सर्वोच्च न्यायालय ने गलती सुधारने का प्रस्ताव दिया
नई दिल्ली, 20 अप्रैल (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय उस कथित न्यायिक गलती में सुधार करने का भरोसा देकर चार व्यक्तियों के लिए उम्मीद की किरण बिखेर दी है, जिसके कारण वे फिलहाल जेल में हैं।
जेल में कैद आरोपियों के वकील अफताब अली खान ने जब मंगलवार को अदालत के समक्ष इस बात को रखा कि किस तरह एक न्यायिक गलती के कारण चारों व्यक्ति नवंबर 2009 से ही जेल में कैद हैं, तो इस पर प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कहा, "यदि इस मामले में कुछ गलतियां हुई हैं, तो हम उसे सुधारेंगे।"
खंडपीठ ने मई के पहले सप्ताह में इस कानूनी याचिका की सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इस याचिका में अदालत द्वारा की गई कथित न्यायिक गलतियों को रेखांकित किया गया है।
खान ने अपनी याचिका में कहा है कि ये कथित न्यायिक गलतियां नवंबर 2008 में उस समय की गई थीं, जब न्यायमूर्ति अरिजित पसायत के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मध्य प्रदेश के चार निवासियों की दंगा और हत्या के मामले से रिहाई को पलट दिया था और उनकी सुनवाई किए बगैर उन्हें जेल भेज दिया था।
मध्य प्रदेश में शिवपुरी जिले के नेगमा गांव निवासी भोजा, पूरन, बलवीर और रघुबीर को शिवपुरी की एक अदालत ने अक्टूबर 1991 में हत्या व दंगे के एक मामले में सगर सिंह, लक्ष्मण, ओंकार और रमेश नामक अन्य चार ग्रामीणों के साथ छह-छह साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
उसके बाद आठों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ में याचिका दायर की। वहां से उन सभी को जनवरी 2003 में बरी कर दिया गया था।
बाद में राज्य सरकार ने सगर सिंह, लक्ष्मण, ओंकार और रमेश को हत्या के मामले से बरी किए जाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने नवंबर 2008 में आठों की सजा को बहाल कर दिया। जबकि खंडपीठ ने भोजा, पूरन, बलबीर और रघुबीर की सुनवाई तक नहीं की थी।
खान ने अदालत से कहा कि सीधी-सी बात है कि जब राज्य सरकार ने उनकी रिहाई को चुनौती ही नहीं दी थी तो उन्हें अपने बचाव के लिए अवसर पाने का कोई सवाल ही नहीं उठता था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।