।

शिंदे ने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र के विकास में भारत सरकार और राज्य सरकारों की पूरक भूमिका है और सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने की हमारी क्षमता इस पर निर्भर है कि हम एकसाथ मिलकर कैसे काम करते हैं।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री भरतसिंह सोलंकी, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और विभिन्न राज्यों के ऊर्जा मंत्री तथा ऊर्जा सचिव शामिल हैं।

सम्मेलन में अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता के निर्माण, राज्य बिजली बोर्डो का विकेंद्रीकरण, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का विद्युतीकरण और बिजली के वितरण तथा पारेषण व्यवस्था में सुधार जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होगी।

शिंदे ने उम्मीद जताई की राज्य सरकारों के सहयोग से अगले दो वर्षो में योजना के दौरान 40,000 मेगावॉट बिजली निर्माण के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास तथा वन एवं पर्यावरण संबंधी मंजूरी जैसे मामलों में राज्य सरकारों का सहयोग बहुत अहम है।

सम्मेलन से इतर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, "सरकार और योजना आयोग वितरण क्षेत्र की स्थिति के बारे में सबसे अधिक चिंतित हैं। यदि यह जारी रहा तो इस वित्तीय वर्ष में पारेषण और वितरण में 68,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। पिछले वर्ष यह नुकसान 40,000 करोड़ रुपये था।"

अहलूवालिया ने कहा कि यदि बिजली की दरों की समीक्षा नहीं की गई तो पारेषण और वितरण नुकसान और बढ़ेगा। राज्य सरकारों और विद्युत नियामकों को इस मामले को देखना और सुनिश्चित करना चाहिए कि पारेषण और वितरण नुकसान कम हो।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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